2019 के लोकसभा चुनावों में कई मुहावरे सिद्द होते दिख रहे हैं। कांग्रेस और केजरीवाल के हाथ से चुनावी जमीन रेत की तरह फिसलती दिख रही है तो महागठबंधन में सीटों की मार-काट मची हुई है। एक तरफ केजरीवाल हैं जो कांग्रेस के आगे गठबंधन के लिए लोट-पोट हो रहे हैं लेकिन वह इसे जरा भी भाव नहीं दे रही। दूसरी तरफ बिहार में खूब रस्साकशी के बाद भी महागठबंधन ने कांग्रेस को मनचाही सीटें नहीं दी, वहीं उत्तर प्रदेश में तो देश की इस सबसे पुरानी पार्टी की अब तक की सबसे बड़ी फजीहत हो रही है। बिहार में सपा-बसपा ने कांग्रेस से इस तरह व्यवहार किया है जैसे कोई चाय में से मक्खी निकाल कर फेंक देता है। दोनों ही पार्टियों ने यहां कांग्रेस को अपने पास फटकने भी नहीं दिया। नतीजा यह है कि, अब कांग्रेस यूपी की सभी सीटों पर टिकट बांटकर पता नहीं कितने उम्मीदवारों की जमानत जब्त करवाएगी। वहीं तेजस्वी यादव ने कन्हैया कुमार को बेगूसराय से टिकट ना देकर वामपंथियों के होश उड़ा दिए। उधर कुछ ऐसे नेता भी हैं जो अपनी पार्टी से बगावत कर कांग्रेस में गए थे छब्बे जी बनने लेकिन वहां जाकर दुबे जी बनकर रह गए। ऐसे नेताओं में अभी सबसे बड़ा नाम है कीर्ति आजाद का।
क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने कीर्ति झा आजाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे हैं। कीर्ति ने भारतीय जनता पार्टी से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत की और यहीं से ही राजनीति में नाम कमाया। वे बिहार में अपने ससुराल दरभंगा सीट से बीजेपी के टिकट पर सांसद बने। साल 1999 और 2009 के लोकसभा चुनाव में दरभंगा सीट से सांसद बनने के बाद 2014 में भी वे यहीं से बीजेपी के टिकट पर सांसद बनने में सफल हुए थे। वे सांसद बने तो बीजेपी के टिकट पर लेकिन कुछ वक्त बाद उनको पार्टी गड़बड़ लगने लगी। दरअसल, कीर्ति के पिता कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हैं। अपना राजनीतिक करियर भाजपा से शुरू करने के बाद कीर्ति को शायद ऐसा लगा कि कांग्रेस में उनके लिए मौके ज्यादा हैं। कुछ ऐसी ही सोच के साथ उन्होंने धीरे-धीरे अपनी पार्टी बीजेपी से ही बगावत शुरू कर दी। उन्होंने अरुण जेटली पर दिल्ली क्रिकेट बोर्ड में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए। जब बीजेपी को कीर्ति की बगावत रास नहीं आई तो उसने खुद कीर्ति आजाद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
कांग्रेस नहीं निभा पाई वादा
पार्टी से निकाले जाने के बाद कीर्ति लगातार बीजेपी को निशाना बनाते रहे। वे इस तरह कांग्रेस का दिल जीतने का ही काम करते दिख रहे थे। इस साल के शुरुआत में कांग्रेस का दामन थामकर वे एक बार फिर से दरभंगा से चुनाव लड़ने की तैयारी करने लगे थे। वे कांग्रेस में इसी शर्त पर शामिल हुए थे कि उन्हें दरभंगा से टिकट दिया जाए लेकिन अब दरभंगा सीट को लेकर उनकी तमाम तैयारी धरी की धरी रह गई है और उनकी यह सीट आरजेडी सीट ले उड़ी है।
लालू ने छीन लिया कीर्ति का ससुराल
कांग्रेस के टिकट पर बिहार के दरभंगा से चुनाव लड़ने की मंशा रखने वाले कीर्ति आजाद की इच्छा अब पूरी होने वाली नहीं है क्योंकि आरजेडी ने स्पष्ट कर दिया है कि दरभंगा सीट से उनके उम्मीदवार अब्दुल बारी सिद्दीकी चुनाव लड़ेंगे। अब कर्ति आजाद के आगे ये बड़ा ही संकट का समय है। वे उस जगह खड़े हैं जहां वे घर के रहे ना घाट के। यह भी कह सकते हैं कि चौबे जी चले थे छब्बे जी बनने और दुबे जी बनकर रह गए। बीजेपी से बगावत करने का अब उन्हें बहुत बड़ा मलाल हो रहा होगा। हालात यह है कि अब कहीं और से उनकी लड़ने की इच्छा नहीं है और आरजेडी दरभंगा सीट देने को तैयार नहीं है।
कांग्रेस में शामिल होते समय कीर्ति ने सोचा होगा कि देश की इस सबसे पुरानी पार्टी का कहना मानकर आरजेडी दरभंगा सीट उनके लिए छोड़ देगी लेकिन उनके दिमाग में यह नहीं आ पाया कि देश की इस सबसे पुरानी पार्टी की हैसियत अब उतनी नहीं है कि वह किसी से कुछ मांगे और उसे मिल जाए। लालू और तेजस्वी यादव गठबंधन में सीटों को लेकर कईं बार कांग्रेस को लताड़ भी लगा चुके हैं। कांग्रेस कीर्ति को दरभंगा से सीट दिलाने के लिए आरजेडी के आगे खूब मिन्नतें कर रही हैं लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी है।
उधर संजय निरुपम को भी मिला धोखा
कीर्ति आजाद जैसा ही कुछ हाल महाराष्ट्र में संजय निरुपम का भी है। शिवसेना से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले संजय निरूपम पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादक भी रह चुके हैं। वे 1996 में शिवसेना के टिकट पर राज्यसभा में भी पहुंचे थे। निरूपम 2006 तक राज्यसभा सांसद रहे। बाद में उन्होंने शिवसेना छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ले ली और 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। कांग्रेस में जाने के बाद निरुपम के कद में धीरे-धीरे गिरावट आती गई है। हालात यह हो गए हैं कि हाल ही में कांग्रेस ने पार्टी के मुंबई अध्यक्ष संजय निरुपम को हटाकर उनकी जगह मिलिंद देवड़ा को नया अध्यक्ष चुना है। इसके अलावा पार्टी ने मुंबई उत्तर से संजय निरुपम का पत्ता काट दिया है। इसकी बजाय पार्टी ने संजय को उत्तर पश्चिम मुंबई से टिकट देने का फैसला लिया है। माना जा रहा है कि मुंबई उत्तर से कांग्रेस पार्टी अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर को मैदान में उतार सकती है।
गौरतलब है कि मुंबई कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं लंबे समय से निरुपम का विरोध कर रहे थे। कुछ नेताओं ने निरुपम के खिलाफ खुलकर नाराजगी जाहिर की थी। यही कारण माना जा रहा है कि, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देवड़ा को मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया है।
जैसे-जैसे मतदान की तारीखें नजदीक आती जा रही हैं वैसे-वैसे ही राजनीतिक उठापटख भी बढ़ती जा रही है। इसी के साथ-साथ राजनीतिक गलियारों में नए-नए मुहावरे सिद्द होते जा रहे हैं। बात कीर्ति आजाद और संजय निरुपम की करें, तो भगवान ही जाने अब उनका क्या होगा!