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72 घंटों तक अकेले डटे रहकर 300 चीनी सैनिकों को मारने वाले राइफलमैन जसवंत सिंह की बायोपिक हुई रिलीज

Pawan Jayaswal द्वारा Pawan Jayaswal
18 January 2019
in चलचित्र
जसवंत सिंह रावत

PC: imdb.com

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शहीद जसवंत सिंह रावत बायोपिक : 72 hours the movie

देश की जनता ‘उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक’ फिल्म से अभिभूत हो भारतीय सेना के पराक्रम को सेल्यूट करते थक नहीं रही है। यह फिल्म सिर्फ लोगों की वाहवाही ही नहीं बटोर रही बल्कि बॉक्स ऑफिस पर भी खूब धमाल मचा रही है और इसी बीच भारतीय सेना की बहादुरी दिखाती और सिनेमाहॉल में दर्शकों के रोंगटे खड़े कर देने वाली एक और फिल्म रिलीज हो गई है। फिल्म का नाम है ’72 आवर्स: मारटायर हू नेवर डायड’। यह भारतीय सेना के राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की बायोपिक (72 hours the movie) है। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान 4-गढ़वाल के राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने अरुणाचल प्रदेश के नूरानंग की लड़ाई में अकेले ही चीन के 300 सैनिकों को मार गिराया था। जसवंत सिंह की कहानी यहीं खत्म नहीं होती वे आज भी बॉर्डर पर रोज पहरा देते हैं।

72 hours the movie

जसवंत सिंह रावत भारतीय सेना के एक ऐसे जवान हैं जिन्हें शहीद होने के बाद भी पदोन्नत किया जाता रहा। सेना ने जसवंत सिंह के शहीद होने के 40 साल बाद उन्हें रिटायरमेंट देने की घोषणा की। देश के इतिहास में यह एक मात्र उदाहरण है। वे सिपाही के रूप में सेना से जुड़े और सूबेदार के पद पर रहते हुए शहीद हुए और अब वो मेजर की पोस्ट पर कार्यरत है। जी हां! वे आज भी हर रोज वर्दी पहन अपनी ड्यूटी निभाते हैं।

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जसवंत सिंह का जन्म 19 अगस्त, 1941 को श्री गुमान सिंह रावत के घर में गांव बैरुन, पौड़ी गढ़वाल में हुआ था। 17 नवंबर 1962 में चीनी सेना तवांग से आगे निकलते हुए अरुणाचल प्रदेश के नुरानांग पहुंच गयी थी। उधर जसवंत सिंह 10000 फीट की ऊंचाई पर स्थित नूरानांग पोस्ट पर तैनात थे। चीन भारत के इस क्षेत्र पर कब्जा जमाना चाहता था। इस दौरान सेना की एक बटालियन को नुरानांग पुल की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था लेकिन चीनी सेना भारतीय सेना पर हावी हो रही थी जिसको देखते हुए भारतीय सेना ने गढ़वाल राइफल की चौथी बटालियन को वापस बुला लिया। उस समय इस बटालियन में शामिल जसवंत सिंह, गोपाल गुसाई और लांस नायक त्रिलोकी वापस नहीं लौटे थे। इस लड़ाई में उनके दो साथी शहीद हो गये। इसके बावजूद मात्र 21 वर्ष की उम्र में जसवंत सिंह रावत ने 18 नवंबर को मोर्चा संभाला  और 72 घंटे तक वो बॉर्डर पर टिके रहे। जसवंत सिंह ने समझदारी का परिचय देते हुए अलग-अलग बंकरों से जा-जा कर गोलीबारी की। वहां पर पांच बंकरों पर मशीनगन लगायी गयी थी और रायफलमैन जसवंत सिंह छिप-छिपकर और कभी पेट के बल लेटकर दौड़ लगाते रहे। वे कभी एक बंकर से होते हुए कभी दूसरे तो तुरन्त तीसरे से और फिर चौथे, इस तरह अलग-अलग बंकरों से शत्रुओं पर गोले बरसाते रहे।

