गुजरात के केवड़िया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सरदार वल्लभ भाई पटेल की 143वीं जयंती पर उनकी नवनिर्मित 182 मीटर ऊंची विशाल प्रतिमा स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का अनावरण किया।
#WATCH: Inauguration of Sardar Vallabhbhai Patel's #StatueOfUnity by PM Modi in Gujarat's Kevadiya pic.twitter.com/PKMhielVZo
— ANI (@ANI) October 31, 2018
#WATCH: Celebrations underway near Sardar Vallabhbhai Patel's #StatueOfUnity in Gujarat's Kevadiya that will be inaugurated by Prime Minister Narendra Modi today. #RashtriyaEktaDiwas pic.twitter.com/ioafhMipKd
— ANI (@ANI) October 31, 2018
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के अनावरण के मौके पर गुजरात के राज्यपाल ओमप्रकाश कोहली, सीएम विजय रुपाणी, उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत कई बड़े लोग उपस्थित रहे। ये प्रतिमा चीन स्थित प्रिरंगफील्ड बुद्धा की 153 मीटर ऊंची मूर्ति को आधिकारिक तौर पर पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ न्यूयार्क स्थित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से करीब दो गुनी है। नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध से 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये प्रतिमा लगभग तीन हजार करोड़ रूपये की लागत से बनी है। इस प्रतिमा को बनाने में करीब साढ़े तीन साल लगे हैं। साल 2013 में 31 अक्टूबर को तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार वल्लभभाई पटेल की 138 जयंती पर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का शिलान्यास किया था जिसके बाद इस प्रतिमा को बनाने का काम एल एंड टी कंपनी को साल 2014 में सौंपा गया था जो अब पूरा हो चुका है। रिपोर्ट्स के अनुसार इस प्रतिमा को बनाने में 70 हजार टन सीमेंट और लगभग 24000 टन स्टील, तथा 1700 टन तांबा और 1700 टन कांसा लगा है। सबसे ख़ास बात रही कि इस प्रतिमा के अनावरण के साथ ही पद्मभूषण राम वी. सुतार के नाम दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने का रिकॉर्ड दर्ज हो गया है।
अब सवाल ये है कि दुनिया की सबसे उंची प्रतिमा के लिए लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम ही क्यों चुना गया? सरदार वल्लभ भाई पटेल का देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हर साल 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की जयंती मनाई जाती है वो स्वतंत्र भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे, यही नहीं उन्हें आधुनिका भारत का निर्माता भी कहा जाता है। वो पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आईसीएस) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आईएएस) बनाया था। कहा जाता है कि वो देश के पहले प्रधानमंत्री होते अगर महात्मा गांधी ने हस्तक्षेप न किया होता। दरअसल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में महात्मा गांधी के बाद सरदार पटेल अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार थे। जब महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पद को छोड़ा था तब सरदार वल्लभ भाई पटेल पर अध्यक्ष पद की दावेदारी से अपना नाम वापस लेने के लिए दबाव डाला गया था जिसके बाद जवाहरलाल नेहरू को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नेहरू सरकार का गठन किया था। यदि सरदार वल्लभ भाई पटेल पर दबाव न बनाया गया होता तो शायद आज वो देश के पहले प्रधानमंत्री होते। हालांकि, ऐसा नहीं हो पाया शायद गांधी परिवार को ये डर था कि अगर सरदार जी प्रधानमंत्री बनते तो गांधी परिवार की पकड़ देश व सरकारी कार्यों में कमजोर हो जाएगी। आगर वो कुछ समय और जीवित होते तो शायद उनकी अगुवाई में नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। हमेशा ही वल्लभ भाई पटेल ने देश की जनता और देश के लिए काम किया है लेकिन उन्हें वो सम्मान कभी नहीं मिला जो जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी व अन्य नेताओं को मिला है। आज उनकी प्रतिमा के अनावरण के साथ ही सरदार पटेल जी को बड़ा सम्मान दिया गया है। उन्होंने हमेशा ही देश की एकता के लिए काम किया है। भले ही अंग्रेजों के चुंगल से भारत 200 सालों बाद आजाद हुआ था लेकिन जाते जाते अंग्रेजों ने देश को बांटने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। भारत एक होते हुए कई टुकड़ों में बंटा हुआ था लेकिन ये सरदार पटेल जी ही थे जिन्होंने भारत को बिखरने से बचाया था। वास्तव में आज उनकी निष्ठा, और कठिन प्रयास को बड़ा सम्मान मिला है जिसके वो हकदार हैं। उनकी प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ मातृभूमि की एकजुटता का प्रतीक है।