“क्या हार में, क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं। संधर्ष पथ पर जो मिले, ये भी सही, वो भी सही।” शिवमंगल सिंह सुमन जी की ये पंक्तियां इन दिनों मध्यप्रदेश के लोकप्रिय ‘मामा’ यानी शिवराज सिंह चौहान पर बिल्कुल सही बैठ रही हैं। मध्यप्रदेश में कुछ गलतियों के कारण जीत से चूकने वाले शिवराज सिंह ने हार को जितनी सहजता से स्वीकारा और हार की जिम्मेदारी खुद ली, उससे विराधी भी उनके फैन हो गए। इस बीच केंद्रीय राजनीति में जाने के तमाम कयासों को भी उन्होंने एक झटके में नकार दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मैं एमपी छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा, यहीं मरूंगा। उनके इस बयान ने मध्यप्रदेश की जनता के प्रति उनका प्यार व सम्मान दर्शा दिया।
दरअसल, मीडिया में और आम जन में ऐसी सुगबुगाहट थी कि शिवराज सिंह अब केंद्रीय राजनीति में उतरेंगे। अब वो लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और केंद्र में बीजेपी सरकार बनने पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाएंगे लेकिन देशभर में चल रहे इन कयासों पर शिवराज सिंह चौहान ने एक ही झटके में विराम लगा दिया। शिवराज ने कहा, “मैं केंद्र की राजनीति में नहीं जाऊंगा। मैं मध्य प्रदेश में रहूंगा और यहीं पर मरूंगा।” बता दूं कि इससे पहले पार्टी को मिली हार की जिम्मेदारी भी खुद ही लेते हुए शिवराज ने कहा था, “मुझे जनता और कार्यकर्ताओं का भरपूर प्यार मिला। वोट भी हमें थोड़ा ज्यादा मिल गए, लेकिन संख्या बल में पिछड़ गए। इसलिए मैं संख्या बल के सामने शीश झुकाता हूं।”
ऐसे में ये शिवराज सिंह का बड़प्पन ही है कि उन्होंने इतने बड़े राज्य के हार की जिम्मेदारी खुद स्वीकार की। जबकि ऐसा माना जाता है कि किसी भी पार्टी की हार या जीत की जिम्मेदारी सामूहिक रुप से पूरी पार्टी की होती है। शिवराज सिंह ने सिर्फ हार की जिम्मेदारी ही नहीं ली, उन्होंने विपक्षी दल कांग्रेस और कमलनाथ को जीत की बधाई और शुभकामनाएं भी दी। ये बताता है कि शिवराज सिंह कितनी बड़े हृदय वाले व्यक्ति हैं। ऐसे ही वो मध्यप्रदेश की जनता के मामा नहीं बने हुए हैं।
इससे पहले शिवराज सिंह चौहान ने बुधवार को सीएम पद से इस्तीफा दिया। उन्होंने अपना इस्तीफा प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को राजभवन में जाकर सौंपा। इस्तीफा देकर उन्होंने कहा, “पराजय की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी, मेरी और मेरी है।” उसके बाद उन्होंने कांग्रेस को जीत की बधाई भी दी। बिना माथे पर शिकन के उन्होंने न सिर्फ सहज जनादेश स्वीकार किया बल्कि बिना किसी सरकारी नोटिस के सराकारी बंगला भी खाली कर दिया।
अब शिवराज सिंह चौहान ने मीडिया और जनता के मन में चल रहे सभी तरह के कयासों पर खुद ही विराम लगा दिया है। इससे साफ हो गया है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में वो चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने केंन्द्र में किसी तरह की जिम्मेदारी संभालने वाले कयासों पर भी विराम लगा दिया है। ये शिवराज का मध्यप्रदेश की जनता से नि:स्वार्थ प्रेम और आत्मीयता को दर्शाता है। ये बताता है कि यूं ही शिवराज सिंह को मध्यप्रदेश की जनता ने प्यार से ‘मामा’ का दर्जा नही दिया है।