इराक में शिया समुदाय के सर्वोच्च शिया उलेमा आयातुल्लाह अल सय्यद अली अल हुसैनी अल सिस्तानी ने एक नया फतवा जारी किया है। ये बहुत ही अजीब है कि शिया समुदाय के सर्वोच्च धार्मिक गुरु पश्चिमी देशों पर अक्सर फतवा जारी कर उन्हें निशाना बनाते हैं इस बार भारत उनके निशाने पर है। जिस शिया उलेमा ने ये फतवा जारी किया है उन्हें दुनिया में शिया समुदाय के सर्वोच्च शिया उलेमा में से एक माना जाता है। अपने फतवे में आयातुल्लाह अल सय्यद अली अल हुसैनी अल सिस्तानी ने कहा है कि, “मुस्लिम वक्फ संपत्ति को मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल के निर्माण के लिए नहीं दिया जा सकता है।“ आयातुल्लाह अल सय्यद अली अल हुसैनी अल सिस्तानी ने ये फतवा उत्तर प्रदेश के कानपुर में इस्लामिक विद्वान मजहर अब्बास नकवी के ईमेल के जवाब में जारी किया है। शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने इराक में शिया समुदाय के सर्वोच्च शिया उलेमा से ईमेल के जरिये सवाल पूछा था कि, “क्या मुस्लिम वक्फ बोर्ड की जमीन को मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल के निर्माण के लिए दे सकता है?” इसके जवाब में आयातुल्लाह अल सय्यद अली अल हुसैनी अल सिस्तानी ने मुस्लिम वक्फ संपत्ति को मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल के लिए नहीं दिए जाने की बात कही।
अयोध्या में राम मंदिर जन्मभूमि विवाद को सुलझाने हेतु साल 2017 में यूपी शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट में ये प्रस्ताव दिया था कि अयोध्या में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज विवादित जमीन को राम मंदिर निर्माण के लिए दे दिया जाए और इसके बदले लखनऊ में ‘मस्जिद-ए-अमन’ बनवाई जाए। जिससे वर्षों से चला आ रहा ये विवाद सुलझ जाए। वसीम रिजवी ने कई बार अपने बयान में कहा है कि मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि को दे कर सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए। तब पूरे भारत में उनके इस फैसले की सराहना की गयी थी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे कहा गया था कि, “चूंकि मीर बाकी ने ये मस्जिद बनवाई थी और वे शिया समुदाय के थे, इसलिए मस्जिद पर शिया वक्फ बोर्ड का अधिकार है। वसीम रिजवी ने कई बार अपने बयान से ये संकेत दिया है कि बोर्ड को इस अयोध्या के इस विवादित जमीन को राम मंदिर निर्माण के लिए दे देना चाहिए क्योंकि ये उन्हीं की विरासत हैं और इससे देश में अमन और शांति का पैगाम देना चाहिए।
इराक में शिया समुदाय के सर्वोच्च शिया उलेमा आयातुल्लाह अल सय्यद अली अल हुसैनी अल सिस्तानी द्वारा जारी फतवे पर बात करते हुए यूपी शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने कहा, “बाबरी मस्जिद को लेकर मुकदमा दर्ज कराने वालों का समर्थन करने के लिए शिया वक्फ बोर्ड पर अंतरराष्ट्रीय दबाव है। अयातुल्ला द्वारा जारी किया गया ये फतवा रणनीति का हिस्सा है। शिया वक्फ बोर्ड भारत के संविधान में जो नियम है उसके हिसाब से चलेगा न कि किसी आतंकी या फतवा के दबाव में चलेगा। हम अयातुल्ला की सलाह को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।” रिजवी ने यहां तक कहा कि, “अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हिंदुओं की आस्था से जुड़ा है और शिया वक्फ बोर्ड देश और समाज के विकास को लेकर चिंतित रहता है। हिंदुओं को उनका अधिकार मिलना चाहिए और मुस्लिमों को दूसरों का हक छिनने से बचना चाहिए। वक्फ बोर्ड अपने फैसले पर कायम रहेगा चाहे पूरी दुनिया के मुस्लिम हमारे विरोध में क्यों न खड़े हो जायें।”
रिजवी का ये बयान सराहनीय है जो ये दर्शाता है कि भारत के मुस्लिम किसी बाहरी दबाव में नहीं है और न ही वो दूसरे की बातों में आएंगे जो भारत के हित में कोई रूचि नहीं रखते। इराक के शिया उलेमा अपना फैसला भारत पर थोपना चाहते थे उन्हें लोकतंत्र और न्यायपालिका से कुछ सीखना चाहिए जो भारत में संचालित है। भारत से नाता न रखने वाले बाहरी लोगों की राय अप्रासंगिक है और इसे कोई महत्व भी नहीं देना चाहिए।