पहले ही आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन में रार नजर आ रही थी कि इस बीच अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल ने उन्हें एक और झटका दे दिया है। समाजवादी पार्टी में पिछले डेढ़ वर्षों से सम्मानजनक पद मिलने का इंतजार कर रहे है शिवपाल यादव ने बुधवार को समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने का ऐलान कर दिया और कहा कि सपा में जिन्हें सम्मान नहीं मिला वो उनकी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। शिवपाल यादव ने कहा, “मैंने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन किया है। जिन लोगों को समाजवादी पार्टी में सम्मान नहीं मिल रहा है, वे लोग हमारी पार्टी में शामिल हो सकते हैं।” इसके साथ ही शिवपाल ने ये भी संकेत दिए हैं कि मुलायम सिंह यादव भी उनकी पार्टी से जुड़ सकते हैं ऐसे में ये तो तय है कि समाजवादी पार्टी का समर्थन आधार विभाजित होने वाला है। और एक बार फिर से चाचा और भतीजे के बीच की लड़ाई पूरी तरह से सार्वजनिक हो गयी है।
I have constituted Samajwadi Secular Morcha. All those who who are not being respected in Samajwadi Party should come with us. We will also bring together other smaller parties: Shivpal Yadav pic.twitter.com/eVrRgqaTRX
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) August 29, 2018
वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले ही समाजवादी पार्टी में दरार की खबरों ने खूब तुल पकड़ा था। उस दौरान समाजवादी पार्टी दो खेमों में बंट गया था पहले खेमे में समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और दूसरा खेमा अखिलेश यादव का था। या यूं कहें तब मुलायम सिंह यादव और छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव के समर्थक और कार्यकर्ता एक तरफ़ और मुख्यमंत्री अखिलेश के समर्थक एक तरफ़ थे। राम गोपाल, आजम खान, अखिलेश बनाम मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह और अमर सिंह की लड़ाई में दोनों ही खेमों के समर्थक एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी तक करने लगे थे। विधानसभा चुनाव से पहले ही इस दरार से समाजवादी पार्टी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था। सोशल मीडिया इन खबरों से पटा हुआ था कि नाराज अखिलेश यादव पार्टी से अलग होकर नयी पार्टी बना सकते हैं। अखिलेश यादव की टीम ने यहां तक कह दिया था कि अगर अखिलेश सीएम पद के उम्मीदवार नहीं होंगे तो पार्टी खत्म हो जाएगी।
यूपी चुनाव से पहले ही राजनीति ने देश के सबसे बड़े प्रदेश का सबसे बड़ा राजनीतिक घराना यानी मुलायम सिंह का परिवार बिखरने की कगार पर था। उस दौरान मोदी लहर भी उत्तर प्रदेश में अपने चरम पर था और ऐसे में अगर पार्टी टूटती तो पार्टी की हार चुनाव से पहले ही तय हो जाती जबकि उसी हार से बचने के लिए सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कांग्रेस से हाथ मिलाया था जिससे मुलायम सिंह की नाराजगी और बढ़ गयी थी। पिता, चाचा और पुत्र की लड़ाई में सपा पार्टी लगभग टूटने ही वाली थी कि मुलायम सिंह को अपने बेटे की जिद्द के आगे झुकना पड़ा।
#WATCH: Supporters celebrate outside Akhilesh Yadav's residence in Lucknow aftr EC says group led by him is entitled to use 'Bicycle' symbol pic.twitter.com/nHDMFB6Pjm
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) January 16, 2017
पार्टी में कई उठापटक के बाद अखिलेश यादव पिता और चाचा पर भारी पड़े। पार्टी की कमान हाथ में लेने के बाद भी अखिलेश ने उम्मीदवारों की सूची से अपने चाचा का नाम नहीं हटाया। हालांकि, कई बार मुलायम के बयानों में उनका दर्द भी छलका। जब मुलायम ने अपने एक बयान में कहा था, “2012 में लोगों ने मुझे मुख्यमंत्री बनाने के लिए सपा को वोट दिया था, लेकिन मैंने अखिलेश को मुख्यमंत्री बना दिया, पर उसने मेरा अपमान किया। मैंने किसी से कुछ नहीं कहा, क्योंकि मेरा बेटा ही मेरे खिलाफ था।”
हालांकि, विधानसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों को लेकर यादव परिवार में छिड़ी जंग थम जरुर गयी थी लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं हुई थी। चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम सिंह और छोटे भाई शिवपाल सिंह के समर्थक और कार्यकर्ता और मुख्यमंत्री अखिलेश के समर्थक सतही तौर पर आपस में मिलते थे लेकिन उनमें मतभेद साफ़ दिखाई देता था। अखिलेश यादव पार्टी की लड़ाई तो जीत गए लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव में उनकी जबरदस्त हार हुई। कांग्रेस के साथ गठबंधन के बावजूद पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। बीजेपी गठबंधन ने प्रदेश की 403 सीटों में से 324 (जिसमें बीजेपी ने 311 सीटों पर जीत दर्ज की) पर जीत दर्ज की और समाजवादी व् कांग्रेस गठबंधन को सिर्फ 55 सीटों से संतोष करना पड़ा।
कांग्रेस से हाथ मिलाने के बाद भी सपा को मिली हार ने अखिलेश को हिलाकर रख दिया। इसके बाद अखिलेश यादव ने भी बिना कोई देरी किये यूपी के उपचुनाव में बसपा पार्टी का हाथ थाम लिया। मुहबोली बुआ और भतीजे की जोड़ी से यादव, मुस्लिम, दलित का वोट सुरक्षित नज़र आने लगा। सिर्फ बीजेपी को हराने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी 23 साल पुरानी दुश्मनी के बाद साथ आये थे और उन्हें इसका फायदा भी हुआ। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के उप-चुनाव पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन की जीत हुई। इस जीत ने लंबे समय बाद सपा और बसपा में थोड़ी उम्मीद की लहर पैदा की और इस बीच कांग्रेस अकेले पड़ गयी। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में मिली हार से इस गठबंधन में भी दरार दिखने लगी। हालांकि, फिर भी मायावती ने अपने बयान से इसपर पर्दा डालने की खूब कोशिश की लेकिन 2019 के आम चुनावों को लेकर पार्टी के गठबंधन में दरार साफ़ दिखने लगी है। ताजा खबरों की मानें तो सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस की करीबी रास नहीं आ रहा। वो कांग्रेस की तरफ मायावती के झुकाव से थोडा उखड़े हुए हैं।
आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर अखिलेश यादव पार्टी को कैसे ऊपर उठाएं इसके लिए कोशिशों में जुटे हैं ऐसे में शिवपाल सिंह यादव का नयी पार्टी की घोषणा ने उनकी बची हुई उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है। अब समाजवादी का वोटबैंक दो भागों में बंट जायेगा क्योंकि मुलायम सिंह शिवपाल के खेमे में नजर आ रहे हैं और राजनीति में उनकी पकड़ काफी मजबूत है। हालांकि, इससे बीजेपी की राह और आसान हो गयी है। पहले से ही सपा, बसपा, कांग्रेस के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था इस बीच एक और पार्टी का गठन राजनीतिक समीकरण को बदल कर रख देगा और इससे अगर किसी पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा होगा तो वो है बीजेपी। जहां अन्य पार्टियां आंतरिक मतभेद से परेशान हैं वहीं बीजेपी आम जनता से जुड़ने और अपनी स्थिति को और भी ज्यादा मजबूत करने में जुटी है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि एक बार फिर से वर्ष 2014 की तरह ही आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी।