महाराष्ट्र के पुणे हाई कोर्ट से अर्बन नक्सलियों को एक और बड़ा झटका लगा है। इस बार पुणे हाई कोर्ट ने सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसाल्विस और अरुण परेरा की जमानत याचिका खारिज कर दी। वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट ने पहले ही नवलखा की गिरफ्तारी पर रोक लगाकर 1 नवंबर तक उन्हें राहत दी है। पुणे हाई कोर्ट के आदेश के बाद अर्बन नक्सल मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने वर्नोन गोंसाल्विस को मुंबई के अंधेरी में उनके घर से और अरुण परेरा को ठाणे में उनके घर से गिरफ्तार कर लिया है। अपने फैसले में पुणे हाई कोर्ट ने हाउस अरेस्ट की मियाद एक हफ्ते के लिए बढ़ाने की गुजारिश भी खारिज कर दी है।
बता दें कि इसी साल जून में महाराष्ट्र पुलिस ने भीमा-कोरेगांव हिंसा की जांच के दौरान 5 लोगों को गिरफ्तार किया था। पुलिस की जांच में ये पाया गया कि माओवादी 21 मई 1991 में हुई पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करना चाहते थे। पीएम मोदी की हत्या की साजिश से जुडी कड़ी में पुलिस की स्पेशल टीम ने देशभर के कथित नक्सल समर्थकों के घरों व कार्यालयों पर ताबड़तोड़ छापेमारी करने शुरू की। अकादमिक, वकील, मीडिया और तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर के कई हाई प्रोफ़ाइल लोगों के घरों पर छापेमारी की गयी थी। इस मामले में पुलिस ने सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवर राव, वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फरेरा को गिरफ्तार किया था।
इन सभी कार्यकर्ताओं पर भीमा कोरेगांव हिंसा एल्गार परिषद से जुड़े होने का भी आरोप है। पुलिस ने ने आरोप लगाया है कि इन नक्सलियों ने पुणे में एल्गार परिषद सम्मेलन में सहायता की थी जिसके बाद ही हिंसा फैली थी। जून में पांच अन्य कार्यकर्ता शोमा सेन, सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत, रोना विल्सन और सुधीर ढवाले भी गिरफ्तार किए गए थे।
इस गिरफ्तारी को लेकर पूरे देश में वामपंथी गैंग ने विरोध करना शुरू कर दिया था। गिरफ्तारी को लेकर बढ़ते विवाद के बाद ये मामला इसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में गिरफ्तार किए गये सभी पांच कार्यकर्ताओं को हाउस अरेस्ट करने के आदेश दिए थे। इसके बाद सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवर राव, वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फरेरा के मामले में एसआईटी से जांच कराने की मांग की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पिछली सुनवाई में इस मामले में एसआईटी जांच से इंकार कर दिया था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस को ही इस मामले की जांच आगे बढ़ाने को कहा था। इसके बाद रोमिला थापर ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। हाई कोर्ट ने इतिहासकार रोमिल थापर की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दिया जिसमें रोमिला ने एसआइटी को भीमा कोरेगांव मामले की जांच करने और महाराष्ट्र पुलिस को अपनी जांच को रोकने के लिए कहा था। इसके बाद अरुण परेरा, गोंजाल्विस और सुधा भारद्वाज वर्नोन गोंसाल्विस और अरुण परेरा की जमानत याचिका को भी पुणे हाई कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया और वर्नोन गोंसाल्विस और अरुण परेरा को गिरफ्तार करने के आदेश दिए।
इस बीच शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार ने एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जिसका नेतृत्व डीजीपी करेंगे। ये समिति जांच करेगी कि क्या भीमा कोरेगांव हिंसा और मराठा आरक्षण आंदोलन के बाद हुए प्रदर्शनों के दौरान दायर मामलों में से किसी मामले को वापस लिया जा सकता है। दरअसल, भीमा कोरेगांव हिंसा और मराठा आरक्षण आंदोलन के बाद हुए प्रदर्शनों के दौरान निजी या सरकारी संपत्तियों का करीब का भारी नुकसान हुआ था। पुलिस ऐसे मामलों को वापस लेने पर विचार कर सकती है जिसमें न तो किसी की जान न गयी हो और न ही पुलिस पर सीधा हमला किया गया हो। साथ ही ऐसे मामले जिसमें 10 लाख से कम का नुकसान हुआ हो या आरोपी हुए नुकसान की कीमत चुकाने के लिए तैयार हो। पुणे हाई कोर्ट के फैसले से स्पष्ट है कि अब इन अर्बन नक्सलियों के भाग्य का फैसला जांच में मिले साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर होगा। पुलिस द्वारा गिरफ्तारी से साफ़ है जल्द ही इस मामले से पूरी तरह से पर्दा उठने वाला है।