पांच राज्यों में चुनाव संपन्न होते ही सभी मीडिया हाउस ने अपने एग्जिट पोल दिखाने शुरू कर दिए। जिसमें एक-दो को छोड़कर लगभग सभी सर्वे एजेंसी हिंदी बेल्ट मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत राजस्थान में कांग्रेस को बढ़त दिखाते हुए तीनों महत्वपूर्ण राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने का दावा कर रही है। हर चैनल अपने सर्वे को विश्वसनीय बताया जा रहा है। जबकि इन तीनों राज्यों को छोड़ दे तो तेलंगाना और मिजोरम को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही है।
मध्य प्रदेश में शिवराज के कई अच्छे काम और लोकलुभावन योजना, प्रदेश की बेटियों के लिए कन्यादान योजना, मध्य प्रदेश कांग्रेस में सिंधिया-कमलनाथ के दो गुटों में बटना, राहुल गांधी के फर्जी हिंदुत्व और कांग्रेस का फर्जी गो प्रेम, बंद कमरे में 90 प्रतिशत मुसलमानों को वोट करने की अपील इन सब के बावजूद कांग्रेस मध्य प्रदेश में एग्जिट पोल में जीत रही है तो कुछ वजह जरुर होगी।
कुछ यही हाल छत्तीसगढ़ का भी रहा है। छत्तीसगढ़ को बीमारू राज्य से विकासशील राज्य की श्रेणी में लाने वाले रमन सिंह के बराबर कांग्रेस का कोई नेता नजर नहीं आता है। नक्सलवाद पर अंकुश लगाने वाली सरकार को उखाड़ फेंकने वाला एग्जिट पोल दिखा रहे मीडिया चैनल्स तो इसके पीछे की वजह को जानते हैं।
मीडिया, सर्वे एजेंसी हफ़्तों पुराने कुछ हजार सैंपल से तय करती है एग्जिट पोल के आंकड़े
लगभग 10 करोड़ मतदाता वोट देने निकले जबकि 20-30 हजार सैंपल से जनता का रुख तय किया जाता है तो कैसे विश्वसनीय माना जाए? सर्वे को दूसरी महत्वपूर्ण बात एग्जिट पोल का मतलब चुनाव के बाद किया गया सर्वे यानि इसमें वही मत शामिल किये जाने चाहिए जिन लोगों ने वोट डाले हैं लेकिन अगर चुनाव के पहले के सैंपल को लेके किया गया सर्वे तो ओपिनियन पोल ही कहलायेगा। जबकि ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में जमीन आसमान का अंतर होता लेकिन हमें एग्जिट पोल के नाम पर ओपिनियन पोल का हफ्तों पुराना सैंपल को परोसा जा रहा है। अब जरा सोचिये चुनाव खत्म होने के कुछ मिनटों में एग्जिट पोल दिखाया जा रहा है तो इतनी बड़ी तयारी कुछ मिनटों में कैसे कर ली गयी? क्या ये सैंपल वोटर्स से लिए गए हैं या हफ़्तों पहले के ओपिनियन से लिए गए हैं?
कहते हैं दिखाए गये एग्जिट पोल के सैंपल नवम्बर के थे तो अब सोचने वाली बात ये है की मोदी-अमित शाह जैसे कद्दावर नेताओं की रैलियां ही आखरी हफ्ते में की जाती हैं। मोदी-शाह की जोड़ी अकेले 30-35 सीटें खीच लाने में और प्रदेश की चुनावी लहर को बदलने का माद्दा रखती है तो सवाल ये उठता है कांग्रेस में ऐसा कोई भी नेता नहीं है जो कांग्रेस की लहर बना सके, न ही तीनों राज्यों में कांग्रेस की कोई लहर थी जिसे मोदी न तोड़ पाए उपर से राहुल गांधी ने अपनी रैल्लियों में एक बार फिर साबित कर दियाकि वो अब भी एक स्टैंडअप कॉमेडियन से ज्यादा कुछ नहीं हैं तो ऐसा क्या चमत्कार हुआ की एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनती नजर आ रही है?
बीजेपी-कांग्रेस में कांटे की टक्कर या मीडिया की TRP मज़बूरी ?
