राजनीति में न कोई पराया होता है और न ही कोई अपना, यहां सिर्फ जरूरत के हिसाब से रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं। इसके उदाहरण तो कई हैं लेकिन जिस रिश्ते की हम चर्चा कर रहे हैं वो रिश्ता है सोनिया गांधी और मेनका गांधी का जो कभी एक साथ एक मंच पर नहीं दिखाई दीं। ये दोनों अक्सर ही एक दूसरे पर वार करती हुई नजर आयीं हैं। देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने की इन दोनों बहुओं के बीच अब सुलह होने की संभावना नजर आ रही है। सोनिया गांधी ने राजीव गांधी के बाद अकेले ही कांग्रेस की कमान संभाली जबकि वरुण गांधी और मेनका गांधी भाजपा के साथ रहे लेकिन ऐसा लगता है कि जल्द ही बिखरा हुआ गांधी परिवार एक हो जायेगा।
ये खबरें यूं ही चर्चा में नहीं है इसके पीछे की वजह भी आज हम आपको साफ़ कर देते हैं। इंडियन एक्सप्रैस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सोनिया और मेनका गांधी परिवार जल्द ही एक साथ आ सकता है। हाल ही में महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में आदमखोर बाघिन अवनि की हत्या को लेकर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने महाराष्ट्र के वन मंत्री सुधीर मुंगतीवार पर ट्विटर और सार्वजनिक रूप से हमला बोला। यही नहीं उन्होंने सरकार से इस मामले में कार्रवाई करने की भी मांग की। मुंगतीवार कैबिनेट के कद्दावर मंत्री हैं और वो संघ के भी वफादार माने जाते हैं। ऐसे में मेनका का मुंगतीवार पर इस तरह से हमला करना मेनका का पार्टी के प्रति बागी तेवर को दर्शाता है। जबकि एक मंत्री के तौर पर न तो सुधीर मुंगतीवार के पास और न ही उनके विभाग के किसी भी सचिव के पास इस तरह की हत्या का आदेश देने का अधिकार होता है। इस तरह के आदेश राष्ट्रीय बाघ संरक्षण अधिकरण (एनटीसीए) के दिशा-निर्देशों के तहत लिए जाते हैं। इस मामले में पूरी जानकारी लिए बिना ही मेनका ने मुंगतीवार पर वार किया। वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में आयोजित डिस्ट्रिक्ट विजिलेंस कमेटी के कार्यक्रम में सोनिया गांधी की तारीफ भी की थी। ये पहल सिर्फ मेनका की तरफ से ही नहीं बल्कि सोनिया की तरफ से भी देखी गयी। हाल ही में मेनका गांधी के मंत्रालय द्वारा महिलाओं के लिए आयोजित कार्यक्रम में सोनिया गांधी भी शामिल हुई थीं। वैसे यहां ये कहना गलत नहीं होगा कि आज जब कांग्रेस हाशिये पर है तो सोनिया को मेनका की याद आ गयी।
मेनका के बेटे वरुण भी पार्टी हाईकमान से खुद को पूरी तरह अलग कर चुके हैं और इसके पीछे की वजह उत्तर प्रदेश के विधान सभा में जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी ने वरुण गांधी की बजाय योगी आदित्यनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना था। दरअसल, साल 2014 में वरुण गांधी ने सुलतानपुर से चुनाव लड़ा था और जीत भी दर्ज की थी। तब मेनका गांधी ने अपने समर्थकों से कहा था कि उत्तर प्रदेश में ये खबरें फैला दो कि वरुण गांधी यूपी के अगले सीएम होंगे। इसके बाद से बीजेपी और मेनका गांधी के बीच तनाव पैदा हो गया था और नतीजतन वरुण गांधी को पार्टी महासचिव पद छोड़ना पड़ा था और इसके बाद उन्हें कोई महत्वपूर्ण पद आवंटित नहीं किया गया। वरुण गांधी के तेवर पार्टी के प्रति बागी हो गये और उन्होंने धीरे धीरे अपने आपको लगभग पार्टी से अलग कर लिया है। अब मेनका गांधी जो काफी समय से अपनी ही पार्टी से मनमुटाव के चलते इन दिनों सुर्खियों में बनी हुई हैं। यही नहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी बाघिन अवनि की मौत पर मेनका गांधी के बयान का समर्थन किया।
जिस तरह से वरुण गांधी और मेनका गांधी का सोनिया और राहुल की ओर झुकाव बढ़ रहा है उसे देखकर तो यही लगता है कि भविष्य में गांधी परिवार सालों की कड़वाहट भुलाकर एक साथ आ जायेगा लेकिन क्या मेनका और वरुण की महत्वाकांक्षा कांग्रेस का दामन थामने के बाद पूरी हो होगी? जिस तरह से संजय गांधी की मौत के बाद गांधी परिवार से उन्हें जो अपमान मिला था और कांग्रेस पार्टी से उपेक्षा मिली थी वो फिर से न दोहराया जाए उसकी गारंटी भी नहीं है। कांग्रेस पार्टी के हाई कमान उन्हें तवज्जों देंगे और कोई बड़ा पद भविष्य में संभालने का मौका देंगे इसपर भी कुछ कहना अभी सही नहीं होगा। भाजपा में रहते हुए इस गांधी परिवार को जो सम्मान और पद मिला वो उन्हें कांग्रेस पार्टी में कभी नहीं मिला था यहां तक कि राजीव गांधी को महत्व दिए जान एप्र जब मेनका ने नाराजगी जाहिर की थी तब उन्हें इंदिरा गांधी ने अपने परिवार से आधी रात को ही घर से बाहर का रास्ता दिखाया था। अगर ये मेनका और सोनिया एक साथ आती भी हैं तो भविष्य में एक बार फिर से परिवार के बीच आंतरिक मतभेद देखने को मिल सकता है क्योंकि सत्ता और बड़े पद की चाह अच्छे और खून के रिश्तों में भी दरार पैदा कर देता है और एक बार खुद मेनका गांधी भी इसका स्वाद चख चुकी हैं। अब अगर ये बिखरा गांधी परिवार फिर से साथ होता भी है तो आगामी चुनाव में कुछ ख़ास कमाल कर ओएगा या नहीं देखना दिलचस्प होगा।