27 फरवरी 2002 का दिन गुजरात के इतिहास के काले पन्नों में से एक है जब गुजरात के रेलवे स्टेशन पर साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में लगा दी गयी जिसमें अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप पूरे गुजरात में साम्प्रदायिक दंगे होना शुरू हो गये थे। अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, दंगों में 790 मुस्लिम, 254 हिंदुओं की मौत हो गयी थी। 2,500 से अधिक लोग घायल हो गये थे जबकि 223 लोग लापता हो गये। गुजरात तब साम्प्रदायिकता की आग में जल रहा था। दुर्भाग्य की बात थी कि तब इस दंगे को लेकर गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर निशाना साधा गया था।
कांग्रेस और मीडिया ने इन दंगों को ‘मुस्लिम विरोधी’ के रूप में चित्रित किया और यहां तक कि कई किताबों में यही छापा भी गया। कांग्रेस ने हमेशा ही अपने हित को देखा है उसे जनता का हित रास नहीं आता यही वजह है कि वो विभाजन की राजनीति करती रही है। राजदीप सरदेसाई, सागरिका घोष और करण थापर जैसे पत्रकार ने भी इस मौके का फायदा उठाया और हिंदुओं पर चुपचाप वार करते हुए ‘भगवा आतंक’ को जन्म दिया। हालांकि, हवा का रुख बदला और इस घटना के 14 सालों बाद बीजेपी सत्ता में आयी और गुजरात के सीएम देश के प्रधानमंत्री बन गये। कांग्रेस-एनजीओ-मीडिया नेक्सस जो 2002 के दंगों के आसपास साथ आये थे। प्रधानमंत्री मोदी ने उनके वित्तीय खजाने पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। उन्होंने पीएम बनते ही ऐसे एनजीओ पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया जो देश विरोधी कार्यों में लिप्त रहती हैं।
ऐसा लगता है कि इस तरह की एनजीओ के खिलाफ मोदी सरकार का आखिरी वार बाकी है क्योंकि कांग्रेस अब इन एनजीओ के साथ मिलकर मोदी सरकार के खिलाफ योजना बना रही है।
2019 के आम चुनाव समीप आ रहे हैं और कांग्रेस पार्टी ने इसके लिए अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। इसी दिशा में कांग्रेस पार्टी अब मोदी सरकार को जीएसटी, राफेल घोटाला, नोटबंदी, बेरोजगारी, लिंचिंग आदि जैसे मुद्दों पर घेरने की योजना बना रही है और इन मुद्दों पर मोदी सरकार की विफलता को सामने रखना चाहती है जो वास्तव में पूरी तरह से काल्पनिक है। अपनी इस योजना के लिए कांग्रेस एनजीओ का सहारा लेगी। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई कांग्रेस नेता मनीष शाह ने ‘द सन्डे स्टैण्डर्ड’ को कहा, “एनजीओ एक गैर राजनीतिक निकाय है। वो हमारा संदेश आम जनता तक पहुंचाने में हमारी मदद कर सकती है।” कांग्रेस पार्टी पहले गैर सरकारी संगठनों को उपरोक्त मुद्दों को उठाने और फिर लोगों तक उन्हें पहुंचाने के लिए मनाएगी।
मुंबई में 30 अगस्त को 250 गैर सरकारी संगठनों की एक बैठक होनी थी लेकिन महाराष्ट्र के कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुरुदास कामत के निधन के बाद वो रद्द हो गया। अब पार्टी बैठक के लिए नए तारीख तय करने में जुटी है।
गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी का भारत विरोधी और विकास विरोधी गैर-सरकारी संगठनों को समर्थन देने का इतिहास बहुत पुराना है। गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को पूर्व की सरकारों ने खूब बढ़ावा दिया। हालांकि, जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है पिछले चार सालों में परिदृश्य बदल चुका है। पिछले चार सालों में कई ऐसे कदम उठाए गये हैं जिससे नक्सलवाद और धर्मांतरण जैसी भारत-विरोधी और विकास विरोधी गतिविधियों में शामिल गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के खिलाफ कार्रवाई की जा गयी है। योजनाबद्ध विरोध, हिंसा जैसी गतिविधियों में भी इन एनजीओ की प्रत्यक्ष भागीदारी सामने आती रही है। धर्मान्तरण गिरोह अक्सर एनजीओ का सहारा लेके गरीबों का धर्मांतरण करवाते हैं और कभी उन्हें देश की विकास में बाधा डालने के लिए भी इस्तेमाल भी करते हैं। कुडनकुलम परमाणु संयंत्र व ओडिशा में पोस्को परियोजना का विरोध इसके प्रमुख उदाहरण हैं। बीते चार सालों में लगभग 14,000 एनजीओ के लाइसेंस को रद्द किया जा चुका है। इन एनजीओ ने विदेशी धन प्राप्त तो किया लेकिन सरकार द्वारा अनुरोध करने के बावजूद बीते वर्षों में प्राप्त धन के स्रोतों का खुलासा नहीं किया। इस तरह के एनजीओ जो विदेशी वित्तीय सहयोग का प्रयोग भारतीय विरोधी गतिविधियों में करती थीं सरकार ने इनके खिलाफ एफसीआरए अधिनियम के तहत कार्रवाई की। 2015 में ग्रीनपीस इंडिया को बैन किया गया था। इस संस्था पर ‘विदेशी चंदा नियमन अधिनियम के उल्लंघन में पूर्वग्रह के साथ जनहित और देश के आर्थिक हितों को प्रभावित करने का आरोप है। ऐसे ही कई मामले हैं जहां आत्मनिर्भरता तक पहुंचने के लिए भारत के लक्ष्य को ताक पर रखकर इन एनजीओ का लक्ष्य विदेशी दाताओं के निहित स्वार्थों की सेवा करना था। एफसीआरए एक्ट का उल्लंघन कर भारत विरोधी गतिविधियों के लिए एक नहीं बल्कि कई बार ये एनजीओ सामने आई हैं। ऐसे में कांग्रेस का चुनाव प्रचार के लिए एनजीओ की मदद लेने का फैसले ने भारत विरोधी बलों के मनोबल को बढ़ाया है। ये उन्हें फंडिंग के लिए पर्याप्त मौके देगा। कांग्रेस का ये कदम उसकी अक्षमता को भी दर्शाता है। ये कदम यही दर्शाता है कि कांग्रेस 2019 के आम चुनावों में मोदी सरकार और राष्ट्रीय बलों की एकता के खिलाफ अकेले लड़ने में सक्षम नहीं है। कांग्रेस पार्टी पहले ही सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ महागठबंधन की योजना बना रही है। फिर भी वो भी सफल नहीं हुआ।
कांग्रेस अपने राजनीतिक हितों के लिए और बीजेपी को हराने के लिए आम जनता के हितों को ताक पर रखकर इस तरह के एनजीओ के साथ कम कर रही है। आम जनता को अब समझना चाहिए कि कांग्रेस आज भी नहीं बदली है वो आज भी स्वार्थ की राजनीति करती है।