जिस गीत को गाकर और जिस वाक्य के जयघोष के साथ देश के वीर सपूतों ने अंग्रेजों के चंगुल से भारत को मुक्ति दिलाई, वह वंदे मातरम अब देश की सबसे पुरानी पार्टी को रास नहीं आ रहा है। सत्ता में आते ही कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में तुष्टिकरण की गंदी राजनीति शुरू कर दी है। शायद सचिवालय में वंदेमातरम गाए जाने की परंपरा को बंद करके कांग्रेस का मन नहीं भरा था, जो अब वह वंदे मातरम को ही नया रूप देने की बात कह रही है।
मध्य प्रदेश में लंबे समय से चल रही एक परंपरा नए साल की पहली तारीख को टूट गई। दरअसल, मध्य प्रदेश सचिवालय में हर महीने की पहली तारीख को वंदे मातरम गाने की परंपरा थी लेकिन 1 जनवरी 2019 को सचिवालय में वंदेमातरम के बोल नहीं गूंजे। कांग्रेस की नवनिर्वाचित सरकार ने सचिवालय में राष्ट्रगीत गाए जाने की परंपरा ही बंद कर दी है। इसको लेकर कमलनाथ ने खुद पुष्टि करते हुए कहा कि, हर महीने की एक तारीख को मंत्रालय में वंदे मातरम गाने की अनिवार्यता को फिलहाल अभी बंद करने का निर्णय लिया गया है।
कांग्रेस यहीं तक नहीं रुकी, मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि, वह जल्द ही वंदेमातरम को अलग रूप देंगे। उन्होंने कहा कि, इसकी जल्द (बुधवार या गुरुवार को) घोषणा हो जाएगी। वहीं मध्यप्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता जे पी धनोपिया ने कहा कि, वंदेमातरम गायन बंद नहीं किया गया है। फिलहाल रोका गया है और इसमें सुधार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि, अभी जो इसका स्वरूप था, उसमें बड़ी संख्या में लोग उसमें शामिल नहीं होते थे, इसीलिए इसमें सुधार का प्रावधान रखा जाएगा। कांग्रेस के इस बयान के बाद से अब वंदे मातरम का मुद्दा तूल पकड़ चुका है।
मध्यप्रदेश सचिवालय में वंदे मातरम गायन की परंपरा को रोके जाने और उसमे फैरबदल करने के कांग्रेस के निर्णय के बाद बीजेपी आक्रामक हो गई है। अब इस मुद्दे को भाजपा देशव्यापी आंदोलन बनाने की तैयारी कर रही है। पार्टी की कोशिश है कि, आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले इस गीत पर प्रतिबंध लगाने पर हर महीने आंदोलन किया जाए और जगह-जगह राष्ट्रगीत गाया जाए।
इस मुद्दे पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी कांग्रेस पर हमला बोला है। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से सवाल किया है कि, क्या वंदेमातरम का अपमान उनका निर्णय है? उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार के इस दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय पर राहुल गांधी को देश की जनता के सामने अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए। अमित शाह ने सोशल मीडिया पर लिखा, “किसी भी प्रकार की राजनीतिक सोच में देश के बलिदानियों का अपमान करना मेरे जैसे एक आम भारतीय की दृष्टि में देशद्रोह के समान है। वंदेमातरम किसी एक वर्ग विशेष का नहीं है बल्कि भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण देने वाले लाखों सेनानियों के त्याग का प्रतीक है और केवल एक वर्ग विशेष को खुश करने के लिए इसका अपमान करना बहुत ही दुखद, शर्मनाक और देश की स्वतंत्रता का अपमान भी है।”
अमित शाह ने आगे लिखा, “हिंदुस्तान के हृदय मध्य प्रदेश को तुष्टिकरण का केंद्र बनाती कांग्रेस सरकार। मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम गाने पर प्रतिबंध लगाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण एवं शर्मनाक है। वंदेमातरम मात्र एक गीत भर नहीं होकर यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक एवं प्रत्येक भारतीय का प्रेरणाबिंदु है। वंदेमातरम में संपूर्ण भारत की रागात्मक अभिव्यक्ति समाहित है। वंदेमातरम पर प्रतिबंध लगाकर कांग्रेस ने न सिर्फ देश की स्वाधीनता के लिए वंदेमातरम का जयघोष गाकर अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले वीर बलिदानियों का अपमान किया है बल्कि यह मध्य प्रदेश की जनता के साथ भी विश्वासघात है।“
उधर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कहा है कि, वे विधानसभा सत्र के पहले दिन पार्टी के सारे विधायकों के साथ मंत्रालय स्थित सरदार पटेल उद्यान में वंदे मातरम का गायन करेंगे। इसके बाद वे विधायकों के साथ मंत्रालय से विधानसभा तक पैदल मार्च करेंगे। इससे पहले शिवराज सिंह चौहान ने ट्विट करते हुए तंज भरे अंदाज में कहा था, “अगर कांग्रेस को राष्ट्रगीत के शब्द नहीं आते हैं या राष्ट्रगीत के गायन में शर्म आती है तो मुझे बता दें। हर महीने की पहली तारीख को मध्यप्रदेश के वल्लभ भवन के प्रांगण में जनता के साथ वंदे मातरम मैं गाऊंगा।”
ऐसा लगता है कि, कांग्रेस को पाकिस्तान से प्रेम दर्शाने में तो जरा भी संकोच नजर नहीं आता है लेकिन राष्ट्रगीत गाने में संकोच होता है। कांग्रेस के नेता पाकिस्तान में जाकर देश विरोधी गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं। उनके नेता अलगाववादियों और खालिस्तान समर्थकों के साथ गलबहियां करते नजर आते हैं। वहां जाकर आईएसआई और उसके सहयोगी आतंकियों संग फोटो खिंचाते हैं। उसमें कांग्रेस को कोई भी संकोच महसूस नहीं होता है लेकिन कांग्रेस को राष्ट्र गीत गाने में संकोच महसूस होता है। इन सारी गतिविधियों से एक बार फिर से कांग्रेस का चेहरा जनता के सामने आ गया है। तुष्टिकरण की राजनीति में कांग्रेस किस हद तक गिर सकती है, यह उसी का प्रमाण प्रतीत हो रहा है।