कांग्रेस के ‘हिंदुत्व का ढोंग’ अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है

इलाहाबाद प्रयागराज योगी

अगले साल होने वाले अर्ध कुंभ मेले से पहले ही योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कुंभ मेला मार्गदर्शक मंडल की बैठक में इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने का रास्ता साफ कर दिया। योगी आदित्यनाथ ने बैठक के बाद कहा, “मेले के शुरू होने से पहले ही इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज हो जायेगा।” इंडिया टुडे के अनुसार, उन्होंने कहा, “कुंभ मेले की तैयारियों की समीक्षा के लिए हुई इस बैठक में अखाड़ा परिषद और अन्य ने इलाहबाद के नाम को बदलने को लेकर एक प्रस्ताव दिया था। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने भी इस पर सहमति जताई है।” उन्होंने आगे कहा, हमने प्रस्ताव का समर्थन किया और जल्द ही इलाहाबाद जिले का नाम प्रयागराज में बदल दिया जाएगा।“ ऐसा लगता है कि यूपी सरकार के इस कदम से कांग्रेस बौखला गयी है।

यूपी सरकार अतीत में आक्रमणकारियों द्वारा किये गये बदलावों को पुनः स्थापित कर रही है। गोरखपुर से संसद के सदस्य रहते हुए भी सीएम योगी ने अपने कार्यकाल के दौरान ऐसे कई बदलाव किए थे। गोरखपुर में मिया बाज़ार का नाम बदलवाकर उन्होंने माया बाजार करवाया था। इसी प्रकार उर्दू बाजार का नाम बदलकर उन्होंने हिंदी बाजार रखा था। उन्होंने अली नगर बाजार का नाम  बदलकर आर्य बाजार रखा था। उत्तर प्रदेश के चुनाव के दौरान इंडिया टीवी को दिए एक इंटरव्यू में स्पष्ट किया था कि वो इस तरह के बदलाव करना जारी रखेंगे। उन्होंने अपने इंटरव्यू में ऐसा करने के पीछे की वजह को समझाया भी था और कहा था कि वास्तव में कुछ बदला नहीं है बल्कि वो इतिहास के आधार पर उन्हें अपनी मूल पहचान देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इतिहास में देखें तो आप पाएंगे कि इन सभी जगहों का नाम बाहरी शक्तियों द्वारा बदले गये थे और अब वो इन जगहों का नाम बदलकर बस अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं और उन्हें उनकी मूल पहचान दे रहे हैं। किसी को भी इन बदलावों से कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।

वास्तव में सीएम योगी सीएम योगी कुछ नया नहीं कर रहे हैं बल्कि अतीत में आक्रमणकारियों द्वारा की गयी गलतियों को सुधारकर सभी को उनके मूल रूप से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसी साल उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘दीनदयाल उपाध्याय’ किया था। उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम ‘दीनदयाल उपाध्याय’ रखने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने केंद्र से बरेली, कानपुर और आगरा एयरपोर्ट का नाम भी बदलने के लिए केंद्र के समक्ष प्रस्ताव रखा गया था। यूपी के नागरिक उड्डयन विभाग के प्रस्ताव के मुताबिक, बरेली एयरपोर्ट का नाम ‘नाथ नगरी’ रखा जाना है जो इस शहर का पुराना नाम माना जाता है। बरेली अपने इतिहास के लिए मशहूर है और ये सात नाथ शिव मंदिरों- आलखनाथ, त्रिवतीनाथ, मराहिनाथ, ढोपेश्वरनाथ, वांकखंडनाथ, तापेश्वरनाथ और पशुपतिनाथ से घिरा हुआ है। राज्य सरकार का प्रस्ताव बरेली के महान इतिहास के विवरण को बता रहा है।

जिस नाथ सम्प्रदाय से यूपी के सीएम योगी आदित्‍यनाथ हैं, माना जाता है कि ‘नाथ पंत’ (मठवासी आंदोलन) स्थापना आदिनाथ भगवान शिव ने की थी। इस ‘नाथ पंत’ (मठवासी आंदोलन) के संस्थापक महायोगी गोरखनाथ के नाम पर IAF के गोरखपुर हवाई अड्डे का नाम रखा गया था। वहीं, दूसरी तरफ, कानपुर के चकेरी हवाई अड्डे का नाम स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी के नाम पर रखने का प्रस्ताव है। कहा जाता है कि कानपुर का पुराना नाम कान्हापुर था जिसे सचेंडी के राजा हिंदू सिंह ने बसाया था। राज्य सरकार ने आगरा एयरपोर्ट का नाम बदलकर आरएसएस विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम रखने का प्रस्ताव पहले ही रख चुकी है अब बस इन्हें मंजूरी मिलने की देरी है।

