उपसभापति पद के लिए गुरुवार को हुए चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार और जेडीयू के सांसद हरिवंश नारायण सिंह की जीत हुई। हरिवंश को कुल 125 वोट मिले जबकि हरिप्रसाद को सिर्फ 105 वोट ही मिले हैं। मानसून सत्र के अंत से पहले ये बीजेपी समर्थित उम्मीदवार के लिए एक बड़ी जीत है। एनडीए के लिए ये एक मुश्किल की घड़ी थी उसे अपने उम्मीदवार के लिए जरुरी संख्या जुटानी थी। राज्यसभा में बीजेपी के 73 सांसद हैं और इसके सहयोगी दलों को मिलाकर एनडीए की कुल संख्या 85 थी लेकिन ये संख्या पद जीतने के लिए 123 आंकड़े से कम थी। हालांकि, आम आदमी पार्टी और पीडीपी ने किसी भी उम्मीदवार को समर्थन न देने का फैसला किया जिससे बहुमत की आखिरी संख्या 119 तक पहुंच गयी जो कुल बहुमत की संख्या 123 से कम हो गयी। द्रमुक की राज्यसभा सांसद कनिमोझी ने अपने पिता के निधन की वजह से वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। राज्यसभा में कुल 8 सांसद उपस्थित नहीं थे जिससे कुल सांसदों की संख्या 236 हो गयी और बहुमत का आंकड़ा 119 का बना।
राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव में सबसे दिलचस्प बात ये रही कि पीडीपी ने इस मतदान में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया। ईद के बाद जम्मू-कश्मीर में गठबंधन की सरकार से बीजेपी ने पीडीपी से अपना समर्थन वापस ले लिया था जिससे राज्य में महबूबा मुफ्ती की सरकार गिर गयी थी और राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया। दोनों पार्टियों के बीच बढ़ते मतभेद के कारण ये गठबंधन टूट गया। घाटी में बढ़ते आतंकवादी और आतंकवादी समर्थक के बाद ये बीजेपी ने ये फैसला लिया।
गुरुवार को जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के पास बीजेपी से बदला लेने का मौका था लेकिन उनकी पार्टी ने उपसभापति पद के लिए हुए मतदान मे हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया। पीडीपी ने ऐसा क्यों किया? इसके पीछे तीन वजहें हो सकती हैं:
पहली, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 2019 के आम चुनावों से पहले बीजेपी के साथ अपने संबंध को बिगाड़ना न चाहती हो क्योंकि पीडीपी इस बात को जानती और समझती है कि आम चुनावों में प्रधानमंत्री का ताज पीएम मोदी के सर पर एक बार फिर से सजेगा। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए पीडीपी ने एक बहुत ही बढ़िया चाल चली। समर्थन न देकर बीजेपी को नाराज भी नहीं किया और न ही समर्थन देकर उन्हें खुश।
दूसरा, कश्मीर घाटी में ‘हिंदू-राष्ट्रवादी’ पार्टी बीजेपी के साथ गठबंधन के बाद से पीडीपी की छवि जम्मू-कश्मीर में पहले जैसे नहीं रही और यही वजह होगी कि अपने वोट आधार को लुभाने के लिए पीडीपी ने ऐसा किया हो लेकिन अब उसके पास दुबारा सत्ता में आने के लिए बीजेपी के साथ अपने संबंधों को सुधारने के अलावा और कोई विकल्प न बचा हो।
तीसरा, शायद पीडीपी और बीजेपी के बीच में गठबंधन का टूटना सिर्फ एक दिखावा हो और चीजे उतनी बुरी न हो जितनी की दिखाई दे रही हों। उमर अब्दुल्ला ने जैसा की दावा किया था महबूबा मुफ्ती और बीजेपी के बीच आपसी समझ के बाद ये एक रणनीति के तहत किया गया हो। राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव में पीडीपी की अनुपस्थिति पर उन्होंने कहा, “और इससे साबित होता है कि पीडीपी और बीजेपी अभी भी सामरिक गठबंधन में हैं और पीडीपी और बीजेपी अभी भी सामरिक गठबंधन में हैं जिसके पीछे की रणनीति राज्य की विशेष राजनीतिक पहचान को मिटाने की है।”
इससे पहले भी उमर अब्दुल्ला ने कुछ बेतुके दावें किये थे।
@MehboobaMufti has told the Congress she will support the UPA candidate for #RajyaSabha Vice Chairman. She’s also told the BJP she will support the NDA candidate. How does that work exactly?
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) August 7, 2018
इन सबके बीच पीडीपी के प्रवक्ता रफी अहमद मीर ने ट्वीट करके कहा, ”पार्टी ने मतदान से दूर रहने का फैसला बीजेपी के साथ गठबंधन टूटने के आलोक में लिया गया है। इसके अलावा यूपीए ने समर्थन के लिए पीडीपी से संपर्क नहीं किया है इसलिए, विचार-विमर्श के बाद ये उचित लगा कि मतदान से अलग रहना पार्टी के हित में है।”
पीडीपी के इस फैसले के पीछे कारण जो भी हो यहां राजनीतिक षड्यंत्र और छुपी रणनीति का पिटारा अब खुल गया है। इसके पीछे की असली कहानी क्या है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।