भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह हाल ही में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। राज्य की सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिलने की नाराजगी का गान और ‘कमल का फूल मेरी भूल’ के नारे के साथ उन्होंने राहुल गांधी के सामने अपने पिता की राजनीतिक विरासत का आत्मसमर्पण कर दिया। कांग्रेस उन्हें पाकर जैसे धन्य हो गई है और राजपूत वोट पर अपना दावा मजबूत करने में जुट गयी है। बात अगर राजपूत वोटों की हो तो वसुंधरा राजे से बड़ा चेहरा राजस्थान में अभी कोई नजर नहीं आ रहा। हालांकि, इतना तय है कि मानवेंद्र को पार्टी में शामिल कर जाटों की नाराजगी जरूर मोल ली है।
राजस्थान की राजनीति में जाट और राजपूत हमेशा आमने-सामने रहे हैं। मानवेंद्र सिंह के शामिल होने से कांग्रेस को लेकर जाटों में नाराजगी है। मानवेंद्र सिंह ने मीडिया से चीख-चीख कर बताया कि वसुंधरा सरकार सिर्फ उनका इस्तेमाल कर रही थीं। उनके पिता को लोकसभा चुनाव में बाड़मेर से टिकट नहीं दिया गया था। लोकसभा चुनाव 2014 में हुए थे लेकिन मानवेंद्र को इसकी याद 2019 लोकसभा चुनाव से पहले आई। दरअसल, 2013 राजस्थान विधानसभा चुनाव में मानवेंद्र सिंह को बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बनाया था। चुनाव जीतने के बाद वसुंधरा सरकार ने उन्हें कोई मंत्री पद नहीं दिया क्योंकि मानवेंद्र पहली बार विधायक बने थे। राजनीतिक मलाई का स्वाद नहीं चखने के कारण मानवेन्द्र सिंह को अपने अपमान की याद विधानसभा चुनाव से ठीक दो महीने पहले आई। स्पष्ट रूप से राहुल गांधी के साथ मुस्कुराता हुआ फोटो शेयर करना उनके पिता की राजनीतिक विरासत को आघात पहुंचाने वाला रहा होगा।
कांग्रेस ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए राजस्थान को लेकर सत्ता विरोधी लहर को खूब तुल दे रही है। मीडिया के एक धड़े का भी इस पुरानी पार्टी का भरपूर सहयोग मिला है। राजस्थान में अपने युवा चेहरे सचिन पायलट के नाम से उत्साहित कांग्रेस ये भूल रही है कि सचिन पायलट गुज्जर समुदाय से आते हैं जिस वजह से दलित और मुस्लिम वोट उसके हाथ से छिटक सकता है। प्रदेश में दलितों और मुस्लिमों का गुज्जरों के साथ परंपरागत दुश्मनी का एक लम्बा इतिहास रहा है। राज्य के कई जिलों में इन जातियों के बीच तनाव की स्थिति है। सचिन पायलट और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच भीतरखाने ही रस्साकस्सी जारी है। लोग सचिन पायलट को राजस्थान में सीएम के तौर पर नहीं चाहते हैं।
कांग्रेस को ऐसा लगता है कि राजस्थान की जनता वसुंधरा सरकार से नाराज हैं और इसका सीधा फायदा उसकी पार्टी को मिलने वाला है। जबकि वास्तविकता इससे बिलकुल अलग है और इसकी झलक राहुल गांधी के फ्लॉप रोड शो से पहले ही मिल चुका है. राजस्थान चुनाव की पूरी कमान अमित शाह ने अपने हाथ में ले ली है। पार्टी की पकड़ को और मजबूत करने के लिए अमित शाह पूरे राज्य का भ्रमण कर रहे हैं। भाजपा राजस्थान को उत्तरप्रदेश के तर्ज पर लड़ना चाहती है तभी तो बीजेपी ने राज्य में प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्या को कमान थमाई है। अमित शाह ने राजस्थान में वसुंधरा सरकार से ज्यादा केंद्रीय नेतृत्व को आगे रखने का फैसला किया है जिससे नरेंद्र मोदी के नाम पर पार्टी और संगठन में जान फूंका जा सके। वसुंधरा राजे के बारे में एक बात कही जाती है कि वो कभी अपने शक्ति का खुला प्रदर्शन नहीं करती लेकिन समय आने पर कैसे माहौल को बदला जाता है ये उनसे अच्छा किसी की नहीं आता है। कांग्रेस राजस्थान में अति आत्मविश्वास का शिकार हो चुकी है और शायद यही कारण है कि पार्टी की चुनावी रणनीति में धार नहीं दिख रही है।
मानवेंद्र सिंह कांग्रेस में शामिल हो गये हैं और शायद कुछ और नेता कांग्रेस में शामिल हो हों तो कुछ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होंगे। ये एक सहज प्रक्रिया है जो हर चुनाव के पहले होती है। मानवेंद्र सिंह के व्यक्तित्व में न अपने पिता के जैसा करिश्मा है और न ही वो प्रखरता। मारवाड़ में राजपूत वोट का सौदागर कोई भी नेता होने का दावा नहीं कर सकता। कांग्रेस को नहीं भूलना चाहिए कि मारवाड़ क्षेत्र में जाटों की आबादी राजपूतों से ज्यादा है। मानवेंद्र सिंह के पार्टी में शामिल होने से जाटों में भारी नाराजगी है। कांग्रेस जिसे अपना ट्रंप कार्ड बता रही है वो सबसे बड़ा धोखा साबित होने वाला है।