चिटफंड और रोज वैली घोटाले से ममता इतना घबरा गई हैं कि अब वो सीबीआई अधिकारी को ही गिरफ्तार करवा रही हैं। ममता को पता है कि सीबीआई जांच हो गई तो उनकी पार्टी के कई नेता और ममता के नजदीकी कई खास लोगों का नाम सामने आ जाएगा। ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें भारी नुकसान हो सकता है। इसी के डर से ममता पर बैठ गयी हैं।
आइए जानते हैं क्या हैं ये घोटाले, कैसे हुए ये घोटाले जिनका जांच के नाम पर ममता बनर्जी के पैरों तले जमीन खिसकने लगती है…
रोज वैली घोटाला
रोज वैली घोटाले ने एक वक्त पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच था। ये मामला उस वक्त सुर्खियों में आया, जब इसमें पश्चिम बंगाल के बड़े-बड़े नेताओं के नाम आने की बातें उठने लगीं। रिपोर्ट्स की मानें तो इस घोटाले में लोगों को बड़े-बड़े खूबसूरत सपने दिखाकर ठगने का काम किया गया था। इन ठगों के गिरोह के तार राजनीति, रियल एस्टेट और फिल्म जगत तक से जुड़े हुए थे। रोज वैली चिटफंड नाम के इस घोटाले में रोज वैली ग्रुप ने लोगों को 2 अलग-अलग स्कीम का लालच दिया था। आकर्षक लालच देकर कंपनी ने करीब 1 लाख निवेशकों को करोड़ों का चूना लगा दिया था। ये घोटाला शारदा घोटाले से सात गुना बड़ा है जिसमें लगभग 15000 करोड़ रुपए करोड़ का घोटाला हुआ था। कंपनी ने आशीर्वाद और होलिडे मेंबरशिप जैसे स्कीम के नाम पर लोगों को ज्यादा रिटर्न देने का वादा किया। इसके बाद लोगों ने भी इनके झांसों में आकर इसमें निवेश कर बैठे। खबरों की मानें तो ग्रुप एमडी शिवमय दत्ता इस घोटाले के मास्टरमाइंड बताए जाते हैं।
शारदा चिटफंड घोटाला
शारदा ग्रुप पश्चिम बंगाल की एक चिटफंड कंपनी थी। इस कंपनी ने भी लोगों को लुभावने ऑफर देकर चूना लगाने का काम किया था। शारदा चिट फंड में 2500 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ था। शारदा ग्रुप ने लोगों को इस बात का लालच दिया कि सागौन से जुड़े बॉन्ड्स में निवेश करने पर 34 गुना ज्यादा रिटर्न मिलेगा। इसके लिए कंपनी ने निवेशकों को 25 साल का लॉकिंग पीरयड बताया था। इसके अलावा कंपनी ने शर्त भी रखी थी कि अगर आप 1 लाख रुपए का निवेश करते हैं तो आपको 25 साल बाद एकसाथ 34 लाख रुपए मिलते। इसके जरिये लोगों को ठगा गया। वहीं दूसरी ओर इस ग्रुप ने आलू के बिजनेस में 15 महीनों के भीतर ही रकम डबल करने का भी एक सपना दिखाया। लालच में आकर 10 लाख निवेशकों ने निवेश कर दिया। इसके बाद कंपनी निवेशकों के पैसे लेकर फरार हो गई।
यहां तक तो कुछ भी नया नहीं था क्योंकि ऐसे घोटाले और ठगी कोई नई बात नहीं हैं। ऐसी ठगी इससे पहले भी कई बार हो चुकी है। मामला उस वक्त राजनैतिक हो गया, जब इसकी जांच शुरू हुई।
दरअसल इस चिटफंड घोटालों की जांच करने के लिए 2013 में एक पुलिस एसआईटी गठित की गई थी। पश्चिम बंगाल पुलिस की इस एसआईटी टीम का नेतृत्व राजीव कुमार कर रहे थे। उस समय मामला लाइम लाइट में आया था।घोटाले की जांच से जुड़ी कुछ अहम फाइल और दस्तावेज गायब होने पर राजीव कुमार सीबीआई के निशाने पर आ गये और लंबे समय से सीबीआई उनसे पूछताछ करने के लिए प्रयास आकर रही थी। सीबीआई ने उन्हें नोटिस भी भेजा था लेकिन राजीव कुमार ने इसका कोई जवाब अन्हीं दिया जिसके बाद राजीव कुमार के घर सीबीआई पूछताछ के लिए पहुंच गयी। सीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार एसआईटी जांच के दौरान पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से जुड़े कुछ खास नेताओं को बचाने के लिए घोटालों से जुड़े कई अहम सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गयी थी। ममता इससे डर गयीं और सीबीआई के अधिकारियों को ही गिरफ्तार कर दिया और केंद्र सरकार पर ही हमले शुरू कर दिए। राजीव कुमार को बचाने के लिए ममता ने दांव पेंच शुरू कर दिए हैं।
वास्तव में ममता बनर्जी अपने शासनकाल में हुए भ्रष्टाचार को छिपाने और अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए देश की संघीय व्यवस्था पर ही हमले शुरू कर दिए हैं। ममता राज में हुए घोटालों की जांच न हो सके इसके लिए ममता ने तो पहले सीबीआई को राज्य में बैन कर संघीय व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास किया और अब जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई जांच करने पहुंची तो तमाशा शुरू कर दिया।