बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी कर्मियों के प्रमोशन में आरक्षण पर बड़ा फैसला सुनाया। अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी कर्मियों को प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया जा जायेगा। इसके साथ ही कोर्ट ने 2006 के फैसले को बरकार रखते हुए कहा है कि एम नागराज के फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता। ये फैसला चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सुनाया जिसमें जस्टिस कुरिएन जोसेफ, आरएफ नरीमन, एसके कौल और इंदु मल्होत्रा शामिल हैं। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 अगस्त को इस मामले में दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
#Breaking | No reservation in promotions for SCs, STs in government jobs, rules #SupremeCourt
— Hindustan Times (@htTweets) September 26, 2018
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में मामले में एम.नागराज मामले में फैसला दिया था जिसपर केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को मामले में पुनर्विचार के लिए कहा था। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले में पुनर्विचार करने से इंकार कर दिया। इसका मतलब साफ़ है कि इस मामले को दोबारा सात जजों की पीठ के पास नहीं भेजा जायेगा। कोर्ट ने कहा कि राज्य एससी/एसटी के पिछड़ेपन पर संख्यात्मक आंकड़ा देने के लिए बाध्य हैं लेकिन इन समुदायों के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले राज्य सरकारी नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं प्रशासनिक कार्यकुशलता के बारे में पहले तथ्य पेश करेंगे अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें पदोन्नत में आरक्षण नहीं मिल सकेगा। इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि राज्य सरकार ये भी सुनिश्चित करे कि आरक्षण 50% की सीमा से ज्यादा न हो।
बता दें कि, केंद्र सरकार की तरफ अटॉर्नी जनरल ने तर्क दिया था कि एससी-एसटी समुदाय को आज भी समाज में काफी प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है और आज भी वो पिछड़े हैं। केंद्र सरकार ने कहा था कि उन्हें पहले ही आरक्षण के आधार पर नौकरी मिल चुकी है तो उनके प्रमोशन के लिए फिर से डेटा की क्या जरूरत है। वहीं, नागराज मामले पर कोर्ट के फैसले के पक्ष में वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि एससी/एसटी कर्मियों के प्रमोशन में आरक्षण नहीं होना चाहिए। योग्यता के अनुसार ही प्रमोशन होना चाहिए जिससे किसी पद पर आसीन व्यक्ति की योग्यता पर सवाल न उठें। उन्होंने आगे कहा, संविधान के बनने के बाद से हालात काफी बदल चुके हैं और दलितों से भेदभाव काफी हद तक कम हुआ है। यही नहीं अपने तर्क में द्विवेदी ने उदाहरण देते हुए कहा कि देश में दलित राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश बने हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक नागराज मामले में कोर्ट ने कहा था कि सरकार एससी-एसटी वर्गों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। अगर वह आरक्षण देना चाहती है तो उसे ऐसे आंकड़े जुटाने होंगे जो इसे तर्कसंगत ठहरा सकें। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण मामले में फटकार लगाते हुए कहा कि किसी भी राज्य ने संख्यात्मक आंकड़ा तैयार नहीं किया इस तथ्य को जानते हुए भी कोर्ट ने नागराज मामले में उन्हें ऐसा करने का आदेश दिया था।