दुनिया भर में ईसाई एक हफ्ते पहले से ही क्रिसमस की तैयारियों में जुट जाते हैं लेकिन पाकिस्तान के ईसाई सहमे हुए रहते हैं. ईशनिंदा जैसे कानून हमेशा उनके खिलाफ नफरत भड़काने का काम करते हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान में सिर्फ ईसाई ही नहीं बल्कि अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी इसी डर में जीते हैं। एक बार फिर से कुछ ऐसा ही सामने आया है। जहां दुनियाभर में ईसाई क्रिसमस की तैयारियों में जुटे थे वहीं पाकिस्तान में इस दौरान दो ईसाई भाइयों को मौत की सजा सुनाई। ऐसा करके पाकिस्तान ने एक बार फिर से ये साबित कर दिया है कि दुनिया उसे ऐसे ही सबसे नापाक देशों की सूची में शामिल नहीं गिनती है। दोनों ईसाई भाइयों पर पैगंबर मोहम्मद पर अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप था। बता दें कि अभी हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने नसीरुद्दीन शाह के बयान पर कहा था कि वो भारत को दिखाएंगें कैसे अल्पसंख्यकों के से बर्ताव करना चाहिए है। अपने देश के मामलों को तो वो सुलझा नहीं पाते और दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल देने का एक मौका नहीं छोड़ते। 1947 में विभाजन के बाद से अल्पसंख्यकों पर अत्याचार अकरने वाला पाकिस्तान जब बोलता है कि वो भारत को व्यवहार का पाठ पढ़ाएगा तो उसे शोभा भी नहीं देता। यहां तक कि अमेरिका ने भी पाकिस्तान को धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने को लेकर ब्लैकलिस्टड कर दिया गया है।
अमेरिका के इस कदम के बाद ही पाकिस्तान की अदालत ने ईशनिंदा मामले में दोनों भाइयों को मौत की सजा सुनाई। सालों से ईशनिंदा का आरोप मढ़ अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हो रहा है। इन दोनों भाइयों पर पैगंबर मोहम्मद पर अपमानजनक टिप्पणी करने का संदेह था। इसे लेकर उनपर मुकदमें चलाए गए। इसके बाद पाक अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए क्रिसमस वीक में ही फांसी की सजा सुना दी।अपना निर्णय सुनाते हुए जज ने कहा कि इनके खिलाफ अपराध सिद्ध हो गया है। इसलिए अदालत इन्हें मौत की सजा सुनाती है। हालांकि दोनों भाइयों ने जो सफाई दी वो हैरान कर देने वाली थी। दोनों ईसाई भाइयों ने बताया कि हमपर वेबसाइट पर ईशनिंदा करने के आरोप में सजा सुनाई जा रही है लेकिन जिस समय का यहां जिक्र है उस समय वेबसाइट वो वेबसाइट को संचालित नहीं करते थे। यानी, उस समय वेबसाइट चलती ही नहीं थी। सिर्फ इर्शनिंदा के शक में पाकिस्तान में कई अल्पसंख्यकों को मौत की सजा सुनाई गयी है. ईशनिंदा कानून को पाकिस्तान में 1980 के दशक में जनरल जिया-उल-हक ने लागू किया था लेकिन इस कानून का दुरुपयोग वहां के लोग छोटे मोटे विवाद या बदले के लिए करते हैं। इस कानून को पाकिस्तान का इस्लामिक समूह पाकिस्तान की इस्लामी पहचान के लिए जरुरी समझते हैं लेकिन इसी आड़ में वो अल्पसंख्कों पर अत्याचार करते हैं।
पाकिस्तान में ईशनिंदा के सबसे चर्चित मामलों में से एक मामला आसिया बीबी का है. साल 2009 में आसिया को ईशनिंदा मामले में मौत की सजा सुनाई गयी थी. निचली अदालत के बाद हाई कोर्ट ने इस मामले में आसिया को मौत की सजा सुनाई थी लेकिन बाद में मामले की जांच के बाद आसिया बेगुनाह साबित हुई जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आसिया को इसी साल अक्टूबर माह में बरी कर दिया. अदालत के फ़ैसले के बाद पाकिस्तान के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए जिसे देखते हुए आसिया को जेल में ही कड़ी सुरक्षा में रखा गया है.
बता दें कि पाकिस्तान में ईशनिंदा बहुत ही संवेदनशील विषय है। बीते वर्षों में कई ईसाई और हिंदुओं की ईशनिंदा के मामलों में बेरहमी से हत्या भी की जा चुकी है। आंकड़ों की मानें तो साल 1992 से अब तक लगभग 62 लोगों की ईशनिंदा के बहाने बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा हत्या की जा चुकी है।
इस तरह से पाकिस्तान में एक बार फिर से कट्टरपंथी, धार्मिक असहिष्णुता, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और निर्ममता देखने को मिली है। पाकिस्तान अपने यहां अल्पसंख्यों का कितना ख्याल रखता है, इस घटना से सिद्ध हो जाता है।
ऐसे में यह सवाल उठते हैं कि आखिर बहुसंख्यक समाज के मुसलमानों द्वारा लगाये गये आरोप को आधार बनाकर किसी अल्पसंख्यक को फांसी की सजा तब क्यों सुनाई गयी जब उसके समुदाय के लोग आने वाले त्यौहार की खुशियां मना रहे थे ? क्या त्योहार के दिन के बाद सुनवाई नहीं हो सकती थी? जानबूझकर पाकिस्तान अल्पसंख्यकों के साथ इस तरह का व्यवहार करता है और भारत को सीख दे रहा है कैसे व्यवहार करना चाहिए। पाक सरकार अपनी सीख अपने पास ही रखे भारत सहिष्णुता और एकता का प्रतिक है और अपने सभी नागरिकों के साथ एक जैसा व्यवहार करता है।