लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है। ऐसे में कांग्रेस और उसके पक्षधरों को अब सत्ता विरोधी माहौल बनाने के लिए कुछ मिल नहीं रहा है। इसके लिए उन्हें नई-नई तरकीबें सूझने लगी हैं। अभी तक वो राफेल-राफेल हल्ला करके माहौल बनाने में लगे थे लेकिन उसमें सफलता न मिलते देख अब वो सोहराबुद्दीन केस के घिसे-पिटे मुद्दे पर ढपली पीटने की तैयारी में हैं।
दरअसल इस मामले के मुख्य जांच अधिकारी संदीप तमगड़े ने अपने एक बयान में सीबीआई अदालत से कहा है कि सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह और तीन अन्य आईपीएस अधिकारियों के हाथ होने की संभावना है। हालांकि ये बात ध्यान देने वाली है कि इस केस में अमित शाह के साथ तीन आरोपियों को पहले ही बरी किया जा चुका है। यहां गौर करने वाली बात ये है कि जांच अधिकारी संदीप तमगड़े का कहना है कि उनके पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि इस मामले में अमित शाह का हाथ था।
अब ऐसे में सवाल उठते हैं कि जिस अधिकारी के पास कोई सबूत ही नहीं हैं, उनकी बातों का भरोसा क्यों किया जाए। संदीप तमगड़े की बात को महत्व देना किस हद तक सही है।
दरअसल, सोहराबुद्दीन का एनकाउंटर यूपीए सरकार के समय में हुआ था। TADA कोर्ट में सोहराबुद्दीन को दोषी ठहराया गया था। उसके यहां 80 एके 47 और सैकड़ों हैंड ग्रेनेड मिलने की पुष्टि भी हुई थी। इनका इस्तेमाल सुरक्षा बलों के खिलाफ इस्तेमाल करने की योजना थी। ये सभी प्रतिबंधित और घातक हथियार मध्यप्रदेश में स्थित उसके एक फर्म में पाए गए थे। उस समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी।
सोहराबुद्दीन के कथित फर्जी एनकाउंटर मामले में अवसरवादी पार्टी कांग्रेस ने प्रतिशोध की राजनीति शुरु कर दी। मामला कोर्ट में गया। कोर्ट में कांग्रेस ने इस मुद्दे को यह कहकर मोड़ दिया कि यह एक फेक एनकाउंटर है। कांग्रेस ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की। इस मामले की नए सिरे से सीबीआई जांच कराई गई। मामले में जांच कांग्रेस के इशारे पर की गई। इस जांच में सीबीआई के सहारे भाजपा नेताओं को टारगेट किया गया।
जांच पूरी होने पर सीबीआई ने अमित शाह को दोषी ठहरा दिया। चार्जशीट दायर करने के बाद सीबीआई ने उस समय गुजरात के गृह राज्यमंत्री अमित शाह को गिरफ्तार किया। अमित शाह उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में मंत्री थे। उसके बाद जो कुछ भी हुआ, उसके बारे में जितना भी बताया जाय कम होगा।
सीबीआई ने अमित शाह को बिना किसी पूछताछ के गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार करने के बाद सीबीआई ने उन्हें न्यायिक हिरासत में ले लिया। बाद में शाह को गुजरात उच्च न्यायालय से जमानत मिल गई। सीबीआई ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में मामले को घसीट ले गई। लेकिन वहां भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी।
उसके बाद इस मामले को गुजरात से महाराष्ट्र उच्च न्यायालय में ट्रांसफर कर दिया गया। मामले की सुनवाई के लिए जज की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता और चार वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा की गई। न्यायालय में इस मामले की सुनवाई हुई। जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को न्यायालय ने बरी कर दिया।
इस मामले में दो सीबीआई अधिकारी थे जो अमित शाह को किसी न किसी बहाने मामले में घसीटने की कोशिश कर रहे थे। इनके नाम अमिताभ ठाकुर और संदीप तमगड़े था। माननीय न्यायालय ने भी खुले शब्दों में इस मामले को राजनीति से प्रेरित बताया था। कोर्ट की फटकार के बाद इस मामले मे सीबीआई की काफी किरकिरी हुई थी। कोर्ट ने अपने बयान में इस बात की ओर इशारा करते हुए सीबीआई को फटकार लगाई थी कि राजनैतिक खुन्नस के चलते किसी व्यक्ति विशेष को मामले में घसीटा जा रहा है।
इस तरह से न्यायालय से अमित शाह को बरी किया गया। उनके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं पाए गए। अब जबकि 2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक है, विपक्षी दलों द्वारा इस मामले को फिर से हवा देने की कोशिश की जा रही है। अब ये देखने वाली बात होगी कि राफेल-राफेल चिल्लाकर माहौल बनाने का नाकाम प्रयास करने वाली कांग्रेस को सोहराबुद्दीन केस में हल्ला करने का कितना फायदा मिलता है।