लोकसभा चुनावों में अब कम ही समय बचा है और पूरे देश की राजनीति में उठापठक का दौर जारी है। बिहार की राजनीति भी इससे अछूती नहीं है, और यहां भी चुनावी समीकरण बड़ी तेजी से बदल रहे हैं। राज्य की राजनीति में जातीय समीकरण शुरू से ही बड़े महत्वपूर्ण रहे हैं, और अब बिहार की पॉलिटिक्स में ‘सन ऑफ़ मल्लाह’ की एन्ट्री से आगामी चुनावी मुकाबला और ज़्यादा रोमांचक होने की पूरी सम्भावना है। दरअसल, बिहार की मल्लाह जाति से जुड़े एक बड़े नेता मुकेश साहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) राजद और कांग्रेस के गठबंधन में शामिल हुई है। यहां दिलचस्प बात यह है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को इस गठबंधन में 9 सीटें दी गई हैं तो वहीं पिछले वर्ष नवम्बर में बनी नई-नवेली पार्टी वीआईपी को तीन सीटें दी गई हैं। जाति आधारित पॉलिटिक्स के मास्टर कहे जाने वाले लालू यादव की पार्टी द्वारा मुकेश साहनी को इतनी तवज्ज़ों दिया जाने कई अहम बातों की तरफ संकेत कर रहा है।
मुकेश साहनी उर्फ़ ‘सन ऑफ़ मल्लाह’ जिस ‘मल्लाह’ (निषाद) जाति से आते हैं। मल्लाह की जनसंख्या बिहार में तीन से चार प्रतिशत तक है, यानि इस समुदाय को अपनी ओर करके कोई भी पार्टी अपना जनाधार मज़बूत करना चाहेगी। वैसे तो बिहार की मुजफ्फरपुर, दरभंगा, औरंगाबाद, उजियारपुर और खगड़िया लोकसभा सीट पर मल्लाह समाज निर्णायक भूमिका में रहे हैं, लेकिन इसमें से केवल मुजफ्फरपुर इकलौती ऐसी सीट है, जहां मल्लाह की आबादी साढ़े तीन लाख से ज्यादा है, यानी यहां इस समाज के लोगों का वर्चस्व है।
फीर भी यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि मल्लाह समाज भाजपा के नेता अजय निषाद के साथ जुड़ा हुआ है और मुजफ्फरपुर सीट से वर्ष 2014 में वे यहां से सांसद बने थे, उन्हें लगभग पौने 5 लाख वोट मिले थे। उनके पहले उनके पिता कैप्टन जयनारायण निषाद भी इसी सीट से 4 बार सांसद रह चुके हैं। यानि कुल मिलाकर यहां भाजपा का बोलबाला रहा है, और गठबंधन अब मुकेश साहनी जैसे अन्य मल्लाह समाज के नेता को मैदान में उतारकर चुनावी बाज़ी जीतना चाहता है।
मल्लाह समाज को फ़िलहाल देश में अति-पिछड़ी जाति का दर्जा मिला हुआ है और यह समाज चाहता है कि सरकार द्वारा उन्हें दलित का दर्जा दिया जाये। अपने समाज की इसी मांग को लेकर अब साहनी चुनावी मैदान में उतरेंगे और मल्लाह समाज के लोगो को अपनी और आकर्षित करने का काम करेंगे। हालांकि, बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार इस मुद्दे पर पहले ही अपनी संवेदनशीलता जता चुके हैं और केंद्र सरकार से इन्हें अनुसूचित जाति की कैटेगरी में शामिल करने की सिफारिश कर चुके हैं।
इससे पहले के बिहार चुनावों में मुकेश साहनी स्वयं भी एनडीए के साथ मिलकर भाजपा का भरपूर समर्थन कर चुके हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने नारा दिया था “आगे बड़ी लड़ाई है, एनडीए में ही भलाई है।“वहीं, वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने एनडीए के लिए जमकर प्रचार किया लेकिन बाद में एनडीए में नितीश कुमार की वापसी के बाद उन्हें कोई अवसर न मिलने के डर की वजह से पिछले वर्ष नवम्बर में एक नयी पार्टी ‘विकासशील इंसान पार्टी’ बनाने का निर्णय लिया। अब मल्लाह समाज के मज़बूत जनाधार की वजह से गठबंधन द्वारा इस पार्टी को इतनी तवज्जो दी गई है, लेकिन यह तो चुनावों के नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा कि गठबंधन का उन्हें तीन सीटें देने का फैसला उचित था या नहीं।