सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई डायरेक्टर के तौर आलोक वर्मा वापस लौटे थे लेकिन उनकी बहाली के 48 घंटों के भीतर सिलेक्शन कमिटी ने आलोक वर्मा को पद से हटा दिया। हालांकि, आलोक वर्मा को महानिदेशक, अग्निशमन सेवा, नागरिक सुरक्षा और होमगार्ड के रूप में तैनात किया गया है। सीबीआई चीफ आलोक वर्मा और नंबर दो अफसर स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना दोनों ही अधिकारियों पर रिश्वतखोरी का आरोप लगा था। इसके बाद 23 अक्टूबर को रात 2 बजे आदेश जारी कर दोनों को ही केंद्र सरकार ने छुट्टी पर भेज दिया था। इस आदेश को अलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसके बाद 8 जनवरी को कोर्ट ने अपने फैसले में अलोक वर्मा को राहत दी थी लेकिन वर्मा को नीतिगत फैसलों से दूर रहने का भी आदेश दिया था। इसके साथ ही कोर्ट ये भी कहा था कि ये पूरा मामला पीएम, विपक्ष के नेता, और मुख्य न्यायाधीश की सिलेक्शन कमेटी में जाएगा। यही कमेटी एक हफ्ते के भीतर ये फैसला करेगी की आलोक वर्मा पद पर बने रहेंगे या नहीं। सिलेक्शन कमेटी केंद्रीय सतर्कता आयोग सीवीसी की रिपोर्ट को भी देखेगी।
सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली और कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे व सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस ए. के. सीकरी की सदस्यता वाली हाई-पावर्ड कमिटी ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) जांच रिपोर्ट के आधार पर आलोक वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर पद से हटाया। सीबीआई के 55 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब कमिटी ने 2:1 से ये निर्णय लिया। मोदी और समिति के दूसरे सदस्य सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए.के सीकरी वर्मा को हटाए जाने के पक्ष में थे जबकि कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे आलोक वर्मा को हटाए जाने के पक्ष में नहीं थे। ये वही मल्लिकार्जुन खड़गे हैं जिन्होंने कभी आलोक वर्मा की नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी। खड़गे ने वर्मा के नाम पर ये कहकर आपत्ति जताई थी कि उन्होंने इससे पहले कभी सीबीआई में काम नहीं किया है, लेकिन सरकार ने उनकी आपत्ति को तरजीह नहीं दी थी।
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की रिपोर्ट में आलोक वर्मा पर मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़े मामले की जांच को प्रभावित करने के लिए सतीश बाबू सना से 2 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप है। सीवीसी ने अपनी जांच में ममाले को वर्मा के आचरण को ‘संदेहास्पद’ और प्रथमदृष्टया ही उनके खिलाफ पाया।“ मीट कारोबारी मोइन कुरैशी के खिलाफ टैक्स चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप है। यही नहीं कुरैशी पर सीबीआई अफसरों, राजनेताओं समेत कई अधिकारियों को रिश्वत देने के भी आरोप हैं। सीवीसी रिपोर्ट में कुरैशी के मामले में, R & AW की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि “सीबीआई के नंबर एक अधिकारी के साथ पैसे का आदान प्रदान हुआ।”
आलोक वर्मा के खिलाफ एक और अन्य आरोप है वो ये है कि उन्होंने आईआरसीटीसी मामले में लालू यादव के करीबी एक अधिकारी को बचाने की कोशिश की थी।कमेटी ने कहा कि, “आईआरसीटीसी मामले में, सीवीसी ने पाया कि वर्मा ने पुख्ता सबूतों के बावजूद एक वरिष्ठ अधिकारी को जानबूझकर बचाया और जांच में से उनका नाम हटाया था।
इसके अलावा कमेटी ने सीवीसी रिपोर्ट में वर्मा पर लगे अन्य आरोपों की गंभीरता को भी संज्ञान में लिया. आलोक वर्मा पर रिकार्ड्स के साथ छेड़छाड़ करना और मामले की जांच में हस्तक्षेप करने जैसे आरोपों ने सीबीआई के इस अधिकारी की भूमिका को कटघरे में खड़ा कर दिया।
सूत्रों ने tfipost.com को जानकारी देते कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व वाली कमेटी ने सभी आरोपों को संज्ञान में लिया फिर फैसला किया। अलोक वर्मा ने इस दौरान कहा कि उनका पक्ष नहीं सुना गया था। इस पर कमेटी ने कहा कि सीवीसी की रिपोर्ट से पहले रिटायर हो चुके जस्टिस पटनायक के समक्ष वर्मा को अपना पक्ष रखने की अनुमति दी गयी गयी थी। यही नहीं सीवीसी की रिपोर्ट की एक प्रति भी आलोक वर्मा को दी गयी थी।
यही नहीं वर्मा पर क जमीनी घोटाले का भो आरोप है। इस मामले की जांच में पाया गया कि शुराती जांच को बंद करने के लिए कथित तौर पर 36 करोड़ रुपये में सौदा हुआ था। वर्मा पर आरोप लगा था कि उनका संपर्क हरियाणा के तत्कालीन टाउन ऐंड कंट्री प्लानिंग के डायरेक्टर और एक रियल एस्टेट कंपनी के साथ था।
सिलेक्शन कमिटी हरियाणा के एक जमीन घोटाले के मामले में भी वर्मा पर लगे आरोपों को काफी गंभीर प्रकृति का पाया। इस मामले में शुरुआती जांच को बंद करने को सुनिश्चित करने के लिए कथित तौर पर 36 करोड़ रुपये में सौदा हुआ। वर्मा पर आरोप है कि वे हरियाणा के तत्कालीन टाउन ऐंड कंट्री प्लानिंग के डायरेक्टर और एक रियल एस्टेट कंपनी के संपर्क में थे। सीवीसी ने इस मामले में ‘आगे की जांच की जरूरत’ बताई।
इन सभी आरोपों से स्पष्ट है कि आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार और कदाचार के गंभीर आरोप हैं सूत्रों के मुताबिक आलोक वर्मा के तबादले की सिफारिश पर कमिटी ने कहा, “पीएम मोदी की अध्यक्षता में सिलेक्शन कमेटी की भूमिका सिर्फ सीबीआई प्रमुख की तबादले और नियुक्ति तक ही सीमित है।” आलोक वर्मा पर लगाये गये आरोप गंभीर हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। ऐसे में इन आरोपों की जांच होनी चाहिए।