दरअसल, मीडिया जो एग्जिट पोल में दिखा रही है इसे कहते है आर्थिक और TRP मज़बूरी। पिछले एक महीने से मीडिया पांच राज्यों के इस चुनाव को सेमी फाइनल बता रही है इसके पीछे की उसकी TRP मज़बूरी को समझने की जरुरत है। माहोल ये है अगर इसे सेमी फाइनल न बताएगा तो इस चुनाव के नतीजे और उसके एग्जिट पोल को कोई भी गंभीरता से नहीं लेगा और ऐसे में सारे एग्जिट पोल धरे के धरे रह जाते फिर कैसे बढती TRP इसीलिए पहले इसे सेमीफाइनल बनाया गया की जनता इसमें रूचि दिखाए गंभीरता से ले और इसके एग्जिट पोल्स को इसलिए दिलचस्प बनाया जा रहा है की अगले 4 दिन तक यूं ही बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर दिखा-दिखा के जनता को असमंजस में रखे दरअसल नतीजे इन्हें भी नही पता होते हैं।
सोचिए आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में जहां बीजेपी मुश्किल से मुश्किल हालातों में, बड़ी से बड़ी सत्ता विरोधी लहर को चुनौती देते हुए पूर्वोत्तर तक के राज्यों में भी चुनाव दर चुनाव जीत रही है तो ऐसे में भला ये तीन राज्य तो फिर भी तुलना में एक आसान चुनौती थे। ऐसे माहौल में अगर मीडिया दिखाएगी की तीनों राज्यों में बीजेपी भारी बहुमत के साथ जीत रही है तो इसमें ज्यादा आश्चर्य नहीं होगा और ऐसी न्यूज को क्या वैसी TRP मिलती? नहीं मिलती क्योंकि एक तरफ तो वो इसे 2019 का सेमीफाइनल बता रही है और सेमीफाइनल में ही जब कोई टक्कर नहीं है तो फाइनल कैसे दिलचस्प बनाया जायेगा? इसीलिए बीजेपी कांग्रेस में कांटे का मुकाबला दिखाना या कांग्रेस की सरकार बनती दिखाना मिडिया की भी राजनीतिक मजबूरी समझिए।
20 ओवर बचे हैं 7 विकेट हाथ में और जीतने को महज 40 रन चाहिए तो सोचिये ऐसा मैच कोई क्यों देखेगा? जब 20 गेंदों पर 30 रन बनाने हो तब ये मैच दिलचस्प होगा और TRP भी अपने चरम पर होगी। अगर सरकार के खिलाफ रुख होता तो क्लीन स्वीप होता कांटे की टक्कर नहीं होती कहने का मतलब टक्कर दिखाना मीडिया की मज़बूरी है।
एग्जिट पोल कितने विश्वसनीय ?
अब आते है इनकी विश्वसनीयता पर, याद कीजिये जनवरी 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के वक्त मीडिया ने यही तरीका आजमाया था क्योंकि वो राजनीतिक दृष्टी से एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रदेश है वहां के चुनाव देश का राजनीतिक समीकरण बदलने का दम रखते हैं। इसीलिए 1 महीने पहले तक मीडिया मायावती की बसपा को 180 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बता रही थी। वहीं चुनाव के पहले तक राहुल-अखिलेश के गठबंधन की सरकार बना रही थी लेकिन नतीजे ऐसे की जिसने सारे ओपिनियन और एग्जिट पोल की हवा निकाल कर रख दी और नतीजे आने पर बीजेपी अकेले 324 सीटों के साथ प्रचंड जनादेश लेकर सरकार बनाती दिखी। कुछ यही हाल 2004 में हुआ था जब अटल बिहारी सरकार वापसी लगभग तय मानी जा रही थी और इसपर मीडिया के एग्जिट पोल ने मुहर भी लगा दी थी और नतीजे एकदम विपरीत हैं।
अब जनता को चाहिए कि ऐसे पुराने सैंपल से लिए गए एग्जिट पोल पर भरोसा न कर नतीजे का इंतजार करे क्योंकि आखरी हफ्ते की मोदी अमित शाह और राहुल गांधी के रैली से बहुत पानी बह चुका था जिसके नतीजे इस एग्जिट पोल में दिखाई देंगे देगे जिसके लिए 11 दिसंबर तक का इंतजार करना होगा। 11 दिसंबर को ही तय होगा की कांग्रेस इसे EVM हैक बताएगी या राहुल गांधी की जीत।