लोकसभा चुनाव पास है और राहुल गांधी को अपनी पार्टी मजबूती के साथ चुनाव में उतारना है लेकिन वो ऐसा कर पाने में सफल नहीं हो पाएंगे और ये बात उन्हें भी अच्छी तरह पता है। ऐसे में उन्होंने अपनी बहन को सक्रीय राजनीति से जोड़ने का फैसला कर लिया है। वास्तव में उनके कमजोर नेतृत्व और विफल रणनीतियों के कारण पार्टी में उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जो एक पार्टी के अध्यक्ष को मिलना चाहिए। राहुल गांधी से ज्यादा पार्टी में प्रियंका गांधी वाड्रा के फैसलों को महत्व दिया जाता रहा है। हाल ही में तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद जिस तरह की भूमिका प्रियंका गांधी वाड्रा ने निभाई वो सभी के सामने थी। अब जब राहुल गांधी को लगने लगा कि पार्टी की नैया उनसे नहीं संभलेगी। ऐसी स्थिति में उन्होंने अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को उत्तर प्रदेश का कांग्रेस महासचिव नियुक्त कर दिया है। इसका मतलब ये है कि यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी ने अब आधिकारिक तौर पर राजनीति में कदम रख दिया है। लोकसभा चुनाव को पास देखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को प्रियंका गांधी को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त कर दिया। प्रियंका गांधी वाड्रा पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गयी है और फरवरी के पहले सप्ताह में वो अपनी जिम्मेदारी को संभालेंगी।
Priyanka Gandhi Vadra appointed Congress General Secretary for Uttar Pradesh East. pic.twitter.com/rkl57AFVzw
— ANI (@ANI) January 23, 2019
वैसे ऐसा नहीं होता अगर राहुल गांधी एक सफल नेता होते और पार्टी की कमान जिम्मेदारी के साथ संभाल पाते। साल 2014 के बाद से कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही थी और इस दौर में राहुल गांधी को पार्टी का नेतृत्व संभालने के लिए जिम्मदारी दी गयी थी। इस दौरान उन्हें पप्पू, बाबा, शहजादा जैसे कई नाम मिले और कहा गया वो राजनीति के लिए नहीं बने हैं और आज भी वो इस कहे को नहीं बदल पाए हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि राहुल गांधी को अपने अक्षमता के कारण ही प्रियंका गांधी वाड्रा को सक्रिय राजनीति से जोड़ने का फैसला लेना पड़ा। इस तथ्य से सभी वाकिफ हैं कि प्रियंका गांधी राहुल गांधी से ज्यादा सक्षम नेता हैं चाहे वो नीतियों की बात हो, चाहे वो चुनाव प्रचार हो। हर स्तर पर उनकी नीतियों ने कांग्रेस को आगे की ओर बढ़ाया है। ये बात कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता बखूबी जानते हैं। प्रियंका गांधी अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली और अमेठी में ही चुनाव प्रचार करती रही हैं और उनके चुनाव प्रचार से पार्टी को काफी फायदा भी हुआ है। प्रियंका गांधी की सादगी, बोलने का तरीका उनका आम लोगों और पार्टी के कार्यकर्ताओं से जुड़ने का अंदाज सभी को पसंद आता है। यहां तक कि लोग उनमें इंदिरा गांधी की छवि को देखते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के गुरु गया प्रसाद ने कहा था कि प्रियंका गांधी हमेशा से ही राजनीति में आना चाहती थीं। इस तथ्य को जानते हुए भी प्रियंका गांधी को कभी सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनने नहीं दिया गया। हालांकि, जब भी चुनाव आते हैं प्रियंका गांधी अचानक से खबरों में आ जाती हैं और इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है बस फर्क इतना है इस बार उन्हें पार्टी की यूपी में पार्टी की कमान संभालने की जिम्मेदारी दी गयी है।
एक नहीं बल्कि ऐसे कई मौके आये हैं जब प्रियंका गांधी ने अपनी वाक्पटुता और अपनी नीति से सभी को चौंका दिया है, इसके बावजूद हमेशा ही वो कांग्रेस के लिए खुलकर सामने से कोई भी भूमिका नहीं निभाती हैं, लेकिन कई बार उनकी नीतियों ने कांग्रेस को मुश्किल की घड़ी से बाहर निकाला है। हाल ही में हिंदी बेल्ट के तीन बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस पार्टी के समक्ष खड़ी बड़ी मुश्किल को उन्होंने अपने नेतृत्व से ऐसे सुलझाया जिससे पार्टी की वक्ता भी बनी रही और कोई टकराव भी नहीं हुआ। उनके नेतृत्व की हर तरफ सराहना और भी ज्यादा बढ़ गयी। चाहे वो वर्ष 2014 के आम चुनाव हो या कर्नाटक विधानसभा चुनाव हर जगह प्रियंका की भूमिका काफी अहम रही है। प्रियंका ने आम चुनाव 2014 के मद्देनज़र भी अपने भाई की सीट अमेठी में पार्टी के ‘वॉररूम’ को संभाला था। कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की अमेठी संसदीय सीट पर अपने भाई राहुल गांधी के लिए चुनाव प्रचार किया था। यहां तक कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने ही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन की रूपरेखा रखी थी और उन्होंने ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से बात की थी। इसकी पुष्टि तब हुई थी जब गुलाम नबी आजाद ने गठबंधन के लिए प्रियंका गांधी को धन्यवाद दिया था।
वर्ष 2014 में हुए चुनाव के बाद से ही कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता ये कहते रहे हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष के पद लिए प्रियंका गांधी राहुल गांधी की तुलना में ज्यादा बेहतर विकल्प हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा राहुल गांधी की तुलना में हर स्तर पर जहां भी उन्होंने हिस्सा लिया है बेहतरीन प्रदर्शन किया है। यही वजह है कि पार्टी में निरंतर ये मांग उठती रही है कि प्रियंका गांधी अपनी भूमिका रायबरेली और अमेठी से आगे भी निभानी चाहिए लेकिन फिर भी वो सक्रिय राजनीति से दूर रही। जब लोकसभा चुनाव पाका समय और पास आ गया है तब कांग्रेस पार्टी को ये समझ आई कि प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी के लिए क्या महत्व रखी हैं। तभी तो कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2019 से पहले प्रियंका गांधी को बड़ा पद देते हुए उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना दिया है।