जब सभी स्थानों के पुराने नाम को पुनः स्थापित किया जा रहा है ऐसे में अगर इलहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज किया जा रहा है तो इससे विपक्ष क्यों परेशान है? बता दें कि सीएम योगी आदित्यनाथ से पहले साल 2001 में जब मौजूदा यूपी के सीएम राजनाथ सिंह ने इलाहाबाद के प्रयागराज के नाम रखने की कोशिश की थी, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो पाए थे।

कांग्रेस इस मामले में बड़ी ही चतुरता के साथ ‘नर्म हिंदुत्व’ की आड़ में बीजेपी पर निशाना साध रही है और हिंदूवादी ढोंग की सभी सीमाओं को भी पार कर दिया है। कांग्रेसी नेता प्रमोद तिवारी ने कहा, “इलाहाबाद का एक इतिहास, सभ्यता और प्रशासनिक वजूद रहा है उसको ख़त्म किया जा रहा है। हम लोगों को उसकी गरिमा को कम होने से रोकना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा, “नाम बदलने से पहले इलाहाबाद की खोई हुई राजनीतिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक गरिमा है उसे वापस कर दें।” ये समझ से बाहर है कि कांग्रेसी नेता किस इतिहास, सभ्यता और प्रशासनिक वजूद की बात कर रहे हैं जो एक विदेशी आक्रमणकारी द्वारा दिए गये नाम का समर्थन करता है? इलाहबाद का वजूद गंगा-यमुना के संगम से है और पूरी दुनिया में इसे तीन नदियों के संगम के लिए जाना जाता है और अकबर ने अपने शासन काल में इस जिले का नाम बदल दिया था। अगर आज योगी सरकार फिर से पुराने नाम को पुनः स्थापित कर प्रयागराज कर रही है तो इसमें गलत क्या है? वास्तव में ऐसा करना इतिहास, सभ्यता और संस्कृति के साथ न्याय होगा। हालांकि, कांग्रेस को तब कोई फर्क नहीं पड़ता अगर योगी जी इलाहबाद का नाम नेहरू-गांधी परिवार के नाम से जुड़ा कोई नाम रखते। कांग्रेस खुद कितने ही स्थानों का नाम बदलकर नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर रख चुकी है लेकिन इससे किसी भी सभ्यता और संस्कृति पर गलत प्रभाव नहीं पड़ता। है न ? ये कहना गलत नहीं होगा कि इलाहबाद का नाम बदलकर प्रयागराज रखने के मामले ने कांग्रेस अध्यक्ष और तथाकथित ‘जनेऊधारी’ राहुल गांधी और उनकी पार्टी का हिंदुत्व का ढोंग सामने आ गया है।

अखिलेश यादव ने भी मौका देखा और इस मामले पर योगी सरकार पर निशाना साधा और कहा,

ये वही अखिलेश यादव हैं जिन्होंने अपने शासनकाल में राज्य के आठ जिलों के नाम बदले थे। उन्होंने यूपी में अपने शासनकाल के दौरान छत्रपतिशाहूजी महाराज नगर (अमेठी) जिले का नाम बदलकर गौरीगंज,रमाबाई नगर जिले का नाम बदल कर कानपुर देहात का पुराना नाम दिया था। इसके अलावा भीमनगर, प्रबुद्धनगर और पंचशीलनगर जिले अब क्रमश: बहजोई, शामली और हापुड़ के नाम से जाने जाते हैं, जो कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाने पहचाने नाम थे। इसी प्रकार उन्होंने कांशीराम नगर, महामायानगर और जेपीनगर का नाम बदल कर कासगंज, हाथरस और अमरोहा कर दिया था। क्या उनके द्वारा उठाया गया ये कदम परम्परा और आस्था के साथ खिलवाड़ नहीं था? उनके मुताबिक तो बिलकुल नहीं था क्योंकि वो राज्य के इन जिलों के मूल नाम फिर से स्थापित किये थे। ये महान काम किया था उन्होंने लेकिन अगर यही काम सिएं योगी जी ने किया तो वो आस्था के साथ खिलवाड़ कैसे हो गया इसे तो अब अखिलेश यादव ही समझा सकते हैं।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार राज्य में हिंदू विरासत को बहाल करने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। इलाहाबाद का नाम पुनः स्थापित कर वास्तव में वो इस शहर की खोई हुई राजनीतिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक गरिमा को फिर से स्थापित कर रहे हैं।

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