कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अपने बयान में कहा है कि गांधी वंशज कांग्रेस पार्टी के पीएम पद के उम्मीदवार नहीं होंगे। उन्होंने ये बयान एक इंटरव्यू में दिया है। मनी कंट्रोल रिपोर्ट के अनुसार, 5 अक्टूबर को अपने बयान में राहुल गांधी ने कहा था, “हमने सहयोगियों के साथ चर्चा की है और इस चर्चा के बाद जिस नतीजे पर पहुंचे हैं वो ये है कि हमारा पहला उद्देश्य ये है कि बीजेपी को हराना है और उसके बाद ही कोई अन्य निर्णय लिया जायेगा।”
जबकि पी चिदंबरम के हाल के बयान पर गौर करें तो उससे यही लगता है कि बीजेपी-विरोधी लहर के प्रति क्षेत्रीय पार्टियों के ठंडे रुख से कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियां पीएम उम्मीदवार के तौर पर राहुल गांधी को पसंद नहीं कर रही हैं। अपने बयान में उन्होंने कहा,“हमारी पार्टी ने कभी ये नहीं कह कि हम राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, हम एक गठबंधन तैयार करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री पद का फैसला चुनाव के बाद गठबंधन के सभी साथी मिलकर करेंगे।” इससे साफ है कि बीजेपी विरोधी पार्टियां राहुल गांधी के नेतृत्व में महागठबंधन में नहीं आना चाहती हैं। ये किसी से छुपा नहीं है कि बीजेपी-विरोधी ममता बनर्जी की महत्वकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है। महागठबंधन के लिए अन्य विपक्षी पार्टियां भी राहुल गांधी का नेतृत्व नहीं चाहती हैं। ऐसा लगता है कि पी चिदंबरम का ये बयान सहयोगी पार्टियों को साथ लाने के लिए है।
वास्तव में पीएम मोदी और राहुल गांधी के बीच सीधे टकराव से कांग्रेस को सिर्फ नुकसान ही हुआ है। अधिकतर क्षेत्रीय पार्टियां राहुल गांधी के नेतृत्व में आगे नहीं बढ़ना चाहती हैं। लोकप्रियता के मामले भी राहुल गांधी पीएम मोदी से कहीं ज्यादा पीछे हैं। हाल ही में द इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) के सर्वे में भी ये सामने आया था। इस सर्वे में 48 फीसदी लोग पीएम मोदी को राष्ट्रीय मोर्चे के नेतृत्व के लिए पसंद किया। जबकि सिर्फ 11 फीसदी लोगों की पसंद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हैं जबकि दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल 9।3 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। इस सर्वे में 712 जिलों से 57 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था और 55 दिनों के बाद इस सर्वे के नतीजे घोषित किये गये थे।
इस सर्वे के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि पीएम मोदी आज भी देश की जनता की पहली पसंद हैं। राहुल गांधी पीएम मोदी की लोकप्रियता के आसपास भी नहीं है। हालांकि, कांग्रेस वंशज की लोकप्रियता के आसपास दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल जरुर हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जिस तरह से झूठे दावों और अपने ‘इच्छाधारी हिंदुत्व’ के ढोंग की वजह से चर्चा में रहते हैं वो कसी से छुपा नहीं है। आम जनता पहले की तरह नासमझ नहीं है जो बिना तथ्यों की जांच के झूठ पर भरोसा कर ले। साल 2014 के आम चुनावों के दौरान भी कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को बुरी हार का सामना करना पड़ा था और अब ऐसा लगता है कि एकबार फिर से साल 2019 में बुरी हार का सामना करने वाली है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को इस बात का पहले ही अंदेशा है तभी तो वो जैसे जैसे चुनाव पास आ रहे हैं क्षेत्रीय पार्टियों को रिझाने के प्रयासों को और मजबूत करने में जुटते जा रहे हैं। कल तक राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार बताने वाली पार्टी को अपनी बुरी स्थिति की वजह से क्षेत्रीय पार्टियों के सामने झुकना पड़ रहा है क्योंकि कांग्रेस सत्ता में आने के लिए हताश है इसी वजह से वो सिर्फ पीएम मोदी को हरान एके लिए कोई भी समझौता करने को तैयार हो गये हैं।