असम में काफी लंबे इंतेजार के बाद सोमवार को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का अंतिम मसौदा जारी कर दिया गया जिसमें राज्य में रह रहे कुल 3.29 करोड़ आवेदकों में से 2.90 करोड़ नागरिक वैध पाए गए हैं। एनआरसी के समन्यवयक के मुताबिक जिन लोगों के नाम अंतिम मसौदे में शामिल नहीं है उनके पास अभी भी मौका है वो इसकी शिकायत कर सकते हैं और उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने का मौका मिलेगा। इस मसौदे के बाद से असम में काफी तनाव बढ़ गया है जिसे देखते हुए असम सरकार ने राज्य में सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ा दिया है। राज्य में अवैध नागरिकों को मूल नागरिकों से अलग करने के मकसद से एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू की गयी थी जिसका अंतिम मसौदा जारी कर दिया गया।
हालांकि, जबसे दूसरा मसौदा आया है तबसे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर-स्टेट इंटेलिजेंस (आईएसआई) इसे लेकर अफवाह फैला रही है। कुछ गैर सरकारी संगठन, लोग और राजनेता अफवाहें फैला रहे हैं कि एनआरसी का पूरा अभ्यास सिर्फ विशेष समुदाय के खिलाफ है। असम के सीएम सर्बानंद सोनोवाल का ये कदम धर्म के आधार पर नहीं है बल्कि जनता के मूल के आधार पर है जिससे अवैध अप्रवासियों को मूल निवासियों से अलग किया जा सके। जो लोग इस तरह की अफवाह फैलाने में लिप्त हैं उनका अपना स्वयं का राजनीतिक हित निहित हो सकता है और सीधे या परोक्ष रूप से वो आईएसआई की कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कदम का विरोध किया और यहां तक कि अवैध अप्रवासियों को अपने राज्य में बसने के लिए कहा। उन्होंने ये भी कहा, “एनआरसी राजनीतिक रूप से प्रेरित है। हम ऐसा नहीं होने देंगे। वो (बीजेपी) लोगों को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। इसे सहन नहीं किया जायेगा। इससे देश में गृह युद्ध होगा और देश में रक्तपात होगा।” उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि ये राज्य सरकार की योजना है जो असम से बंगाली और बिहारी प्रवासियों से छुटकारा चाहती है। ममता बनर्जी का ये बयान चौंकाने वाला नहीं है उनका झुकाव हमेशा से इस्लामी आबादी की ओर रहा है और पक्षपाती रहा है जो पश्चिम बंगाल में उनके वोट बैंक का आधार है। उनकी गंदी राजनीति बंगाल को अंदर ही अंदर खोखला कर रही है और उनके बयान से ये स्पष्ट हो गया कि वो असम जैसे अन्य राज्यों की प्रगति भी नहीं चाहती हैं।
कई अन्य गैर सरकारी संगठन जो मुहिम चला रहे हैं और भारत सरकार से अवैध अप्रवासियों को भारत की नागरिकता प्रदान करने की मांग कर रहे हैं। वो अब एनआरसी को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य अहम संस्थाओं में याचिका दायर कर रहे हैं। उनका कहना है कि इसका उद्देश्य “मुस्लिमों को जीवनभर के लिए जेल में भेजने की है” और “सामूहिक हत्या, नरसंहार, बलात्कार” जैसे अपराधों को बढ़ावा देने और मानवाधिकार उल्लंघन करने के लिए हालातों को पक्ष में करने की है। इन गैर सरकारी संगठनों ने भारत की छवि को खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
माधव नालापत ने संडे गार्जियन लाइव में लिखा, बांग्लादेश और म्यांमार में वहाबी विचारधारा के प्रति समर्पण को देखते हुए लगभग 6 मिलियन से अधिक व्यक्तियों की आईएसआई द्वारा पहचान की गयी है ताकि वो ‘भारत में प्रांभिक प्रवेश करने के लिए उपयुक्त हो सकें।’ पाकिस्तान सेना इस तरह बड़ी संख्या में चरमपंथियों को भर्ती करेगी जिससे वो भारत में दंगे, अराजकता और आतंकवाद के अपने अभियान को गुप्त तरीके से सुनिश्चित कर सके। इससे पाकिस्तान भारत को विभाजन करने के लक्ष्य में कामयाब हो सकें। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी बड़ी संख्या में भारत में अवैध प्रवासियों को भेजना चाहती है जिससे भारत के डेमोग्राफी में बदलाव आये। एक बार डेमोग्राफी में बदलाव हुआ तो आईएसआई भारत में अलगाव आंदोलनों को बढ़ावा देने के लिए इसका फायदा उठा सकेगा। यही एक बड़ा कारण है कि क्यों आईएसआई के कठपुतली असम के मुख्यमंत्री सरबानंद सोनोवाल पर निशाना साध रहे हैं। आईएसआई वास्तव में एक ऐसे अभियान को बढ़ावा देना चाहता है जिससे वो इस तरह के खराब माहौल पैदा कर सके जिससे असम में नागरिकों की सुरक्षा खासकर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर राज्य के सीएम को घेर सकें। एनआरसी को लेकर इस तरह के फेक न्यूज़ को बढ़ावा देने से हिंसा, अराजकता बढ़ेगी जिसके परिणामस्वरूप असम सरकार पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बने और वो एनआरसी के विचार को छोड़ दे। ऐसा होने के बाद एक बार फिर से असम में अवैध बंगलादेशी अप्रवासियों और रोहिंग्या का प्रवाह जारी रहेगा।
एनआरसी के खिलाफ प्रचार करने वाले बहुत से लोग आईएसआई की भागीदारी से अनजान हैं। इस तरह वो सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से आईएसआई की कठपुतली के रूप में कार्य कर रहे हैं। एनआरसी भारत और उसके नागरिकों और खासकर उत्तर पूर्वी राज्यों के लोगों के भले के लिए है। बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों के प्रवाह के कारण उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोगों द्वारा सामना की जाने वाली कठिनाइयों में रोजगार और व्यापार के अवसरों से जुड़ा नुकसान भी शामिल है। अवैध बांग्लादेशियों के बढ़ते बोझ के कारण प्राकृतिक सुंदरता, समाज का संतुलन और स्थानीय संस्कृति को काफी क्षति पहुंची है। आखिरकार सरकार ने इस दिशा में उचित कदम उठाने का फैसला किया जो देश के मूल नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए बना है, ऐसे में सभी को देश के भले के लिए अवैध अप्रवासियों को देश से बाहर निकालने के लिए सरकार का सहयोग करना चाहिए।