मोदी सरकार के अधिकार को कम करने के लिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंदशेखर नायडू के बाद अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को राज्य में छापे मारने या जांच करने के लिए दी गई ‘सामान्य रजामंदी’ वापस ले ली है। ये विवादस्पद कदम केंद्र-राज्य के संबंध को प्रभावित करेगा। गौर हो कि, सीबीआई की स्थापना1946 में दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट एक्ट- 1946 के ज़रिए हुई थी। सीबीआई के दायरे में दिल्ली और अन्य केंद्र शासित प्रदेश आते हैं लेकिन इस कानून के सेक्शन-6 के मुताबिक़, दूसरे किसी राज्य में कार्रवाई करने के लिए सीबीआई को राज्य सरकार से लिखित इजाज़त लेना जरुरी होता है। हालांकि, अगर किसी मामले में जांच के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए हों तो इस स्थिति में राज्य की अनुमति अनिवार्य नहीं होती है। आंध्र प्रदेश सरकार ने इसी साल 3 अगस्त को सीबीआई को दी गयी ‘सामान्य रजामंदी’ को वापस लिया था। अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी ‘सामान्य रजामंदी’ को वापस ले लिया है। ऐसे में अब राज्य में किसी मामले में सीबीआई जांच के लिए राज्य सरकार की इजाज़त जरुरी होगी वो भी लिखित में अन्यथा सीबीआई खुद कोई जांच नहीं कर पायेगी।
इसी साल अगस्त में चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने सीबीआई को राज्य में कानून के तहत शक्तियों के इस्तेमाल के लिए दी गयी समान्य रजामंदी वापसी ली थी। राज्य की प्रधान सचिव (गृह) ए आर अनुराधा द्वारा आठ नवंबर को इस संबंध में जारी एक ‘गोपनीय’ सरकारी आदेश ‘लीक’ हो गया था। इस आर्डर में कहा गया था, “दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 की धारा 6 के तहत दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, सरकार दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के सभी सदस्यों को आंध प्रदेश राज्य में इस कानून के तहत शक्तियों तथा क्षेत्राधिकार के इस्तेमाल हेतु दी गई सामान्य रजामंदी वापस लेती है।” शुरुआत में ममता बनर्जी ने चंद्रबाबू नायडू के इस फैसले का जबरदस्त समर्थन किया और कुछ समय बाद उन्होंने भी अपने राज्य में सीबीआई को मिलने वाली ‘सामान्य रजामंदी’ को वापस ले लिया।
तृणमूल कांग्रेस कोर कमेटी की एक बैठक में ममता बनर्जी ने कहा, “चंद्रबाबू नायडू ने बिल्कुल सही किया है। बीजेपी अपने राजनीतिक हितों और प्रतिशोध के लिए सीबीआई तथा अन्य एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है।” एक रिपोर्ट के अनुसार, ममता बनर्जी ने एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद ही ये फैसला लिया है। आंध्र प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने भी सीबीआई को अपने राज्य में प्रतिबंधित करने का फैसला किया। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “साल 1989 में सीबीआई को दी गयी समान्य रजामंदी को राज्य सरकार ने वापस ले लिया है।
गैरतलब है कि पश्चिम बंगाल में सीबीआई की जांच में ही शारदा चिटफंड और रोज वैली घोटाला और सामने आया था और नारद स्टिंग ऑपरेशन से खुलासा हुआ जिसमें तृणमूल के सांसद, विधायक और मंत्री कथित रूप से शामिल थे। नारद स्टिंग ऑपरेशन में दर्जन भर तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ सीबीआई ने FIR दर्ज भी की है।
