हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में नोटा ने अच्छे-अच्छों का खेल बिगाड़ दिया। नोटा ने खासकर बीजेपी की लुटिया डुबोने का काम किया है। जबकि यही नोटा कांग्रेस के लिए ‘डूबते को तिनके का सहारा’के रूप में काम कर गया। राजस्थान की बात करें तो यहां भाजपा को जितने प्रतिशत वोट से हार मिली है, वह नोटा के पक्ष में गए वोटों के एक-तिहाई से भी कम है। इस तथ्य से इस बार बड़ी पार्टियों का चुनावी समीकरण बिगाड़ने में नोटा की भूमिका का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
चुनाव आयोग द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में भाजपा को 38.8 प्रतिशत तो कांग्रेस को 39.2 प्रतिशत वोट मिले हैं। दोनों के वोट प्रतिशत का अंतर महज 0.4 प्रतिशत है। वहीं दूसरी ओर अब तक राज्य में नोटा के खाते में गए वोटों का प्रतिशत 1.3 है। यानी हार और जीत के अंतर के तीन गुने से भी अधिक लोगों ने नोटा के पक्ष में वोट दिया है। वहां कुल मिलाकर 4,47,133 लोगों ने नोटा के पक्ष में वोट दिया।
राजस्थान में कुल 199 विधानसभा सीटों पर मतदान हुए। चुनाव परिणाम आया तो कांग्रेस को 99 जबकि बीजेपी को 73 सीटें मिलीं। इस तरह से राजस्थान में बीजेपी हार गई और कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है। जबकि अगर नजदीक से देखें तो स्थिति कुछ और है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहां सत्ता विरोधी लहर सिर्फ विपक्ष की उड़ाई हवा थी। अगर सत्ता विरोधी लहर ही होती तो कांग्रेस को ढंग का बहुमत मिल गया होता। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ जो यह बताता है कि सत्ताविरोधी लहर तो थी ही नहीं।
राजस्थान में लगभग 15 सीटों पर जनता ने किसी को न चुनने के विकल्प के रुप में NOTA का बटन जमकर दबाया। इन 15 सीटों पर नोटा वोटों की संख्या कांग्रेस-बीजेपी के बीच जीत-हार के अंतर से अधिक थी। असल में जनता ने अपनी ओर से किसी को भी वोट नहीं किया लेकिन यही वोट किसी एक पार्टी को जिताने का काम कर गया और वह पार्टी ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस ही है।
देखा जाए तो इन वोटों ने प्रदेश में बीजपी को हराने का काम किया है। सबसे पहले तो यहां हमें एक बात समझनी होगी कि, यह उन नाराज मतदाताओं का वोट है जो बीजेपी से एससी-एसटी या राम मंदिर जैसे मुद्दों पर नाराज थे। लोगों की इस नाराजगी के लिए विपक्षी दलों ने ‘नोटा’ के विकल्प का जाल बिछाया था। इसके लिए पूरी तैयारी के साथ कैंपन करके बीजेपी के नाराज समर्थकों को बरगलाया गया। बीजेपी के नाराज समर्थक इस जाल में फंस गए। इन नोटा समर्थकों ने 15 से 20 सीटों पर बीजेपी का खेल बिगाड़ दिया। जिसके कारण कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हो गई। अब अगर ये 20 सीटें बीजेपी को मिल गई होतीं तो बीजेपी के पास 93 सिटें हो जातीं और बाकी का काम निर्दलीय कर देते।
अब चुनाव होने के बाद नोटा का बटन दबाने वाले कांग्रेस की सरकार बनने खुश हों या ना हों पर उन्हें पांच सालों तक राज्य में कांग्रेस की सरकार ही देखनी है। यहां वो कहावत बिल्कुल सही उतरती है, ‘लम्हों में खता की थी, सदियों तक सजा पाई’। अब आगे लोकसभा चुनाव भी नजदीक हैं। ऐसे में मतदाताओं को एक बार फिर से सावधान रहने की जरूरत है। उन्हें विपक्ष द्वारा नोटा कैंपेन के प्रति सतर्क रहना होगा।