सुप्रीम कोर्ट में रफाल विमानों की सुनवाई के दौरान भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने यह आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता द्वारा पेश किये गए दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चुराए गए हैं और विपक्ष द्वारा दी जा रहीं दलीलें इन्ही चोरी किए गए दस्तावेजों पर आधारित हैं। वेणुगोपाल ने भी यह भी कहा कि ऐसे गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजानिक करना आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन है तथा यह एक दंडनीय अपराध है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा करके याचिकाकर्ता ने कोर्ट की भी अवमानना की है। कोर्ट में अपनी बात कहने के दौरान जब वकील प्रशांत भूषण ने अख़बार ‘द हिन्दू’ में छपे एक लेख का हवाला दिया तो अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उनकी सारी दलीलें चोरी हुए दस्तावेजों पर आधारित है।
हालांकि, ‘द हिन्दू’ के अध्यक्ष एन.राम ने कहा कि इन गोपनीय दस्तावेजों को जनहित में जारी किया गया है और उन्होंने इन दस्तावेजों को अपने विश्वसनीय सूत्रों से हासिल किया था। साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि किसी भी हालत में उन सूत्रों की जानकारी किसी को भी नहीं दी जाएगी। उन्होंने अपने दिए एक बयान में कहा ”हम अपने विश्वसनीय सूत्रों को किसी भी खतरे से बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और हम अपने विचार किसी भी सूरत में नहीं बदलने वाले हैं, कोई भी हमसे हमारे सूत्रों के बारे में जानकारी नहीं ले सकता, दस्तावेज और खबरें स्वयं अपनी कहानी बयां करती हैं, चाहे वो दस्तावेज चोरी किए हुए भी क्यों ना हो, हमें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता”। उन्होंने आगे यह कहा कि इन दस्तावेजों को सार्वजनिक करना इसलिए आवश्यक था क्योंकि इन्हें सरकार द्वारा लगातार छुपाने की कोशिश की जा रही थी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जनहित में अति आवश्यक दस्तावेजों को सार्वजानिक करना खोजी पत्रकारिता का ही एक हिस्सा है।
आज बेशक एन राम अपने सूत्रों की जानकारी सार्वजानिक ना करने की दुहाई दे रहे हों, लेकिन बोफोर्स घोटाले का खुलासा करने वाली पत्रकार चित्रा सुब्रमण्यम ने अपने ट्वीट्स के जरिये एन राम के दोहरे चरित्र का पर्दाफाश किया है। उन्होंने कहा है कि बोफोर्स घोटाले की खबर चलाने के समय एन राम का रुख एकदम अलग रहा था। उन्होंने ट्वीट किया ”बोफोर्स पर हमने 10 साल खोजी पत्रकारिता की,एन राम और मैंने इसपर करीब 20 महीने काम किया, स्वीडन में मेरे एक सूत्र का नाम ‘स्टेन लिंडस्टॉर्म’ था। दिल्ली में एन राम ने उनका नाम मुझसे बिना पूछे सार्वजनिक कर दिया”।
#Bofors #India was a ten year investigation. N. Ram and I worked on it together only for some 20 months. My principle source in Sweden was Sten Lindstrom. N. Ram shared his name in Delhi without telling me. 1/n #journalism #InternationalWomensDay2019
— Chitra Subramaniam (@chitraSD) March 6, 2019
इसके बाद उन्होंने एक और ट्वीट किया ”एन राम द्वारा मेरी और लिंडस्टॉर्म की सुरक्षा को लेकर खिलवाड़ किया गया। जब मैंने इस सन्दर्भ में लिंडस्टॉर्म से बात करने की कोशिश की तो मुझे उनसे बात करने तक से रोका गया”।
#Bofors My security and that of Sten Lindstrom was severely compromised by N. Ram. I was not allowed to call Sten Lindstrom while he figured out who was responsible for outing his name. 2/n #journalism #InternationalWomensDay2019
— Chitra Subramaniam (@chitraSD) March 6, 2019
चित्रा सुब्रमण्यम के इन आरोपों से यह सिद्ध होता है कि एन राम की दोयम-दर्जे की पत्रकारिता ने उनकी और लिंडस्टॉर्म की जान तक को खतरे में डाल दिया था। उस समय तो उनको अपने किसी सूत्र की इतनी परवाह नहीं थी। एन राम के द्वारा बोफोर्स स्टोरी के समय किये गए बर्ताव और अब रफाल मामले के समय किए गए दावों में जमीन आसमान का फर्क नज़र आता है।