राजस्थान विधानसभा चुनावों में एससी व एसटी वोटबैंक इस बार भी अपनी बड़ी भूमिका निभाने वाला है। यही कारण है कि चुनाव प्रचार के दौरान भी पार्टियां एससी-एसटी वोटबैंक का खासा ध्यान रख रही है। भारतीय जनता पार्टी भी इस बार प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग पर अपना पूरा जोर लगाए हुए है। बीजेपी के प्रत्याशियों से तो यहां तक कहा जा रहा है कि, पीएम मोदी की रैली में वे कम से कम 40 फीसदी एसटी व एससी समुदाय के लोगों को लेकर आएं।
बता दें कि, राजस्थान की कुल आबादी में लगभग एक तिहाई सीटें इन समुदायों की ही हैं। प्रदेश में अगर एससी और एसटी वोटबैंक पर नजर डालें तो 17.8 फीसदी एससी वोटर हैं, जबकि 13.5 फीसदी वोटर एसटी हैं। ये कुल मिलाकर तकरीबन 31.3 फीसदी हैं। इन समुदायों की 59 सीटें सरकार बनाने में निर्णायक रहती हैं। प्रदेश में एसटी मतदाताओं की बात करें तो वे यहां के सातों संभागों में हैं। वहीं एससी मतदाताओं की बात करें तो उदयपुर संभाग में उनकी संख्या सबसे ज्यादा है। यही कारण था कि, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपना चुनावी अभियान उदयपुर से ही शरू किया था। राजे ने अगस्त के महीने में अपना चुनावी अभियान उदयपुर से ही शुरू किया था। उन्होंने यहां चारभुजा मंदिर से अपने अभियान की शुरुआत की थी।
भाजपा इन सीटों पर अपनी जीत के लिए पहले से ही बहुत उत्साहित दिखाई दे रही है। इसका बड़ा कारण यह है कि, 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा राजस्थान की 59 आरक्षित सीटों में से 50 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल हुई थी। भाजपा के प्रवक्ता मुकेश पारिख का कहना है कि, इस बार भाजपा एससी-एसटी की सीटें अच्छी संख्या में जीतेगी क्योंकि इन समुदायों के लिए पार्टी ने कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई हैं।
किरोड़ी लाल मीणा की वापसी से एसटी वोटबैंक बीजेपी के साथ
राजस्थान में एसटी वर्ग की बात करें तो इसमें मुख्यत: मीणा समाज के लोग ही हैं। मीणा समाज में किरोड़ी लाल मीणा ही प्रदेश के एकमात्र बड़े नेता हैं। किरोड़ी लाल मीणा जिस पार्टी को समर्थन देते हैं, वहीं पूरे मीणा समुदाय का वोट जाता है। इन चुनावों में किरोड़ी लाल ने भाजपा में वापसी कर ली है। किरोड़ी लाल की वापसी से भाजपा बहुत उत्साहित दिख रही है। मीणा 2008 में वसुंधरा से मतभेद के बाद पार्टी से अलग हो गए थे।
दोनों वर्गों के लिए मोदी और शाह की है खास रणनीति
बीजेपी ने राजस्थान में एससी व एसटी वोटबैंक को अपनी तरफ करने के लिए दो बड़े कद्दावर नेताओं को लगाया हुआ है। पार्टी पीएम नरेंद्र मोदी के जरिए इस वोट बैंक में बड़ी सैंध लगाने की कोशिश में है। पीएम की सभाओं में भी यह देखने को मिला है। अपने हर भाषण में मोदी दलितों और भीमराव अंबेडकर के बारे में कम से कम 5 से 7 मिनट तक बोल रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं को मोदी की सभाओं में इन वर्गों के लोगों को लाने के लिए खास निर्देश दिये जा रहे हैं। पीएम मोदी की अलवर की सभा की बात करें, तो इस लोकसभा क्षेत्र के सभी 11 विधायकों को मोदी की सभा में कम से कम दो हजार एससी व एसटी के लोगों का लाने के लिए कहा गया था।
वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की सभाओं में कांग्रेस का वोट बैंक रही अनुसूचित जनजाति पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। शाह की सभाएं भी उन क्षेत्रों में ज्यादा हो रही हैं जहां अनुसूचित जनजाति के लोगों की बहुलता है। पार्टी के इन दो दिग्गज नेताओं द्वारा इन दोनों वर्गों को साधने से अब प्रदेश में बीजेपी का प्रभाव इन दोनों वर्गों पर काफी बेहतर हो रहा है। उधर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नाथ संप्रदाय बाहुल्य और मुस्लिम इलाकों में रैलियां कर इन दोनों समाजों का वोट बैंक बीजेपी के पक्ष में करने में जुटे हुए हैं।
वहीं कांग्रेस इस बार के विधानसभा चुनावों मे अपनी अंदरूनी कलह से ही जूझ रही है। टिकट बंटवारें से नाराज पार्टी के बागी नेता निर्दलीय लड़कर कांग्रेस का वोट काटने में लगे हैं। उधर पार्टी की मजबूत कड़ी माने जाने वाली मुस्लिम बहुल सीटों पर इस बार निर्दलीय मुस्लिम उम्मीद्वारों की बाढ़ आई हुई है। इस कारण पार्टी के यहां भी भारी वोट कटने वाले हैं जिसका सीधा फायदा बीजेपी को ही होगा। काग्रेस भले ही सत्ता में वापसी के ले लिए अपनी बची-कुची शक्ति समेटकर चुनाव लड़ रही है लेकिन जातीय समीकरणों में बीजेपी का भारी पलड़ा कांग्रेस की सत्ता वापसी के बीच एक बड़ी दीवार बनकर खड़ा है।