दिल्ली में 2015 के विधानसभा चुनावों में जिस आम आदमी पार्टी के 70 में से 37 विधायक चुनकर आए थे उस पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए घुटने टेक दिए लेकिन गठबंधन न हो पाने की सूरत में दिल्ली को अब पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने कि मुहिम शुरू करने तैयारी में है। क्या कारण थे कि जिस दल के नेता को जेल भेजने की सारी तैयारी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कर रखी थी उसी के सामने इतने कमजोर नजर आने लगे दिल्ली के मुख्यमंत्री उसके साथ समझौता करने पहुंच गए।
बातचीत असफल होने पर मुख्यमंत्री ने नया शिगूफा छोड़ा है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन होगा लेकिन, दिल्ली सरकार अपने 70 सूत्रीय कार्यक्रमों से हटकर इस तरह के मुद्दे क्यों उठा रही है। वास्तव में दिल्ली सरकार शिक्षा, स्वास्थ, सफाई, भ्रष्टाचार, सुरक्षा, लोक परिवहन, अनियमित कॉलोनी को नियमित किए जाने, सड़कों के निर्माण, गेस्ट अध्यापकों को नियमित किए जाने या अन्य दर्जनों वादों को पूरा करने में नाकामयाब रही है। इस हाल में सरकार इसी तरह के निर्णय लेती है।
दूसरी तरफ भाजपा लगातार केजरीवाल के निशाने पर है क्योंकि सत्ताधारी दल को अक्सर आक्रामकता का सामना करना पड़ता है। इसलिए जब तक कांग्रेस सत्ता में थी आम आदमी पार्टी उसके खिलाफ आक्रामक थी और अब भाजपा के खिलाफ आक्रामक है। दूसरी तरफ दिल्ली सरकार ने ऑटो के किराए में 1.5 रूपये बढाकर 9.5 रूपये प्रति किलोमीटर बढाकर ऑटो की सवारी को जनता के लिए तकलीफदेय बना दिया है।
वास्तव में देश की राजधानी में लोगों के आवागमन और प्रदूषण दोनों के समाधान के लिए लोक परिवहन को बेहतर बनाए जाने का वादा आम आदमी पार्टी ने किया था और सरकार यह लुभावने सब्जबाग दिल्ली की जनता को लगातार दिखाती रही है कि वह दिल्ली की सड़कों पर नई बसें जल्द उतारेगी। साल दर साल बजट में भी सरकार ने दावा किया है कि आधारभूत ढाचों में सुधार होगा और परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त होगी। यह वादा हर साल होता है और 4000 बसों के दावों के बदले दिल्ली में 400 बसें भी नहीं आई हैं और दिल्ली की जनता लगातार अपने साधनों को इस्तेमाल करने को मजबूर है।
मुख्यमंत्री ने दिल्ली कि सभी सीटों पर सर्वेक्षण करके अपने दावेदार तो उतार दिए हैं लेकिन लगातार घट रही लोकप्रियता के मद्देनजर आम आदमी पार्टी ने अपनी रणनीति बदल ली है। 2015 के विधान सभा के चुनावों के बाद से आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता लगातार गिरी है। कांग्रेस जिसे 2014 के विधान सभा के चुनावों में मात्र 7 फीसद मतों से संतोष करना पड़ा था उसने नगर निगमों के चुनाव में अपने प्रदर्शन को काफी बेहतर किया लेकिन भाजपा को पछाड़ने में नाकामयाब रही। अगर हम पिछले तीन विधान सभा उपचुनावों की बात करें तो दिल्ली में कांग्रेस को अनुपातन 24 फीसद मिले जबकि भाजपा 32-33 फीसद मतों पर कायम रही। लेकिन आप इस सबमे ज्यादा नुक्सान में रही।
इस बात का एहसास आम आदमी पार्टी को पूरी तरह है इसलिए एक तरफ केंद्र सरकार जहां अपने किए गए कामों और उनसे लाभान्वित लोगों के बीच जा रही है और इस बात को प्रचारित कर रही है तो केजरीवाल धरने कि धमकी दे रहे हैं। वस्तुस्थिति यह कि उनके पास दिल्ली में अपना वोट बैंक कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं है इसलिए घबराहट में कांग्रेस के साथ गठबंधन या पूर्ण राज्य जैसे मसलों को उठा रहे हैं और आम जनता को इससे जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, वो इस तरह के तुगलकी कारनामे में सफल होते नहीं दिखाई दे रहे। अब इस तरह के तुगलकी कारनामे से आम जनता पार्टी को कितना फायदा होगा वो आगामी लोकसभा चुनाव के नतीजों से सामने आ जायेगा।