आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने राजधानी अमरावती में हैदराबाद के विशाल मस्जिद की तरह ही एक विशाल मस्जिद के निर्माण की घोषणा की है। उन्होंने कहा, , “मस्जिद राज्य वक्फ बोर्ड की देखरेख में 10 एकड़ क्षेत्र में बनाया जाएगा।“ चंद्रबाबू नायडू ने आगे कहा, “अमरावती में मस्जिद निर्माण आधुनिक शैली के अनुरूप होना चाहिए और इससे ये आकर्षक पर्यटक स्थल भी बनेगा।”
https://twitter.com/ramprasad_c/status/1040051498842054656
ऐसा लगता है कि चंद्रबाबू नायडू भी ‘धर्मनिरपेक्ष’कार्यों को पूरा करने के लिए अन्य गैंग की तरह एक ही नाव पर सवार हैं। जब तुष्टिकरण की बात आती है तो भारत के कुछ ही राजनेता चंद्रबाबू के साथ मुकाबला कर सकते हैं। उन्हें पता है कि अगले आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों की राह आसान नहीं है ऐसे में वो बीजेपी विरोधी मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं खासकर मुस्लिम मतदाता। हाल ही में उन्होंने दावा किया था कि हैदराबाद में उनकी पार्टी ने विजयवाड़ा और कदपा में हज का निर्माण किया है और राज्यभर में मस्जिदों का निर्माण किया है और उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए भी काम किया है।
TDP is the only party that constructed Haj houses in Hyderabad, Vijayawada & Kadapa. We promoted Urdu & built thousands of mosques across the state: Andhra Pradesh CM N Chandrababu Naidu at foundation laying event of Haj House in Vijayawada pic.twitter.com/yEFd1nY6Wt
— ANI (@ANI) May 12, 2018
ऐसा लगता है कि हजार की संख्या में मस्जिद का निर्माण पर्याप्त नहीं है और यही वजह है कि उन्होंने मक्का मस्जिद की तरह ही एक विशाल मस्जिद निर्माण की घोषणा की है। मस्जिद निर्माण के लिए उनके पास बहुत पैसा है जबकि हाल ही में उन्होंने संसद में अविश्वास प्रस्ताव रखा था जिसके पीछे की वजह राज्य के पास फंड की कमी भी बताई गयी थी। उनकी पार्टी के नेता कहते हैं कि फंड की कमी की वजह से राज्य के विकास कार्यों में बाधा आ रही है। उनके पास विकास कार्यों के प्रोजेक्ट्स के लिए धन नहीं है लेकिन मस्जिद बनाने के लिए वो पैसे जुटा रहे हैं वो भी एक विशाल मस्जिद। क्या यही वजह है कि वो राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग कर रहे हैं जिससे वो एक विशेष समुदाय को विशेष सुविधाएं दे सकें?
यहां लुटियंस मीडिया और उदारवादी-वामपंथी गैंग की चुप्पी हैरान कर देने वाली है। गुजरात में इस गैंग की एकता नजर देखने लायक थी जब शिव जी महाराज की मूर्ति के निर्माण को पैसे की बर्बादी का नाम दिया जा रहा था लेकिन मस्जिद और मदरसा में हज़ार और करोड़ रुपये खर्च करना पैसे की बर्बादी नहीं है क्योंकि ये धर्मनिरपेक्षता, प्रगतिशील मूल्यों और विकास की राजनीति को दर्शाता है।
अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के लिए इस तरह के प्रयास ये दर्शाते हैं कि नेता राज्य के भले के लिए नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए काम किया जा रहा है। चंद्रबाबू नायडू भी इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं। उन्हें ये समझ आ गया है कि सत्ता में उनकी उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। तिरुपति मंदिर मामले में उनके रवैये से हिन्दुओं में चंद्रबाबू के खिलाफ रोष है और वो इसे अच्छी तरह से जानते हैं। यही वजह है कि वो अब तुष्टिकरण की राजनीति का सहारा ले रहे हैं लेकिन उन्हें इससे कोई फायदा नहीं होने वाला है। उनका राजनीतिक भविष्य अब ‘धर्मनिरपेक्षता के स्मारकों’ में दफन हो रहा है।