चंद्रबाबू नायडू और ममता बनर्जी के इस फैसले से केंद्र और राज्य के बीच तनाव की स्थिति पैदा होगी और संघीय व्यवस्था भी प्रभावित होगा। संविधान-निर्माता संघीय शासन को अस्तित्व में लेकर आये ताकि केंद्र और राज्य में एकात्मक शासन बना रहे लेकिन अब इस निर्णय का इस व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जबकि केंद्र और राज्यों को शासन में समन्वय बनाये रखने के लिए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए लेकिन इन दोनों ही राज्य सरकारों का ये आदेश तरह से गलत है जो संघीय व्यवस्था को प्रभावित करेगा। यहां गौर करने वली बात ये हैं कि ये दोनों ही फैसले एक के बाद एक करके समाने आये हैं। वास्तव में ये एक एजेंडे के तहत किया जा रहा है क्योंकि चंद्रबाबू नायडू और ममता बनर्जी दोनों ही 2019 के लोकसभा चुनावों में एकजुट होकर बीजेपी से मुकाबले के लिए विपक्षी दलों का महागठबंधन बनाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसे में दोनों गैर-बीजेपी शासित राज्यों का ये फैसला बीजेपी विरोधी भावना से पीड़ित है। विपक्षी दलों को ये समझ आ चुका है कि वो पीएम मोदी की लोकप्रियता को चुनौती नहीं दे सकते हैं और न ही आगामी चुनाव में वो कोई गंभीर मुद्दा लेकर हमला कर सकते हैं। यही वजह है कि सीबीआई के जरिये अब विपक्ष मोदी सरकार को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। कार्यपालिका की शक्तियों का इस्तेमाल व्यापक जनहित में होना चाहिए लेकिन ये शर्मनाक है कि अपने एजेंडे के लिए राजनीतिक पार्टियां इसका इस्तेमाल कर रही हैं और भ्रष्टों को संरक्षण देने का प्रयास कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू दिनों दिन किसी न किसी विवाद को लेकर चर्चा में रहते ही हैं। केंद्र की मोदी सरकार पर हमला करने और अधिकरों को कमजोर करने के प्रयास करते रहे हैं। साल 2016 के दिसंबर माह में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भारतीय सेना को राजनीति के गंदे खेल में घसीटा था और पश्चिम बंगाल में हुए सैन्य अभ्यास को सीएम ममता बनर्जी ने तख्तापलट करने की कोशिश करार दिया था। उन्होंने सेना की तैनाती को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ कोर्ट जाने की भी बात कही थी।
Reporter: "If required, will you fight against Govt legally?" WB CM Mamata Banerjee: "Already it is done, don't worry." pic.twitter.com/xNr6v4A1bJ
— ANI (@ANI) December 2, 2016
Army conducting routine exercise with full knowledge & coord with WB Police. Speculation of army taking over toll plaza incorrect @adgpi
— EasternCommand_IA (@easterncomd) December 1, 2016
#EasternCommand conducted a press conference to clarify the issue of Vehicle Data Collection Exercise @adgpi pic.twitter.com/Uh6uE4mZex
— EasternCommand_IA (@easterncomd) December 2, 2016
Routine exercise in all NE states. In Assam @ 18 places, Arunanchal@13, WB@19, Manipur@6, Nagaland@5, Meghalaya@5, Tripura & Mizoram@1@adgpi
— EasternCommand_IA (@easterncomd) December 1, 2016
बाद में सेना ने इसपर सफाई भी दी थी कि, नॉर्थ ईस्ट में कई और जगहों पर भी एक्सरसाइज चल रही है, पश्चिम बंगाल इसमें अकेला नहीं है। असम में 18, अरुणाचल में 13, पश्चिम बंगाल में 19, मणिपुर में 6, नागालैंड में 5, मेघालय में 5, त्रिपुरा और मिजोरम में एक-एक स्थान पर स्थानीय पुलिस के सहयोग से रुटीन एक्सरसाइज की जा रही है। दूसरी तरफ नायडू भी कुछ कारोबारी प्रतिष्ठानों पर आयकर अधिकारियों के हालिया छापे से नाराज हैं क्योंकि इनमें से कुछ प्रतिष्ठान राज्य की सत्तारूढ टीडीपी के करीबियों के हैं। यही वजह है कि उन्होंने सीबीआई के खिलाफ कदम उठाया। स्पष्ट है कि दोनों ही नेताओं ने सिर्फ अपने एजेंडे और अपने करीबियों को बचाने हेतु सीबीआई पर प्रतिबंध लगाया।