जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय एक बार फिर से विवादों में है। इस बार यहां हिंदी भाषा के खिलाफ षड़यंत्र करने का मामला सामने आया है। मामला तब सामने आया जब यहां के एक 35 वर्षीय रिसर्च स्कॉलर ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस रिसर्च स्कॉलर ने आरोप लगाया है कि उस पर हिंदी को सांप्रदायिक भाषा बताते हुए रिसर्च करने का दबाव बनाया जा रहा है। हिंदी भाषा के खिलाफ रिसर्च करने के लिए दबाव बनाने के मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सी हरी शंकर ने विश्वविद्यालय और सह-प्राध्यापक को नोटिस जारी करते हुए इस पर 23 अप्रैल तक जवाब मांगा है। यह मामला तो कोर्ट में आने की वजह से सामने आ गया, हो सकता है हिदी कोबदन
जेएनयू के इस रिसर्च स्कॉलर का नाम आशुतोष कुमार रॉय है। वह जेएनयू के सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज का पीएचडी का स्टूडेंट है। आशुतोष ने अपने वकील दिव्यांशु पांडे के माध्यम से आरोप लगाया है कि, प्रोफेसर ने जबरन उनका विषय बदलकर हिंदी करने और हिंदी को सांप्रदायिक भाषा बताते हुए रिसर्च करने का दबाव बनाया। आशुतोष ने अब मौलिक अधिकारों का हवाला देते हुए शीतकालीन सेमेस्टर 2019 के लिए पीएचडी सुपरवाइजर उपलब्ध कराने की मांग की है।
अपनी इस याचिका में आशुतोष ने जेएनयू द्वारा रजिस्ट्रेशन के लिए मना करने, हिंदी पब्लिक स्फियर (1870-1970) और राष्ट्रवाद पर बहस के जरिए हिंदी को बदनाम करने की साजिश करने को लेकर जांच की मांग की है। आशुतोष ने इस याचिका में एक्टिंग सुपरवाइजर और अन्य दूसरे लोगों पर आरोप लगाया है कि उन्होंने राय पर हिंदी की छवि खराब करने को लेकर रिसर्च करने का दबाव बनाया। याचिका में कहा गया है कि, उन लोगों ने हिंदी के प्रतिष्ठित लोगों के साथ भी ऐसा ही करने का दबाव बनाया। याचिक में रॉय ने आगे की पीएचडी रोकने का भी आरोप लगाया है।
आशुतोष का आरोप है कि उनके साथ यूनिवर्सिटी के नियमों के विरूद्द व्यवहार हो रहा है और यह उनके मौलिक अधिकारों के विरुद्द है। आशुतोष ने कहा है कि, यूनिवर्सिटी की तरफ से उनकी रिसर्च के लिए रिसर्च एडवाइजरी कमेटी का भी गठन नहीं किया जा रहा है।
हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में आशुतोष ने कहा कि दिसंबर 2017 से लेकर जून 2018 तक वो तीन बार नए सुपरवाइजर की नियुक्ति की अपील कर चुके हैं लेकिन यूनिवर्सिटी की तरफ से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है। आशुतोष ने सेल्फ स्टडी करके और बिना किसी मदद के जुलाई 2018 में शोध प्रारूप दिया था। रॉय के इस शोध प्रारूप को जब कमेटी ऑफ एडवांस स्टडी एंड रिसर्च में प्रस्तुत किया गया तो प्रोफेसर ने शोध प्रारूप अपने पास रख लिया और कहा कि यहां हिंदी के पक्ष में रिसर्च करने के लिए कोई जगह नहीं है, बेहतर होगा कि आप दिल्ली विश्वविद्यालय चले जाइए और वहां जाकर भारतेंदु हरिश्चंद्र का गुणगान करें।
एक तरफ तो प्रधानमंत्री मोदी दुनिया भर में हिंदी में भाषण देकर हिंदी को लोकप्रिय बना रहे हैं दूसरी तरफ देश में ही कुछ लोग ऐसे हैं जो हिंदी को बदनाम करने के लिए पता नहीं कितने समय से कोशिशें कर रहे हैं। यह वाकई चौंकाने वाली खबर है कि एक प्रोफेसर ही ऐसा कर रहा है।
गौरतलब है कि, हाल ही में अबुधाबी की अदालतों ने हिंदी को अरबी और इंग्लिश के बाद तीसरी अधिकारिक भाषा घोषित किया है। अब वहां अदालत के फैसले हिंदी में भी मिल सकेंगे। वहीं देश की राजधानी में स्थित एक बड़े विश्वविद्यालय में ही हिंदी का गला घोंटा जा रहा है। आशा है कि, अदालत और जेएनयू प्रशासन आशुतोष की याचिका पर कोई ठोस फैसला लेगा और हिंदी को बदनाम करने की साजिश करने वाले लोगों को सबक मिलेगा।