पूरा मोर्चा सैकड़ों चीनी सैनिकों से घिरा हुआ था और उनको आगे बढ़ने से रोक रहा था लेकिन, जसवंत सिंह के हौसले, बहादुरी और चतुराई भरी फुर्ती से चीनी सेना यही समझती रही कि हिंदुस्तान के अभी कई सैनिक मिल कर आग बरसा रहे हैं। जबकि हकीकत कुछ और थी। इधर जसवंत सिंह को लग गया था कि, अब मौत निश्चित है इसलिए प्राण रहते तक माँ भारती और तिरंगे की आन बचाए रखनी है। जितना भी गोला-बारूरद उपलब्ध था, उसके खत्म होने तक उन्होंने चीनियों को आगे नहीं बढ़ने दिया। यह रणबांकुरा बिना थके, भूखे-प्यासे पूरे 72 घंटे (तीन दिन तीन रात) तक चीनी सेनाओं की नाक में दम किये रहा। जसवंत सिंह ने अकेले ही चीनी सैनिकों को रोककर रखा और विभिन्न चौकियों से करीब 300 चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया। इस दौरान जसवंत सिंह रावत की मदद स्थानीय लड़कियों ने की थी जिनका नाम सेला और नूरा था। ये दोनों मिट्टी के बर्तन बनाती थीं।

लगातार चीनी सैनिकों को मारते-मारते जसवंत सिंह बुरी तरह से घायल हो चुके थे। जब उन्होंने देखा कि, वो अब चारों तरफ से घिर गये हैं उन्होंने बची हुई एक गोली खुद को मार ली थी। जसवंत सिंह ने अकेले ही चीनी सैनिकों की नाक में दम कर दिया था और इस खीझ में चीनी सेना उनका सिर काटकर अपने साथ ले गयी थी। उसके बाद भारतीय सेना की और टुकडियां युद्धस्थल तक पहुंच गयी थी और चीनी सेना को आगे बढ़ने से रोक लिया था। इस बहादुरी के लिए जसवंत सिंह को महावीर चक्र और त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह को वीर चक्र दिया गया था। उधर उनकी बहादुरी से चीन इतना प्रभावित हुआ कि लड़ाई ख़त्म हो जाने के बाद उसने जसवंत सिंह का सिर तो लौटाया ही, उनकी प्रतिमा बनवाकर भारतीय सैनिकों को भेंट की, जो आज भी उनके स्मारक में लगी हुई है।

जसवंत सिंह रावत ने जिस स्थान पर मोर्चा संभाला था वहां पर उनकी याद में एक मंदिर बनाया गया है। उस पूरे इलाके को जसवंतगढ़ के नाम से जाना जाता है। सेना की एक टुकडी वहां 12 महीने तैनात रहती है जो हर पहर उनके खाने, कपने और सोने का प्रबंध करती है। हर साल 17 नवम्बर को वहां पर कार्यक्रम किया जाता है। उनका स्मारक गुवाहाटी से तवांग जाने के रास्ते में 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बना है। यहां चीनी सैनिक भी सिर झुकाते हैं। इस मंदिर के रास्ते से गुजरने वाला कोई जनरल हो या जवान उन्हें श्रद्धांजली दिए बिना आगे नहीं बढ़ता। यही नहीं, उनके शहीद होने के बाद भी उनके नाम के आगे स्वर्गीय नहीं लगाया जाता है।

