इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने वैदिक शिक्षा के लिए भारत के पहले राष्ट्रीय स्कूल बोर्ड (भारतीय शिक्षा बोर्ड) बनाने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। सरकार के इस कदम से बीजेपी के उन असंतुष्ट समर्थकों की नाराजगी खत्म होने की उम्मीद है, जिनका मानना था कि, वर्तमान सरकार ने वेद शिक्षा व वेद पाठशालाओं को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं किया है। लंबे समय से ‘वैदिक पाठशाला’ और वैदिक शिक्षा को बढ़ावा देने की मांग की जा रही है और यह उस मांग को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत एक पूरी तरह से वित्त पोषित स्वायत्त निकाय महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान पहले से ही वेद विद्या के प्रचार के लिए काम कर रहा है। इस प्रतिष्ठान ने ही दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की अध्यक्षता में शुक्रवार को आयोजित हुई बैठक में वैदिक शिक्षा के भारतीय शिक्षा बोर्ड को सैद्धांतिक मंजूरी दी है।
महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान की गवर्निंग काउंसिल को अब एक सप्ताह में बोर्ड के उपनियमों के साथ आने का आदेश दिया गया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन वैदिक शिक्षा के संवर्धन और संरक्षण के उद्देश्य से किया जाएगा। भारतीय शिक्षा बोर्ड पाठ्यक्रम का मसौदा तैयार करेगा, नियमित परीक्षा आयोजित करेगा और प्रमाण पत्र भी प्रदान करेगा।
गौरतलब है कि, आज कि आधुनिक शिक्षा पद्दती स्कूली बच्चों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों, इतिहास और सभ्यता से अलग कर रही है। वर्तमान में स्कूलों में विद्यार्थियों को वैदिक शिक्षा, उपनिषदों, गीता, रामायण और हिंदू धर्म ग्रंथों के बारे में नहीं पढ़ाया जा रहा है। लाखों हिंदू चाहते हैं कि, उनके बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़ें और उन्हें पाठ्यक्रम में वैदिक शिक्षा मिले। वैदिक शिक्षा के भारतीय शिक्षा बोर्ड के लिए अनुमति मिलने के बाद अब स्टूडेंट्स को वेदों का शिक्षण भी मिल पाएगा।
पारंपरिक पाठशालाओं को मान्यता देने के साथ ही भारतीय शिक्षा बोर्ड को यह भी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी कि, वह बोर्ड में ऐसे स्कूलों को शामिल करे जो आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ वैदिक शिक्षा भी देने के लिए तैयार हों। भारतीय शिक्षा बोर्ड की स्थापना के बाद आर्य समाज द्वारा संचालित आचार्यकुलम, आरएसएस द्वारा संचालित विद्या भारती स्कूल और गुरुकुल जैसे शैक्षणिक संस्थानों को भी फायदा होगा। बोर्ड इन संस्थानों को कक्षा 12 वीं तक की शिक्षा के अपने मॉडल के अंतर्गत अनुमति देगा। फिलहाल सीबीएसई जैसे स्कूल बोर्ड इन संस्थानों को अपने अंतर्गत शामिल नहीं करते हैं।
बता दें कि, शिक्षा का अधिकार (आरटीई) ने हिंदू संस्कृति से संचालित होने वाले शैक्षणिक संस्थानों को भारी नुकसान पहुंचाया है। भारतीय शिक्षा बोर्ड का दूरगामी परिणाम यह होगा कि, इससे आने वाली पीढ़ी वर्तमान की वामपंथ से प्रभावित शिक्षा प्रणाली से मुक्त हो जाएगी। अब तक धर्मनिरपेक्षता और आधुनिक शिक्षा के नाम पर स्कूली पाठ्यपुस्तकों में हिंदू-विरोधी एजेंडे को परोसा गया था। अब सरकार स्कूली पाठ्यक्रम को सही करने का एक साहसिक कदम उठा रही है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में थोड़ा समय जरूर लगेगा।