साल 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने गठबंधन कर लिया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमों मायावती ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस गठबंधन पर मुहर भी लग दी। दोनों के बीच सीटों का बंटवारा 38-38 भी हो गया। हालांकि, बसपा-सपा ने इस गठबंधन में कांग्रेस को कोई जगह नहीं दी जिसके बाद इस पुरानी पार्टी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वो उत्तर प्रदेश में अकेले में 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि, समाजवादी पार्टी से अलग हुए वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव ने प्रदेश में कांग्रेस के साथ मिलकर एक नए गठबंधन का ऑफर भी दे दिया है। अगर कांग्रेस और शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी(लोहिया) के बीच गठबंधन होता है तो ये मुकाबला तीन तरफा हो जायेगा। इसका मतलब ये है कि कांग्रेस- प्रगतिशील समाजवादी पार्टी(लोहिया), सपा-बसपा और बीजेपी में त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है।
बता दें कि, सपा-बसपा के गठबंधन से ये कयास लगाये जा रहे थे कि, राज्य में राजनीतिक समीकरण बदल जायेगा जिसका खामियाजा भारतीय जनता पार्टी को भुगतना पड़ सकता है। दोनों ही पार्टियों की जोड़ी को सफल माना जाता है इसकी वजह इन दोनों पार्टियों के वोटबैंक हैं। इन दोनों के साथ आने पर इसे राजनीतिक तौर पर ‘विनिंग कॉम्बिनेशन’ तक का नाम दिया जाने लगा। अब इस गठबंधन के बाद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी(लोहिया) ने कांग्रेस को गठबंधन का ऑफर दिया है। अगर देखा जाए तो कांग्रेस इस ऑफर को ठुकरा कर अपना घाटा नहीं करना चाहेगी क्योंकि उत्तर प्रदेश में उसका मतदाता आधार बहुत ही कमजोर है। ऐसे में शिवपाल यादव की तरफ से मिला ऑफर इस पुरानी पार्टी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। शिवपाल द्वारा नयी पार्टी के गठबंधन से समाजवादी पार्टी का समर्थन आधार पहले ही दो भागों विभाजित हो चुका है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि शिवपाल सिंह यादव की नई पार्टी अखिलेश की समाजवादी पार्टी को पग-पग पर नुकसान पहुंचाएगी। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि शिवपाल समाजवादी पार्टी के पुराने कद्दावर नेता रहे हैं। समाजवादी पार्टी में उनकी जबरदस्त पकड़ और जनाधार है लेकिन, अब उनके अलग होते ही समाजवादी पार्टी के का जनाधार दो हिस्सों में बंट चुका है। इसके अलावा सपा से नाराज या उपेक्षित नेता व कार्यकर्ता भी तेजी से शिवपाल की तरफ रुख कर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस को शिवपाल के ऑफर को स्वीकार करने से सिर्फ लाभ ही होगा क्योंकि शिवपाल की पार्टी कांग्रेस के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ाने का काम करेगा। ऐसे में 25 साल की पुरानी दुश्मनी के बाद साथ आये सपा-बसपा के लिए जीत की राह और मुश्किल हो गयी है क्योंकि जनता के सामने विकल्प भी बढ़ गया है। या तो वो सपा-बसपा के साथ जायें या फिर कांग्रेस- प्रगतिशील समाजवादी पार्टी(लोहिया) के साथ जायें। स्पष्ट रूप से मतदाताओं के सामने असमंजस की स्थिति पैदा हो गयी है और जब जब इस तरह की स्थिति पैदा हुई है भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली है।
चाहे वो महाराष्ट्र चुनाव के बाद बीजेपी ने बृहन मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव हो जहां बीजेपी ने शिवसेना और एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन का सामना किया था और बेहतरीन प्रदर्शन किया था। इस चुनाव में शिवसेना 227 में से केवल 84 सीटों पर ही कब्जा कर पायी थी और बीजेपी ने 82 सीटों पर कब्जा किया था। चाहे वो साल 2017 में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव हो जहां बसपा, सपा-कांग्रेस और बीजेपी के बीच तीन तरफा मुकाबला हुआ था। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की थी। ऐसे में स्पष्ट है कि अब उत्तर प्रदेश में अगर त्रिकोणीय मुकाबला होता है तो स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी।