हाल ही में बीबीसी (ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन) के एक नए रिसर्च में फेक न्यूज को लेकर कई नामी मीडिया वेबसाइट्स और दिग्गजों के नाम का खुलासा किया। बेटर इंडिया भी उनमें से एक थी जो भारत से जुड़ी सकारात्मक खबरें दिखाती है उसे भी अपनी रिपोर्ट में बीबीसी ने फेक न्यूज़ फैलाने की सूची में शुमार किया है। इसके बाद बेटर इंडिया ने इसे गंभीरता से लिया और बीबीसी को रिपोर्ट किया। अपने जवाब में बीबीसी ने लिखा, हमने आपकी शिकायत पर गौर किया और पाया कि बड़े पैमाने पर फेक न्यूज का कारोबार करने वाली मीडिया के बारे में जानकारी एकजुट करने के दौरान हमसे गलती हुई है। बेटर इंडिया को इस सूची में शामिल नहीं किया जाना चाहिए था और हम इस गलती के लिए माफ़ी चाहते हैं।
हालांकि, बेटर इंडिया ने ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन से उसकी छवि को धूमिल करने के लिए सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगने की मांग की।
In its recent report on fake news, @BBC @BBCIndia falsely accused us of spreading fake news. We wrote to them and here is their response, confirming their mistake citing ‘human error’. We expect a public apology from them for maligning years of our hard work. Please RT. pic.twitter.com/1XNalsXtkw
— The Better India (@thebetterindia) November 17, 2018
बेटर इंडिया ने बहुत ही बढ़िया कदम उठाया, जब बीबीसी सार्वजनिक तौर पर एक न्यूज़ वेबसाइट की छवि को धूमिल किया है तो उसे माफ़ी भी सार्वजनिक तौर ही मांगनी चाहिए।
Thanks for the support! But we don’t think it has been sorted yet. They maligned us in public but the apology was in private. We demand a public apology from them.
— The Better India (@thebetterindia) November 17, 2018
In its recent report on fake news @BBC falsely accused @thebetterindia of spreading fake news. We wrote to them and here is their response, confirming their mistake. Citing ‘human error’ reflects a very shoddy job. We demand a public apology for maligning us. @Trushar @BBCIndia pic.twitter.com/gxgu0pweh3
— Dhimant Parekh (@dhimant) November 17, 2018
बेटर इंडिया एकमात्र ऐसी वेबसाइट है जो कभी नकारात्मक खबरें नहीं दिखाती है ऐसे में फेक न्यूज फैलाने का तो सवाल ही नहीं उठता है।
ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन की इस ‘गलती’ ने इसके फेक न्यूज अभियान की विश्वसनीयता पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसकी रिपोर्ट में जो आंकड़े पेश किये जा रहे हैं और जिन्हें पनेलिस्ट के लिए चुना गया है उसे लेकर पहले ही भारत में मजाक उड़ाया जा रहा है। ये रिपोर्ट तीन देशों के सर्वे के विश्लेषण पर आधारित थी। इसके साथ इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 80 लोगों का इंटरव्यू लिया गया था जिसमें से भारत से सिर्फ 40 लोग शामिल थे।
अब जरा इन आंकड़ों पर गौर करते हैं। भारत की जनसंख्या 1.3 अरब की है। 30 मिलियन से अधिक ट्विटर उपयोगकर्ता हैं, लगभग 300 मिलियन फेसबुक उपयोगकर्ता, और बीबीसी ने जितने लोगों का इंटरव्यू लिया उनकी संख्या सिर्फ 40 है। भारत की जनसंख्या इतनी बड़ी है लेकिन रिसर्च के लिए लोगों की गिनती समुद्र में एक बूंद पानी की तरह है और इसी के आधार पर ये तय कर दिया कि कौन सी मीडिया वेबसाइट फेक न्यूज फैलाती है। ये एक गणित में कमजोर व्यक्ति भी समझ सकता है कि रिसर्च का आधार बहुत ही कमजोर है।
दूसरी बात, बीबीसी ने फेक न्यूज के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में दिव्या स्पंदना और अंकित लाल जैसे लोगों को आमंत्रित किया जो अक्सर ही सोशल मीडिया पर लोगों को गुमराह करने और गलत जानकारी देने के लिए ट्रोल होते हैं।
जिस तरह के लोगों को बीबीसी ने चुना है वो खुद फेक न्यूज के कारोबार को बढ़ावा देते रहे हैं। ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि बीबीसी इस तरह के लोगों को फेक न्यूज़ अभियान के खिलाफलड़ाई में शामिल कर रही है जो मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचने और विवाद को जन्म देने के लिए जाने जाते हैं जो तथ्यों पर आधारित खबरों को तुल नहीं देते। ऐसे में बीबीसी के पैनलिस्ट के कामों पर संदेह होना लाजमी है। बीबीसी को अपने रिसर्च अभियान ऐसे लोगों को शामिल करना चाहिए जो वास्तव में फेक न्यूज़ के खिलाफ हैं। ऐसा लगता है कि बीबीसी ऐसे लोगों को मंच देकर लोगों की भावनाओं के साथ खेलने की कोशिश कर रही है। बीबीसी को अपनी रिसर्च में लोगों का चुनाव करने से पहले एक बार उनके बारे में पूरी जानकारी जरुर लेनी चाहिए।