भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपने जीवन काल के 54 साल पूरे कर 55 वें बसंत में प्रवेश कर रहे हैं। ये उनके जीवन काल का सबसे अहम पड़ाव है क्योंकि इसी वर्ष उनके नेतृत्व में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद आगामी आम चुनाव बीजेपी चुनाव लड़ने जा रही है। अमित शाह की इच्छा है कि बीजेपी पूरे देश में भगवा लहर छा जाए और वो इस इच्छा को अपनी उम्र के 55 साल पूरा करने से पहले ही बीजेपी की पकड़ हर राज्य में मजबूत हो।
गौरतलब है कि बीजेपी वर्तमान समय में अपने इतिहास के सबसे स्वर्णिम दौर से गुजर रही है। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने 14 साल के वनवास को खत्म कर यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 73 में जीत दर्ज की थी और ये शाह की रणनीति की वजह से ही सफल हो पाया था तब शाह यूपी बीजेपी के इनचार्ज थे। उन्हीं की रणनीतियों के कारण ही सालों से अपने अस्तित्व के लिए प्रयास कर रही भारतीय जनता पार्टी ने साल 2014 में बहुमत के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर पायी थी। अमित शाह की अगुवाई में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, असम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में जीत दर्ज की है। पूर्वोत्तर में सत्ता से अबतक दूर रही बीजेपी ने शाह के करिश्माई नेतृत्व में सियासी जमीन को जिस तरह से मजबूत किया है उसने सालों से देश पर राज करने वाली सबसे पुरानी पार्टी के अस्तित्व को ही हिला कर रख दिया है। उन्हीं की रणनीतियों के कारण ही आज 20 राज्यों में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार है जिसका मतलब ये है कि देश के कुल 29 राज्यों में सिर्फ 9 राज्य में ही अन्य पार्टियों की सरकारें हैं। यही नहीं सलोन से पिछले 30 सालों से महाराष्ट्र की राजनीति में राज कर रही शिवसेना को शाह की रणनीति ने इस तरह से प्रभावित किया है उसकी राजनीतिक पकड़ कमजोर हो गयी है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 124 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी।
हालांकि, इसके बावजूद अमित शाह इससे भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हैं बल्कि वो और भी ज्यादा ऊर्जा के साथ संगठन को विस्तार देने में जुटे हुए हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर अमित शाह के नजरिये से भाजपा का स्वर्णिम काल कैसा होगा? इसे समझने के लिए दक्षिण की ओर एक नजर डालते हैं जहां उत्तर भारत की तुलना में बीजेपी की स्थिति मजबूत नहीं है लेकिन पूर्वोत्तर के त्रिपुरा, असम, नगालैंड जैसे राज्यों में अपनी रणनीति के दम पर भारतीय जनता पार्टी को स्थापित करने वाले शाह का अगला मिशन दक्षिण पर फतह करना है। इसके लिए वो दिन-रात कठिन प्रयास कर रहे हैं। त्रिपुरा में 25 वर्षों से शासित लेफ्ट के किले को ढाहने के बाद भी अमित शाह की नजरें तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर है जहां बीजेपी की जमीनी पकड़ काफी कमजोर है और विगत चुनावों में बीजेपी को उम्मीद के अनुरूप जनसमर्थन प्राप्त नहीं हुआ था। भारतीय राजनीति में अमित शाह को ‘चाणक्य’ कहा जाता है। उनकी निगाहें सिर्फ पेड़ पर बैठी चिड़िया की आंख पर होती है। अब इस कथन को समझने के लिए हमें त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड जीत को समझना होगा। साल 2013 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे लेकिन बीजेपी को यहां एक भी सीट नहीं मिली थी। यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी के 49 उम्मीदवार अपनी जमानत राशी भी नहीं बचा पाए थे। तब भारतीय जनता पार्टी को चुनाव में भाजपा को मात्र 1.87 फ़ीसदी वोट के साथ संतोष करना पड़ा। हालांकि, इस बार किसी को ये अंदाजा भी नहीं था कि त्रिपुरा के राजनीतिक परिदृश्य में इतना बड़ा बदलाव होने जा रहा है। साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 43 फ़ीसदी वोटों के साथ 35 सीटों पर जीत दर्ज की। ये जीत अप्रत्याशित थी और इस बात का प्रमाण भी कि अमित शाह के हौसले कितने बुलंद है। उनका मैनेजमेंट, सोशल इंजीनियरिंग केवल उत्तर भारत ही नहीं बल्कि देश के हर राज्यों की राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने तथा उसे बदलने का दमखम रखता है। यही कारण है कि दक्षिण के राज्यों में भी अमित शाह भाजपा को नए सोपान पर देखने के लिए उत्सुक है। शायद यही उनके स्वर्णिम भाजपा की कल्पना हो।
गौरतलब है कि शाह की रणनीति में हताशा और पूर्व चुनाव के परिणामों की सफ़लता या विफलता से अधिक इस बात पर केन्द्रित रहती है कि आगामी चुनाव में पार्टी कैसे तय लक्ष्य को हासिल करेगी। इसी के मद्देनजर वो पार्टी की नीतियों तथा चुनावी योजनाओं का निर्माण कर स्वयं उसे अमल करने के लिए कठिन परिश्रम करते हैं। यही कारण है कि आज सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों से अलग उनके आलोचक भी ये बात मानते है कि वो एक अथक परिश्रमी पार्टी अध्यक्ष हैं। आज अमित शाह को भाजपा का सबसे सफलतम अध्यक्ष कहा जाता है और इसके पीछे केवल एक राजनीतिक विस्तार ही कारण नहीं है बल्कि कई ऐसे और महत्वपूर्ण बिंदु है जिसकी चर्चा कम होती है मसलन अध्यक्ष बनने के उपरांत अमित शाह ने सबसे पहले पार्टी को पूरी तरह से तकनीक से जोड़ते हुए पार्टी कार्यालयों को आधुनिकीकरण करने की दिशा में कदम बढ़ाया। शाही खर्चे पर अंकुश लगाने के लिए अमित शाह ने पदाधिकारियों से आग्रह किया की होटल की बजाय सरकारी गेस्टहाउस में ठहरने को प्राथमिकता दें। यही नहीं चुनाव को छोड़ दें तो राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पदाधिकारियों के लिए चार्टेड विमान पूरी तरह से प्रतिबंधित है और अमित शाह स्वयं इस आदेश का पालन भी करते हैं। इन सबसे अतिरिक्त शाह ने भाजपा में जो एक कई परंपरा की शुरुआत की जिसकी चर्चा कहीं नही होती, वो है केन्द्रीय स्तर से लेकर राज्य तथा जिला इकाइयों तक पुस्तकालय एवं ग्रंथालय का निर्माण। जब राजनीति में सक्रिय लोग पठन –पाठन से विमुख हो रहे हैं ऐसे समय में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अमित शाह अपने नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को इससे जोड़ रहे हैं। वास्तव में इसे एक अनूठा प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए। बहरहाल, अमित शाह साधारण विषय पर असाधारण निर्णय लेने वाले व्यक्ति हैं। आने वाला ये साल उनके लिए काफ़ी अहम है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जी को उनके जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं !