राजनीति में परिवारवाद कोइ नई बात नहीं है लेकिन कांग्रेस के बाद यादव परिवार का नाम सबसे ऊपर आता है ये कहना गलत नहीं होगा। एक बार फिर से ये सामने आया है। दरअसल, समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए अपनी दो सूची जारी कर दी है। उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव के लिए पहली सूची में 6 लोकसभा सीटों के लिए अपने प्रत्याशी घोषित किये। वहीं, दूसरी सूची में तीन प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया। इस सूची के जारी होने के बाद से घोषित किये गये प्रत्याशियों के नामों को लेकर सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गयी है। इस सूची में यादव परिवार के सदस्यों के नाम को लेकर चर्चा है जिसमें डिंपल यादव और मुलायम सिंह यादव का नाम भी शामिल है। इसके अलावा और भी ऐसे कई नाम है जो समाजवादी पार्टी की परिवारवाद की राजनीति को दर्शाता है।
Samajwadi Party announces very first list. 50% seats go to one family. Wah! pic.twitter.com/jDWv4NFQsv
— Anindya (@AninBanerjee) March 8, 2019
शुक्रवार की सुबह जारी की गई पहली सूची में मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव, धर्मेंद्र यादव बदायूं से, मुलायम सिंह के छोटे भाई और समाजवादी पार्टी के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को फिरोजाबाद से,रॉबर्ट्सगंज से भाईलाल कोल और बहराइच से शब्बीर वाल्मिकी के नामों की घोषणा की गई है। इस सूची में धर्मेन्द्र यादव और अक्षय यादव तो मुलायम सिंह यादव के ही परिवार से आते हैं। वहीं दूसरी सूची में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज से, समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सदस्य रवि वर्मा की बेटी पूर्वी वर्मा लखीमपुर खीरी से, उषा वर्मा को हरदोई से प्रत्याशी बनाई गई हैं।
Samajwadi Party releases another list of three candidates for Lok Sabha elections 2019. Dimple Yadav to contest from Kannauj, Usha Verma from Hardoi and Poorvi Verma from Lakhimpur Kheri pic.twitter.com/bQ0Op4qymA
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) March 8, 2019
इन नामों की सूची से साफ है की सपा पार्टी किस तरह परिवारवाद को बढ़ावा दे रही है। इस पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कभी परिवारवाद को खत्म करने का वादा किया था लेकिन उनका ये वादा सिर्फ एक झू़ठ साबित हुआ है। साल 2018 में उन्होंने कहा था, ”हमारी पार्टी में परिवारवाद नहीं है। अगर हमारी पार्टी में परिवारवाद है, तो फिर अब मेरी पत्नी चुनाव नहीं लड़ेंगी।’ अखिलेश की पत्नी कन्नौज से सांसद हैं। उस समय अखिलेश ने कन्नौज से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी डिंपल यादव से पहले वह खुद इसी सीट से 3 बार सांसद रह चुके हैं। उस समय खबर तो ये तक थी कि वो अक्षय को भी लोकसभा चुनाव से दूर रखेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब वो अपने वादे से पलट गये और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर डिंपल यादव को फिर से कन्नौज सीट से उतारने का ऐलान कर दिया है।
Agar hamara parivaarvaad hai toh hum tay kartey hain ki agli baar hamari patni chunav nahi ladengi: Former UP CM Akhilesh Yadav pic.twitter.com/vHY5nIKOPP
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) September 24, 2017
हालांकि, जब सपा अध्यक्ष ने ये घोषणा की थी तब भी कुछ एक्सपर्ट्स ने कहा था कि सपा अध्यक्ष का ये कदम सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है वो सिर्फ भाई-भतीजावाद के सवालों से बचने के लिए माहौल बना रहे हैं। वास्तव में वो जनता के सामने ये जताने की कोशिश कर रहे थे कि वो बड़ा राजनीतिक बलिदान दे रहे हैं। हालांकि, उनके इस झूठ का भी पर्दाफाश हो गया है। अखिलेश का ये यू टर्न यूं ही नहीं है। सपा अध्यक्ष कमजोर प्रत्याशियों को मैदान में उतार कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। चाहे इसके लिए परिवारवाद का आरोप ही क्यों न झेलना पड़े।
उत्तर प्रदेश के बीजेपी के प्रवक्ता शलभमणि त्रिपाठी ने सपा के इस दोहरे रुख पर तंज कसते हुए कहा, ‘ये सपा नहीं बल्कि परिवारवाद पार्टी है। पहली लिस्ट में भी 50% से ज्यादा टिकट परिवार के लोगों को दिए गए हैं। सपा के कार्यकर्ता इस बात को समझ चुके हैं कि उनकी कोई जगह नहीं है यहां, जिसके कारण अखिलेश यादव को बसपा सुप्रीमों मायावती की पार्टी के साथ गठबंधन करने को मजबूर होना पड़ रहा है। आने वाले समय में ये पूरी तरह से समाप्त हो जाएंगे।’
कांग्रेस की तरह ही यादव परिवार भी सिर्फ परिवारवाद को राजनीति में बढ़ावा दे रहा है जो वो हमेशा से करता आया है। हालांकि, अखिलेश यादव ये समझने में असफल रहे कि जनता अब झूठ की राजनीति करने वालों का साथ नहीं देती। ऐसे में लोकसभा चुनाव में अखिलेश को इस यू टर्न से क्या नुकसान होने वाला है वो देखना दिलचस्प होगा।
बता दें कि लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी 37 और बहुजन समाज पार्टी 38 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है। इस गठबंधन में कैराना का लोकसभा उपचुनाव जीतने वाले राष्ट्रीय लोकदल को भी शामिल किया है जो तीन सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वहीं, कांग्रेस अकेले ही उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ेगी। ऐसे में उत्तर प्रदेश में मुकाबला तीन तरफा होने जा रहा है जिसका फायदा निश्चित ही भारतीय जनता पार्टी को हो सकता है।