विपक्ष का एकमात्र एजेंडा मोदी को हटाना है और सत्ता पाना है, देश हित के बारे में बाद में जीत के बाद सोचेंगे। इसके लिए राजनीतिक षड्यंत्र बनाये जा रहे हैं उनपर अमल किया जा रहा है। राजनीतिक पार्टियां हिंसा, झूठ, दिखावे की राजनीति हर तरह के तरीके अपना रही है और अब उनकी इस सूची में साहित्य भी जुड़ गया है। ये सभी जानते हैं कि तथाकथित ‘अवार्ड वापसी’ अभियान राजनीतिक रूप से प्रेरित था और इसके पीछे का उद्देश्य मोदी विरोधी था। ये कांग्रेस पार्टी के सहानुभूतिकारियों द्वारा प्रायोजित एक संगठित चाल के रूप में केंद्र सरकार को बदनाम करना था। इस बात की पुष्टि खुद साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने की है। उन्होंने दावा किया है कि उनके पास इस बात के ठोस सबूत हैं कि 2015 का तथाकथित ‘अवार्ड वापसी’ अभियान का मकसद राजनीतिक था और इसके पीछे का मकसद बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर केंद्र सरकार को बदनाम करना था। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने अपनी पत्रिका में 10 पेज के एक लेख में इसका खुलासा किया है। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि इस अभियान के पीछे हिंदी लेखक और कवि अशोक वाजपेई की अहम भूमिका थी।
वर्ष 2015 में हिंदी लेखक और कवि अशोक वाजपेई की अगुवाई में 50 से अधिक साहित्यकारों ने अपना अवार्ड वापस किया था साथ ही मोदी सरकार पर असहिष्णुता के आरोप भी लगाये थे। इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, तिवारी ने साहित्य मैगज़ीन ‘दस्तावेज’ में अपने दावों को लेकर 10 पेज का एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक ‘अवार्ड-वापसी की सच्चाई और इसके पीछे का पाखंड’ है। इसमें उन्होंने लिखा है कि, “चार महीने तक चला ये अभियान लेखकों के तीन समुहों द्वारा प्रेरित था। पहला जो पीएम मोदी से नफरत करते थे दूसरे जो सरकार की छवि खराब करना चाहते थे और तीसरे ऐसे लेखक थे जो पब्लिसिटी के भूखे थे।” तिवारी ने कहा, “मेरे पास इसके पुख्ता सबूत हैं कि, अवार्ड वापसी स्वतःस्फूर्त नहीं था बल्कि पांच लेखकों द्वारा शुरू की गयी एक योजना थी। इसमें से कई ऐसे हैं जो पीएम मोदी के सत्ता में आने के पहले से मोदी-विरोधी सभा कर रहे थे।” उन्होंने आगे कहा कि वाजपेयी ने मोदी विरोधी, साहित्य अकादमी और विश्वनाथ तिवारी के प्रति घृणा और व्यक्तिगत कारणों के कारण ही आंदोलन शुरू किया था।“
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि, “तथाकथित ‘अवार्ड वापसी’ के दौरान बहुत से लेखकों, मित्रों और परिचित-अपरिचित बुद्धिजीवियों के ई-मेल फोन, पत्र आदि लगातार मिलते रहे, जिनमें अधिकांश या कहूं लगभग सभी पुरस्कार वापस करने वालों के विरुद्ध थे लेकिन उन्हें वापस करने के लिए मजबूर किया जा रहा था”
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने आगे लिखा, “इस समूचे प्रकरण में शिक्षित समुदाय जिस निष्कर्ष पर पहुंचा वो ये था कि पुरस्कार लौटाने वालों का मुख्य प्रयोजन राजनीतिक था। असहिष्णुता का मुद्दा मात्र एक पैसे और 99 पैसे राजनीति थी। बल्कि कहें उनके मन में छिपी राजनीतिक गांठ को दो-तीन असहिष्णु घटनाओं ने खोल कर फैला दिया।” उन्होंने अपने लेख में दावा करते हुए कहा है कि, “एक पुष्ट प्रमाण ये कि आम चुनाव (2014) के आखिरी दिनों में मीडिया के शोर से जब ये स्पष्ट होने लगा कि मोदी के नाम पर भाजपा सत्ता में आ रही है तो कन्नड़ लेखक यू.आर. अनंतमूर्ति ने ये बयान दिया था –यदि नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री होंगे तो मैं देश छोड़ कर चला जाऊंगा।”
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के इस लेख से ये स्पष्ट है कि ‘अवार्ड वापसी’ राजनीतिक रूप से प्रेरित था और वर्तमान सरकार के विरुद्ध था। हालांकि, इस तरह के पैंतरे से विपक्ष को कोई फायदा नहीं हुआ था।
लगभग हर सरकार विरोधी आंदोलन की तरह ये आंदोलन भी नाकाम रहा था क्योंकि ये भी तथाकथित ‘अवार्ड वापसी’ बनावटी और मोदी के खिलाफ नफरत फैलाने के मकसद से था। यही वजह है कि कभी भी इस तरह के अभियान सफल नहीं रहे। आम लोगों के बीच मोदी सरकार के खिलाफ झूठे तथ्य पेश करना उन्हें भ्रमित करने की कोशिश करना ये विपक्षी चाल अक्सर ही किसी न किसी रूप में सामने आती रही है। हाल ही में राहुल गांधी द्वारा राफेल घोटाले को लेकर केंद्र सरकार पर लगाये गये झूठे आरोपों का सच भी जनता के सामने था। ऐसा लगता है कि विपक्ष को सरकार के खिलाफ कोई भी उचित मुद्दा नहीं मिल रहा क्योंकि केंद्र सरकार जनता के हित के लिए काम कर रही है ऐसे में विपक्ष अब अपनी गंदी राजनीति के लिए साहित्य तक का सहारा ले रहा है। फिर भी उसे बार-बार मुंह की खाने के बाद भी विपक्ष कोई सीख नहीं ले रहा ऐसे में उसे 2019 में एक बार फिर से बड़ा झटका लगने वाला है।