जैसे-जैसे आम चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे विपक्ष महागठबंधन के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने में लगा है लेकिन विपक्ष के इस प्रयास पर किसी न किसी वजह से पानी फिर ही जाता है। कोई ना कोई नेता ‘सम्मानजनक’ सीट ना मिलने का बहाना बनता है तो कोई प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा रखता है तो कोई राहुल गांधी का नेतृत्व नहीं चाहता है। पहले से कयास लगाये जा रहे थे कि मायावती भी विपक्षी दलों की एकजुटता को झटका दे सकती हैं और हुआ भी वैसा ही क्योंकि पीछे हटने वाली पार्टियों में यूपी की बसपा सुप्रीमों मायावती का नाम सबसे उपर है। उन्होंने अब स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि वो महागठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगी। हर बार उनके पीछे हटने के कारण विपक्ष की मनोकामना परवान चढ़ने की पहली सीढ़ी पर ही लुढ़क जाती है। इस बार फिर से बुआजी पीछे हटती दिख रही हैं।
दरअसल, 10 दिसंबर को देश के सभी प्रमुख विपक्षी दलों की बैठक होने वाली है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू इस बैठक के आयोजक हैं। लेकिन खबरों की मानें तो बसपा सुप्रीमों और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का इस बैठक में शामिल होना लगभग न के बराबर माना जा रहा सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने उनके प्रतिनिधि सतीश चंद्र मिश्रा को इस संबंध में मनाने के प्रयास किए थे लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो पार्टी ने मायावती के प्रतिनिधि सतीश मिश्रा को मनाने के काफी प्रयास कर रही थी लेकिन राजस्थान और मध्य प्रदेश में बसपा के साथ गठबंधन न होना ही वजह है.
दरअसल, इससे पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों में बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से इंकार कर दिया था। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की बजाय उनकी पार्टी बसपा ने अजीत जोगी की छत्तीसगढ़ कांग्रेस से गठबंधन किया। छत्तीसगढ़ में बसपा 35 और अजीत जोगी की जनता कांग्रेस पार्टी 55 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
इसके बाद मायावती के इस संभावित कदम को विपक्षी एकजुटता के लिहाज से बड़ा झटका माना जा रहा है। वहीं कांग्रेस के गठबंधन से अलग होने पर पूछे जाने पर मायावती ने कहा, “कांग्रेस बसपा की पहचान को खत्म करना चाहती है। कांग्रेस जातिवादी पार्टी है। कांग्रेस पार्टी की रस्सी जल गई, मगर बल नहीं गया। कांग्रेस ने गुजरात से कुछ सबक नहीं लिया।“ उन्होंने आगे कहा, “अब राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुझे लगता है कि कांग्रेस का इरादा बीजेपी को हराने का नहीं है, बल्कि वह उनके साथ दोस्ती रखने वाली पार्टियों को ही हानि पहुंचाना चाहती है।”
मायावती ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस पर सम्मानजनक सीटें न देने का आरोप भी लगाया था। अब ऐसे में जब बसपा विपक्षियों के इस गठबंधन से पीछे हट रही है तो सपा के साथ आने पर भी संदेह पैदा होने लगे हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले ही साफ़ कर दिया था कि वो बिना बसपा के किसी गठबंधन कला हिस्सा नहीं बनेंगे। स्पष्ट रूप से विपक्षी एकता का दिखावा करने वाले बिखरे विपक्ष का सच भी अब सामने है वो है कि उत्तर प्रदेश जहां से लोकसभा की 80 सीटें आती हैं वहां कि दो महत्वपूर्ण पार्टियों ने ही खुद को महागठबंधन से अलग रखने का मन बना लिया है। साफ़ है कि सपा-बसपा के गठबंधन का हिस्सा बनने की संभावना लगभग न के बराबर है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। यहां से जीतने वाली पार्टी सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाती है। कई बार तो कहावत भी कही जाती है, “दिल्ली का राजनैतिक रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर गुजरता है।” ऐसे में अब, जबकि बसपा गठबंधन से दूर जाती दिख रही है और अखिलेश की भी उम्मीद भी गठबंधन में शामिल होने की कम ही लगती है, ये देखना दिलचस्प होगा कि अब महागठबंधन की नाव नदी के किस पड़ाव तक पहुंच पाती है।