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स्थानीय लोगों के मुताबिक, जिस इलाके का मोर्चा जसवंत सिंह रावत ने संभाला था, उस जगह वो आज भी ड्यूटी करते हैं। हर दिन उनकी वर्दी प्रेस की जाती है और उनका जूता पोलिश किया जाता है लेकिन हर दिन ऐसा लगता है जैसे कोई जूता पहनकर कहीं गया था। यही नहीं, इस जाबांज को आज भी सेना से छुट्टी दी जाती है। जसवंत सिंह के परिवार वाले जब जरूरत होती है उनकी तरफ से छुट्टी की दर्खास्त देते हैं और छुट्टी मंजूर होने पर उनकी प्रतिमा को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उतराखंड के उनके पुश्तैनी गांव ले जाते हैं। फिर छुट्टी समाप्त होने पर उतने ही सम्मान के साथ उन्हें वापस लाया जाता है। सेना में ऐसी मान्यता है कि, जिन सैनिकों को सीमा पर झपकी लग जाती है उनको जसवंत सिंह रावत की आत्मा चांटा मारकर चौकन्ना कर देती है। अरुणाचल प्रदेश में नूरानंग की लड़ाई में मरणोपरांत जसवंत सिंह को महावीर चक्र मिला था। गढ़वाल राइफल के वीर जांबाजों में से एक जसवंत सिंह की वीरता याद कर आज भी इस रेंजीमेंट के जवानों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

आज रिलीज हुई शहीद जसवंत सिंह रावत की बायोपिक 72 hours the movie जेएसआर प्रोडक्शन द्वारा बनाई गई है और इसके स्क्रिप्ट राइटर अविनाश ध्यानी हैं। श्रीनगर निवासी ऋषि भट्ट ने इस फिल्म के संवाद लिखे हैं और फिल्म में अभिनय भी किया है। फिल्म में अस्सी प्रतिशत कलाकार उत्तराखंड से हैं। फिल्म के गीत सुखविंदर, शान, मोहित चौहान व श्रेया घोषाल ने गाए हैं। ऋषि भट्ट ने बताया कि, फिल्म की वास्तविकता को दिखाने के लिए इसकी शूटिंग सात हजार फिट की उंचाई पर की गयी है और इस फिल्म की शूटिंग करीब एक साल तक चली है।

फिल्म की शूटिंग चकराता, गंगोत्री, हर्सिल और हरियाणा के रेवाड़ी में हुई है। वहीं अधिकतर शूटिंग उत्तराखंड में की गई है। अविनाश ध्यानी कहते हैं, “जसवंत सिंह रावत की कहानी को अभी तक बड़े पर्दे पर नहीं दिखाना बॉलीवुड की एक नाकामी है। उन्होंने अकेले के दम पर चीनी सैनिकों को 3 दिन तक रोके रखा था। उनकी सूझबूझ और चपलता के कारण उन्होंने अकेले के दम पर 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था। खास बात यह है कि वह 3 दिन तक अकेले ही युद्ध करते रहे।” वहीं फिल्म के निर्माता प्रशील रावत का कहना है कि, यह फिल्म 72 hours the movie उनके लिए एक फिल्म नहीं बल्कि एक सोच है। वह चाहते हैं कि जसवंत सिंह रावत लोगों के घरों तक पहुंचे और उनकी शौर्य गाथा को सभी नमन करें। अविनाश ने बताया कि, तीन साल की रिसर्च के बाद फिल्म की पटकथा लिखी गई। इस दौरान वह महावीर चक्र विजेता शहीद जसंवत सिंह रावत के पौड़ी जिले में स्थित बाडिय़ूं गांव भी गए, जहां उनके रिश्तेदारों से बातचीत कर उनके जीवन से जुड़े कई पहलुओं को जाना। इसके अलवा उन्होंने उनके युद्ध के दौरान के साथी कीर्ति चक्रविजेता गोपाल सिंह गुसाईं से भी मुलाकात की, जिनसे उन्हें काफी जानकारी मिली। अविनाश के अनुसार, कहानी लिखने के दौरान मैंने शहीद की आत्मा को अपने आसपास महसूस किया।

Tags: 72 hours the movieफ़िल्मबॉलीवुड
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फिल्म "उदयपुर फाइल्स: कन्हैया लाल टेलर मर्डर" की रिलीज़ पर लगी रोक को बढ़ाने से इनकार कर दिया। इससे अब...

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