भारतीय रुपया एक बार फिर से डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ है लेकिन मीडिया में इसकी बहुत कम रिपोर्ट नहीं देखने को मिल रही है। बता दें कि, कच्चे तेल की नरमी आने से भारत के व्यापार घाटा को लेकर चिंता कम हुई है। इसका नतीजा यह रहा कि, मंगलवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 112 पैसे की छलांग लगा बैठा। इस छलांग के साथ एक रुपये की कीमत 70.44 डॉलर पर पहुंच गई लेकिन मीडिया में यह रिपोर्ट कहीं नहीं दिखी। यही नहीं, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रुपये की विनिमय दर में 5 साल से भी अधिक समय में यह एक दिन का सबसे जबरदस्त और सुनहरा सुधार है। बुधवार को भी शुरुआती कारोबार में रुपया डॉलर के मुकाबले 50 पैसे की मजबूती के साथ 69.94 पर खुला है।
अर्थशास्त्र के जानकारों की मानें तो निर्यातकों और बैंकों द्वारा डॉलर की सतत बिकवाली हुई। इसके साथ ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतिगत बैठक से पहले वैश्विक स्तर पर प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर कमजोर हुआ। जिसके कारण रुपया मजबूत हुआ। बता दें कि, फेडरल रिजर्व की ब्याज तय करने वाली समिति की बैठक बुधवार को हो रही है। इसमें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उससे ब्याज न बढ़ाने की अपील की है। वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में मानक ब्रेंट कच्चा तेल 2.26 % गिर गया। गिरावट के बाद यह 14 माह के निम्नतम स्तर 58.26 डॉलर प्रति बैरल पर आ गिरा।
इससे पहले अन्तरबैंकिंग विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले 71.34 पर खुला। लेकिन कारोबार के अंत में रुपया सोमवार के बंद भाव के मुकाबले 112 पैसे के लंबी उछाल के बाद 70.44 पर जा पहुंचा। दूसरी ओर रुपया सोमवार को 34 पैसे मजबूत हो कर 71.56 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।
ये रुपये में मजबूती और कच्चे तेल के भाव में नरमी का कारण ही था कि, स्थानीय शेयर बाजारों में तेजी का सिलसिला लगातार 6वें दिन भी बना रहा। भारी लिवाली और बिकवाली के बीच बीएसई सेंसेक्स में 329 अंक के दायरे में उतार-चढ़ाव करता रहा। 30 शेयरों वाला सेंसेक्स सुबह गिरावट के साथ 36,226.38 अंक पर खुला और वैश्विक बाजारों में गिरावट के असर से प्रभावित कारोबार में एक समय बिकवाली के कारण 36,046.52 अंक तक गिर गया था।
ये सारी स्थितियां और अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत जैसे मीडिया को रास नहीं आ रही हैं। लिबरल मीडिया को ऐसी खबरों से मानों परहेज सा रहता है। वो सिर्फ ऐसी खबरें लाने को अपनी जिम्मेदारी समझते हैं, जिनसे समाज में विद्रोह और हिंसा फैले। सकारात्मक और देश के लिए गर्व वाली खबरें उन्हें रास नहीं आती हैं।
डॉलर की अपेक्षा रुपया गिरता है तो सभी तथाकथित लिबरल मीडिया संस्थान रोना रोने लगते हैं। पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं, तो जनता को विद्रोह के लिए उकसाते हैं। लेकिन जब डॉलर की तुलना में रुपये में सुधार होता है और जब पेट्रोल के दाम गिरते हैं, तो ऐसे मीडिया संस्थानों को मानों सांप सूंघ जाता है। ऐसा ही एक बार फिर से हुआ है।