आज के समय में बीमारियां पैर पसार रही हैं जिससे आये दिन अस्पतालों में मरीजों का तांता लगा रहता है। ऐसे में पैथोलॉजी लैब्स तरह तरह की जांचों के लिए मरीजों से मनमानी फीस वसूलते है। मरीजों की मज़बूरी होती है तो मनमानी फीस देते हैं लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। सत्ता में आने के बाद से आम जनता के लिए लगातार काम कर रही मोदी सरकार ने अब पैथोलॉजी लैब पर शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है।
दरअसल, मोदी सरकार ने पिछले दिनों जेनेरिक दवाइयों को तय करने के साथ उनकी कीमत निर्धारित किया था। अब इसी क्रम में सरकार ने एक नया निर्णय और लिया है। दवा बनाने वाली कंपनियों के बाद अब मोदी सरकार पैथोलॉजी लैब पर शिकंजा करने की तैयारी कर चुकी है।
जिस तरह से सरकार ने बेहद जरूरी दवाओं की कीमत तय करने का निर्णय लिया था, ठीक वैसे ही अब जरूरी जांच की कीमत भी तय की जाएगी। इसकी तरफ सरकार ने पहला कदम उठा भी लिया है। न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने नेशनल एसेंशियल डायग्नोस्टिक लिस्ट का ड्राफ्ट जारी कर दिया है। इस ड्राफ्ट में 31 जनवरी तक सभी पक्षों से सुझाव मांगा गया है। चलिए हम बताते हैं कि इसके लिए सरकार ने क्या निर्णय लिए हैं…
- पैथोलॉजी लैब अब बीमारी की जांच की मनमानी कीमत नहीं वसूल पाएंगे।
- बेहद जरूरी जांच की अधिकतम कीमत खुद सरकार द्वारा तय की जाएगी।
- सरकारी कीमत से ज्यादा वसूलने पर पैथालॉजी पर जुर्माना भी लगेगा।
- जीवनरक्षक दवाओं के तर्ज पर जरूरी जांच की लिस्ट भी तैयार की जा चुकी है।
- नेशनल एसेंशियल डायग्नोस्टिक लिस्ट का ड्राफ्ट भी जारी कर दिया गया है।
- सरकार द्वारा 31 जनवरी तक सभी पक्षों से सुझाव मांगा गया है।
- सरकारी अस्पतालों में आवश्यक जांच की सुविधा रखना भी जरूरी किया जाएगा।
- अब अगर सरकारी अस्पतालों में जांच की सुविधा नहीं रहने पर बाहर से जांच का खर्च सरकार उठाएगी।
आने वाले दिनों में नेशनल एसेंशियल डायग्नोस्टिक लिस्ट का ये ड्राफ्ट जांच कारोबार को रेगुलेट करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। यही नहीं सरकार जांच की गुणवत्ता संबंधी मानकों को भी तय करेगी। सरकारी अस्पतालों में न्यूनतम जांच की संख्या तय की जाएगी और यदि ये जांच सरकारी अस्पताल में नहीं हो रहे हैं और मरीज को जांच के लिए बाहर जाना पड़ रहा है तो उसकी कीमत सरकार देगी।
डेंगू, मलेरिया और हेपेटाइटिस जैसी कई गंभीर बीमारियां हैं जिसकी चपेट में आने से हर साल कई मरीजों की जान चली जाती है। कुछ भारी कीमतों की वजह से जांच नहीं करवाते हैं और उन्हें भी सही उपचार न मिलने पर अपनी जान गंवानी पड़ती है। गंभीर बिमारियों की जांच के नाम पर पैथोलॉजी लैब वाले मोटा पैसा वसूलते है। खबरों की मानें तो ये पैसा डॉक्टरों और बड़े-बड़े अधिकारियों तक पहुंचता था। इसके कारण गरीब मजदूर, किसान, आम जनता के लिए इलाज करा पाना बहुत कठिन होता था। हर साल बिमारियों की इलाज के लिए आम आदमी इतने पैसे खर्च करता है जिससे उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है। इलाज के खर्चे के लिए लोग अपनी संपत्ति तक बेचने को मजबूर हो जाते हैं यही नहीं इससे बच्चों की पढ़ाई भ प्रभावित होती है। दुनियाभर के देशों में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च को लेकर वर्ल्ड बैंक की साल 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च के कारण पांच करोड़ लोग गरीबी के शिकार होते हैं। हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने ये खुलासा विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी 2018 की रिपोर्ट सामने आई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय आबादी के 17 प्रतिशत लोगों यानी तकरीबन 23 करोड़ नागरिकों को वर्ष 2007 से 2015 के दौरान इलाज पर अपनी तनख्वाह का 10 फीसद से ज्यादा हिस्सा खर्च करना पड़ा था।
यही कारण है कि सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार अब हर स्तर पर सुधार का काम कर रही है और आम जनता स्वास्थ रहे इसके लिए आवश्यक कदम भी उठा रही है। आयुष्मान भारत योजना लाकर पहले ही आम जनता को मोदी सरकार ने बड़ा तोहफा दिया है जिससे वो इलाज का खर्च उठा सकें। अब विभिन्न जांचों के लिए मोदी सरकार का उठाया गया कदम आम जनता के लिए एक और बड़ी राहत होगी। फ़िलहाल इसपर केंद्र सरकार ने सभी से सुझाव मांगा है। स्पष्ट रूप से अगर ये प्लान जल्द ही लागू होता है तो इससे पैथालॉजी में जांच के नाम पर अवैध वसूली और लूट नहीं होगी। इससे आम जनता के जीवन स्तर में सुधार होगा।