फेक न्यूज को लेकर बीबीसी (ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन) के एक नए रिसर्च में सामने आया है कि,”लोग राष्ट्र निर्माण की भावना से राष्ट्रवादी संदेशों वाले फेक न्यूज को फैला रहे हैं।” इस रिसर्च में कहा गया है कि “राष्ट्रवादी पहचान के लिए लोग तथ्यों को महत्व न देते हुए फेक न्यूज़ को शेयर कर रहे हैं।”
फेक न्यूज़ पर शिकंजा कसने के लिए 12 नवंबर को बीबीसी ने एक खास अभियान की शुरुआत की जिसका नाम #BeyondFakeNews दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य फेक न्यूज़ फैलाने वालों को बेनकाब करना है। मीडिया हो या अखबर या प्रशासनिक अधिकारी हर जगह पर नजर रखने की बात कही जा रही है।
इस रिसर्च में उन भारतीय नागरिकों की आवाज को सुना जायेगा जिन्हें अक्सर दबा दिया जाता है लेकिन बीबीसी ने जिन लोगों को इसके लिए चुना है वो तो कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। आम आदमी पार्टी के समर्थक यू-ट्यूब ब्लॉगर ध्रुव राठी जो फेक न्यूज़ फैलाते हैं। ध्रुव राठी के खिलाफ सोशल मीडिया एक्टिविस्ट विकास पांडेय ने सिविल मानहानि का मुकदमा भी दर्ज किया है। विकास पांडेय ने ये मानहानि ध्रुव राठी के एक तीन सीरीज वाले वीडियो को लेकर किया था जिसमें ध्रुव राठी ने जो दावें किये थे वो विकास पांडेय की छवि को खराब करने का उद्देश्य नजर आ रहा था। इसकी जानकारी विकास पांडेय ने सोशल मीडिया पर भी दी थी।
केरल में आई आपदा के दौरान ध्रुव राठी ने दावा किया था कि बीजेपी शासित राज्यों ने बाढ़ प्रभावित राज्य केरल की मदद के लिए आगे नहीं आये और न ही एक रुपया सहायता राशि के तौर पर दी। इस तरह के ट्वीटस लोगों को गुमराह कर रहे हैं और बीबीसी अपने रिसर्च में ये साबित भी कर दिया कि इस तरह के ट्विटर यूजर्स आम जनता की भावनाओं के साथ खेलते हैं, इसके अलावा राजनीतिक और व्यक्तिगत फायदे के लिए फेक न्यूज़ फैलाते हैं।
स्वरा भास्कर जो अक्सर ही एक नए विवाद की वजह से चर्चा में रहती हैं। एक बार फिर से उन्होंने विवाद को जन्म दिया जब उन्होंने एक न्यूज़ पोर्टल के खिलाफ कार्रवाई की थी वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि इस न्यूज़ पोर्टल ने उनके बारे एक खबर प्रकाशित की थी। अपने छोटे से करियर में ही अपनी प्रतिभा से जायद उन्होंने विवादों को जन्म दिया है। पद्मावत पर स्वरा का संदेश मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचने का एक भद्दा प्रयास था।
ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि बीबीसी इस तरह के लोगों को फेक न्यूज़ अभियान के खिलाफ लड़ाई में शामिल कर रही है जो मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचने और विवाद को जन्म देने के लिए जाने जाते हैं जो तथ्यों पर आधारित खबरों को तुल नहीं देते। ऐसे में बीबीसी के पैनलिस्ट के कामों पर संदेह होना लाजमी है। बीबीसी को अपने रिसर्च अभियान ऐसे लोगों को शामिल करना चाहिए जो वास्तव में फेक न्यूज़ के खिलाफ हैं। ऐसा लगता है कि बीबीसी ऐसे लोगों को मंच देकर लोगों की भावनाओं के साथ खेलने की कोशिश कर रही है। बीबीसी को अपनी रिसर्च में लोगों का चुनाव करने से पहले एक बार उनके बारे में पूरी जानकारी जरुर लेनी चाहिए।