मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत सरकार अब जम्मू और लद्दाख के लोगों की विभाजन करने की मांग पर गंभीरता से विचार करने का फैसला लिया है और हो सकता है कि आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर तीन अलग राज्य बन जाए । मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पीएम मोदी 2019 के आम चुनाव से पहले इस मुद्दे को सुलझा सकते हैं। उनकी योजना जम्मू-कश्मीर को तीन अलग राज्य में विभाजित करने की मांग को स्वीकार कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो जम्मू, कश्मीर व् लद्दाख अलग राज्य बन जायेंगे।
लद्दाख और जम्मू के लोग लंबे समय से राज्य विभाजित करने की मांग कर रहे हैं। उनका दावा है कि उन्हें राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि दिल्ली और जम्मू-कश्मीर सरकार का ध्यान सिर्फ कश्मीर पर होता है। राज्य के अन्य क्षेत्रों पर केंद्र और राज्य सरकार का ध्यान नहीं जाता है। एक अलग राज्य की मांग लद्दाख में सबसे ज्यादा उठती रही है। आल रिलिजन ज्वाइंट एक्शन कमेटी (एआरजेएसी) नेताओं ने लद्दाख के लिए संघीय क्षेत्र की स्थिति की मांग के प्रस्ताव को पारित किया। पीएम मोदी को एक ज्ञापन भी सौंपा। इस ज्ञापन में आल रिलिजन ज्वाइंट एक्शन कमेटी के नेता ने लिखा, “लद्दाख जम्मू-कश्मीर से हर तरह से भिन्न है। चाहे वो पारम्परिक, भाषा और सांस्कृतिक ही क्यों न हो लद्दाख बाकि अन्य क्षेत्रों से अलग है। पिछले कुछ वर्षों में राज्य की जितनी भी सरकारें रही हैं सभी ने भेदभाव की नीति को अपना लिया है। उनका मुख्य उद्देश अपनी ही जनता को दबाने और एतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को कम करना रहा है। आल रिलिजन ज्वाइंट एक्शन कमेटी के नेता ने अपने ज्ञापन में आगे कहा, “वर्तमान समय में जब संपूर्ण उपमहाद्वीप उपनिवेशवाद के बाद राष्ट्रीय स्वतंत्रता का आनंद उठा रहा है लद्दाख के लोग और हमारी भूमि अभी भी औपनिवेशिक प्रशासनिक संरचना की पुरानी अवधारणा के तहत पीड़ित है। कश्मीर की ओर तो ध्यान दिया जाता है लेकिन हमें अनदेखा कर दिया जाता है।”
आल रिलिजन ज्वाइंट एक्शन कमेटी के नेताओं ने आगे कहा, “राष्ट्रवाद हमेशा से प्रमुख विचार रहा है और लद्दाखियों के बीच ये एकजुट रहने का बल बन गया जो पाकिस्तानी और चीन से अपनी भूमि के बचाव के लिए लड़ता आया है जो 1948, 1962, 1965, 1971 और 1999 में यहां की भूमि पर कब्जा करने की कोशिश की थी और आज भी यही कर रहे हैं। लद्दाख स्कॉउट के जवानों ने दुश्मनों को सबक सिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।”
आल रिलिजन ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने अपने ज्ञापन में कहा, “हमारा विनम्र निवेदन ये है कि हम न तो समस्या हैं और न ही राज्य से जुड़े किसी भी समस्या का हिस्सा हैं बल्कि हम समाधान हैं। हमें लगता है कि हम सभी एक तभी रहेंगे जब भारत रहेगा। देश की एकता और अखंडता के लिए अपनी जान कुर्बान करने में भी पीछे नहीं हटेंगे। हमारे लोग और जवान देश के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करने और बलिदान देने में कभी पीछे नहीं हटते हैं। हम कभी देश को हारने नहीं देंगे।”
जम्मू के लोग भी विभाजन के पक्ष में हैं और उनका भी मानना है कि कश्मीर के प्रभावी नियमों से वो खुश नहीं हैं। उनके साथ भी भेदभाव किया जाता है। कश्मीर, जिसमें आजादी के बाद से लेकर अब तक, अलगाववादी ताकतों का प्रभुत्व रहा है जो राज्य की शांति को भंग करते हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार का ध्यान पूरी तरह से कश्मीर पर होता है ऐसे में लद्दाख और जम्मू के लोगों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है और उनकी समस्याओं का ठीक से समाधान नहीं हो पाता। कश्मीर में जो भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना होती है उसका असर जम्मू पर भी पड़ता है। कश्मीर में होने वाली घटनाओं से जम्मू और अन्य क्षेत्रों में कारोबार प्रभावित होता है। कश्मीर के नेता जम्मू के अधिकारों और फंड का उपयोग अपने फायदे के लिए करते हैं। लद्दाख और जम्मू के लोगों का मानना है कि कश्मीर से अलग होने के बाद उनके यहां विकास में गति आएगी और शांति भी बनी रहेगी। चूंकि जम्मू का क्षेत्रफल कश्मीर से ज्यादा बड़ा है तो उसका राजस्व कश्मीर की तुलना में ज्यादा है। जम्मू में व्यापार और औद्योगिक कंपनियों के लिए अधिक अवसर हैं।
अगर जम्मू-कश्मीर को तीन राज्यों में विभाजित किया जाएगा तो जम्मू, कश्मीर व् लद्दाख तीनों अलग राज्य बन जायेंगे। इससे घाटी से आतंकियों और उनके समर्थकों का सफाया करना और भी आसान हो जायेगा। कश्मीर के साथ जम्मू और लद्दाख के लोग पीड़ित नहीं होंगे। इसके साथ ही अलगाववादियों की गुंजाइश भी खत्म हो जाएगी।
स्पष्ट रूप से अगर पीएम मोदी ने तीनों राज्यों के विभाजन की घोषणा कर दी तो इससे जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक समीकरण बदल जायेगा और साथ ही इसका फायदा केंद्र सरकार को आगामी लोकसभा चुनाव में होगा। साथ ही जम्मू और लद्दाख में विकास की लहर तेजी से दौड़ेगी जो आजादी के बाद से थम सी गयी है। तीनों ही राज्य में अच्छा प्रशासन होगा और आर्थिक परेशानियों को भी हल करने में आसानी होगी और सांस्कृतिक पहचान भी बनी रहेगी।