गठबंधन के सहारे उत्तर प्रदेश की सत्ता हथियाने का ख्वाब देखने वाले यादव परिवार को सुप्रीम कोर्ट ने करारा झटका दिया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव व उनके बेटे अखिलेश यादव के खिलाफ दायर याचिका पर केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई से जवाब मांगा है। याचिका में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव व उनके बेटे अखिलेश यादव के खिलाफ अपने अधिकारों का दुरूपयोग करके आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप था। आपको बता दें कि कांग्रेस नेता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने वर्ष 2005 में यादव परिवार के खिलाफ यह याचिका दायर की थी। चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई एवं जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने सीबीआई से पूछा “हम जानना चाहते हैं कि इस केस का क्या हुआ? 2007 के बाद से इस केस में अब तक क्या हुआ है? क्या इनके खिलाफ कोई एफआईआर पंजीकृत की गई है?” हालांकि जब चुनावी दौर में इस केस की सुनवाई को लेकर मुलायम सिंह यादव के वकील ने आपत्ति जताई तो जस्टिस गोगोई ने कहा “हमें टाइमिंग से कोई मतलब नहीं है, हम जानना चाहते हैं कि इस केस में दरअसल हुआ क्या था।“
विश्वनाथ चतुर्वेदी की याचिका पर कोर्ट ने वर्ष 2007 में पहली बार संज्ञान लेते हुए अखिलेश यादव, मुलायम यादव, अखिलेश के भाई प्रतिक यादव एवं डिंपल यादव के खिलाफ जांच करने के लिए सीबीआई को इजाज़त दी थी। इसके बाद इन सभी ने कोर्ट में अपने खिलाफ जारी जांच को रोकने की याचिका दायर की थी लेकिन वर्ष 2012 में सिर्फ प्रतीक यादव और डिम्पल यादव के खिलाफ जारी जांच को रोकने के लिए कोर्ट ने मंजूरी दी। अब तक यादव परिवार के खिलाफ कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई है लेकिन ठीक चुनाव से पहले कोर्ट द्वारा यादव परिवार के खिलाफ सीबीआई से इस मामले की रिपोर्ट मांगने से सपा-बसपा के गठबंधन को धक्का पहुंच सकता है।
यादव परिवार पर राज्य में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं। पहले तो समाजवादी पार्टी द्वारा आकर्षक योजनाओं की घोषणा की गई और जब उन घोषणाओं के बल पर वे सरकार बनाने में सफल हुए तो उन्हें पूरा करने की आड़ में करोड़ों-करोड़ों रुपयों का भ्रष्टाचार किया गया, और इसके दर्जनों उदाहरण हमारे सामने हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 1500 करोड़ गोमती रिवर फ्रंड प्रॉजेक्ट अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक था। इस योजना में बड़ी वित्तीय अनियमितता की आशंका के बाद ही यूपी की योगी सरकार ने जांच के आदेश दिए थे। इसके साथ ही इस मामले में उन्होंने सीबीआई जांच की भी सिफारिश की थी जिसके बाद सीबीआई ने इस मामले की जांच अपने हाथ में ले ली थी।
समाजवादी पार्टी की पूर्व की सरकार में जो उपेक्षा से भरी राजनीति भी सामने आई थी जो पहले कभी नहीं देखी गयी थी। यादव जाति के लोगों को सपा से न सिर्फ राजनीतिक संरक्षण मिला था बल्कि उनके लिए नीतियां भी ख़ास थीं जिसने प्रदेश सरकार के शासन के एक बेतुके स्तर को सामने रखा था। साल 2015 में, अखिलेश यादव द्वारा नियुक्त 86 एसडीएम में से 56 यादव समुदाय से थे। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में 60 फीसदी से ज्यादा पुलिस स्टेशन में अधिकारी यादव समुदाय से थे। समाजवादी पार्टी की पूर्व सरकार के ‘यादवीकरण’ के प्रक्रिया यूपीपीएससी में भी सामने आई थी जहां भर्ती में एक विशेष जाति को प्राथमिकता देने के आरोप लगे थे।
इसके अलावा समाजवादी पेंशन घोटाला, लैपटॉप वितरण घोटाला, खनन घोटाला, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे घोटाला जैसे कई घोटाले सपा की सरकार के समय सामने आए। ये सभी घोटाले बतातें है कि अखिलेश ने किस तरह से प्रदेश के हर विकास कार्य में घोटालों को अंजाम दिया और जनता के पैसों को खूब उड़ाया। अब यूपी की योगी सरकार इन सभी घोटालों की जांच करवा रही है। जैसे- जैसे जांच पूरी होगी अखिलेश सरकार के काले कारनामे सामने आयेंगे और सपा अध्यक्ष की मुश्किलें बढती जाएगी। इसके साथ ही सपा अध्यक्ष को अपने कारनामों का खामियाजा आगामी लोकसभा चुनाव में भुगतने पड़ सकते हैं।