अक्सर हम सुनने है कि संसद की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ी”। ये कोई नई बात नहीं है। कई बार बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा इसपर बड़ी बहस भी होती है कि संसद की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ने के कारण जनता के कितनें पैसे बर्बाद होते हैं। उनकी चिंता वाजिब भी होती है क्योंकि जनता के टैक्स के पैसों से संसद चलता है। संसद में बहस इसलिए होती है, ताकि जनता के हितों से संबंधित मुद्दों पर बहस हों, निष्कर्ष निकलें, निर्णय लिए जाएं, नीतियां लागू की जाएं, नियम-कानून बनाए जाएं। कई बार ऐसा देखा गया है कि राजनीतिक पार्टियां और उनके सांसद अपने निजी हितों या राजनैतिक हित साधने मात्र के लिए बहस के बहाने सदन की कार्यवाही में बाधा डालते हैं। पर अब जनता के पैसे किसी सांसद की उदंडता की वजह से बर्बाद नहीं होंगे। अब जो भी सांसद संसद में उदंडता या हंगामा करते हुए संसद की कार्यवाही स्थगित करने का प्रयास करेगा, उसे लोकसभा अध्यक्ष द्वारा निश्चित समय के लिए निलंबित कर दिया जायेगा।
दरअसल, संसद में लगातार हंगामे के कारण कामकाज में बहुत रुकावटें आती थीं। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने एक बड़ा फैसला लिया है। इसके लिए अब संसद सदस्यों पर कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया है। अब संसद के वेल में जाकर हंगामा करने वाले सांसद निलंबित होंगे। यही नहीं, अपनी सीट पर खड़ा होकर हंगामा करने वाले सदस्यों पर भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इससे पहले लोकसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस फैसले को अगले लोकसभा पर छोड़ने के लिए पत्र लिखा था लेकिन कमेटी ने उसे दरकिनार करते हुए ये फैसला लिया है। दरअसल, हर बार की तरह इस बार भी संसद में हंगामें के चलते लगातार संसदीय कामकाज प्रभावित रहा। जिससे ऊबकर लोकसभा अध्यक्ष ने ये निर्णय लिया।
यहां हम एक झलक दिखाने जा रहे हैं कि इस साल संसद की कार्यवाही में कब-कब और किस-किस बहाने बाधाएं डाली गईं…
इस साल की शुरुआत बजट सत्र से हुई थी। ये पूरी तरह हंगामे की भेंट चढ़ गया। इसके बाद संसद के मॉनसून सत्र में भी कुछ खास कामकाज नहीं हो पाया था। इसके बाद इस समय के शीतकालीन सत्र में भी राफेल डील पर जोरदार हंगामा हो रहा है। इसी तरह से हर सत्र में किसी न किसी बहाने, राजनैतिक हित साधने या फिर सरकार का समय जाया करने के लिए विपक्षी पार्टियां संसद में हंगामा, कामकाज में बाधा पहुंचाने के लिए कोई न कोई बहाना ढूंढ़े ही रहती हैं। इन सभी विपक्षी पार्टियों में कांग्रेस संसद स्तर को बाधित करने में सबसे आगे है।
बता दें कि इस बार के शीतकालीन सत्र में अभी तक राज्यसभा में कोई भी सरकारी कामकाज नहीं हो सका है। जबकि अगर हम लोकसभा के कामों पर नजर दौड़ाएं तो पाते हैं कि लोकसभा से सरोगेसी और ट्रांसजेंडर से जुड़े विधेयकों को मंजूरी मिल पाई है। संसद के बजट सत्र में आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने की मांग गूंजती रही है। इस तरह से दोनों ही सदनों में किसी न किसी बहाने गतिरोध बना रहा।
संसद में कामकाज को व्यक्तिगत राजनैतिक हितों के लिए रोकने का उदाहरण उस समय देखने को मिला, जब सत्र से पहले एनडीए का हिस्सा रही टीडीपी ने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए खुद को बीच सत्र में सरकार से बाहर करने का निर्णय ले लिया। लोकसभा में ही नहीं, राज्यसभा में भी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जानें की मांग को लेकर टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस ने सदन के भीतर-बाहर जमकर प्रदर्शन किया। नारेबाजी किया और कामकाज को पूरी तरह से बाधित किया।
बता दें इस सत्र में लोकसभा में करीब 28 विधेयक पेश किए जाने थे, जबकि राज्यसभा के एजेंडे में 39 विधेयक शामिल थे। लेकिन सदन की कार्रवाई कुछ यूं प्रभावित रही कि लोकसभा में सिर्फ 5 विधेयक ही पारित किए जा सके जिनमें वित्त विधेयक भी शामिल है। अगर राज्यसभा की बात करें तो वहां तो सिर्फ एक विधेयक ही पारित हो सका। आंकड़ों की मानें तो कामकाज के लिहाज से ये सत्र बीते 10 साल का सबसे हंगामेदार सत्र रहा।
बता दें कि संसद की कार्रवाई में काफी पैसे खर्च होते हैं। आंकड़े बताते हैं कि संसद के 1 घटें की कार्रवाई पर 1.5 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। ये सारे पैसे जनता के टैक्स से आते हैं। सदन में जनता की समस्याओं से जुड़े मुद्दों पर वाद-विवाद, बहस होने के बाद निर्णय लिए जाते हैं। इस तरह से जनता टैक्स इसलिए देती है ताकि उनके सांसद उनसे जुड़ी समस्याओं का हल ढूंढ़ सकें लेकिन विपक्ष हमेशा अपनी उन जिम्मेदारियों से भागने का प्रयास करता है। विपक्ष के हंगामें अपने व्यक्तिगत राजनैतिक हितों से जुड़े होते हैं। उन्हें जनता की समस्याओं में कोई रुचि नहीं होती है। इस तरह से ना-ना प्रकार के कारणों और बहाने विपक्ष हमेशा संसद की कार्रवाई स्थगित करने की कोशिश करता रहा। इससे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और लोकसभा अध्यक्षा भी समय-समय पर संसद की कार्रवाई पर विपक्ष के अड़ियल और निजी हितों के लिए विवाद करने की नीतियों पर खेद जाहिर कर चुके हैं। फिर भी इस बार विपक्ष के इस रवैए से ऊबकर लोकसभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन ने ये निर्णय लिया है। आशा है अब संसद के स्तर को बाधित करने से पहले एक बार विचार जरुर करेंगे।