शिक्षा में सुधार आप पार्टी का बहुप्रचारित मुद्दा रहा है लेकिन सवाल यह है कि क्या केजरीवाल सरकार दिल्ली को कोई स्पष्ट शिक्षा नीति दे सकी है? अब जब केजरीवाल सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में है तो यह लाजमी है कि आप पार्टी के चुनावी वादों को सामने रखकर केजरीवाल सरकार के पिछले चार वर्षों की उपलब्धियों को समझा जाए।
आप पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में दिल्ली में 500 नए स्कूल बनाने का वादा किया था जिसमे माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर के स्कूलों को विशेष वरीयता दिया जाना था जिससे कि दिल्ली के हर बच्चे को गुणवत्तापरक शिक्षा उपलब्ध हो सके। इस प्रकार से औसतन १०० स्कूल प्रतिवर्ष बनाये जाने थे जबकि केजरीवाल सरकार के दावे अनुसार अभी तक लगभग 25 नए स्कूल बनाये गए हैं और 31 अन्य निर्माणाधीन हैं। लगभग इन सभी नए और निर्माणाधीन स्कूलों के लिए भूमि और बजट आदि पिछली सरकार में ही निर्धारित हो चुका था। यह कार्य पूर्व निर्धारित गति से हो रहा है।
केजरीवाल सरकार ने बहुत चालाकी से स्कूलों के निर्माण की जगह ‘कक्षाओं’ के निर्माण को स्कूल बनाने के बराबर बता दिया। क्या इससे पहले स्कूलों में कक्षाओं का निर्माण नहीं होता था? आप पार्टी ने आकड़ों की बाजीगरी यहीं नहीं रोकी। पहले तो उन्होंने सिर्फ ‘क्लासरूम’ को लिया लेकिन फिर ‘स्टाफ रूम’, प्राचार्य कक्ष, और यहाँ तक कि टॉयलेट के आकडें भी ‘कक्षाओं’ के साथ जोड़ दिये। अगर इस बाजीगरी को मान लें तो भी आप पार्टी कोई रिकॉर्ड नहीं बना सकी। केजरीवाल सरकार ने सब मिलाकर चार साल में लगभग 10,000 कक्षाओं के निर्माण का दावा किया है। इस दावे को सच माना जाए तो इस सरकार ने प्रतिवर्ष 2500 कक्षाओं का निर्माण किया जो कि गुजरात सरकार द्वारा वर्ष 1998-99 से 2011-12 तक कुल 92,453 कक्षाओं का निर्माण किया गया जो कि लगभग 6,603 कक्षा प्रतिवर्ष रहा। दिल्ली सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट में सरकारी स्कूलों में 12,000 नए कक्षों के निर्माण का लक्ष्य रखा जिसमें 9,981 क्लासरूम (कक्षाओं) के साथ साथ पुस्तकालय, प्रयोगशाला, प्राचार्य कार्यालय, उप प्राचार्य कार्यालय, स्टाफ रूम, आदि सहित 1067 टॉयलेट्स को भी जोड़ दिया गया है। केजरीवाल और उनके मंत्री हर बात पर विश्व रिकॉर्ड का दावा करते हैं लेकिन सत्य यह कि दिल्ली सरकार कक्षाओं के निर्माण में भी कई राज्यों से काफी पीछे है। केजरीवाल सरकार शिक्षा विभाग पर बजट बढ़ने का दावा करती है जिसमें भी कोई सच्चाई नहीं दिखती। वर्ष 2015-16 में शिक्षा पर बजट बढ़ने के बाद दिल्ली सरकार का प्रति छात्र प्रति वर्ष आवंटन मात्र 9,691 रुपये था जो कि गुजरात में 2014-15 में प्रति छात्र प्रति वर्ष आवंटन 17,106 रुपये था।
दिल्ली में 20 नये कॉलेज खोलने का वादा तो केजरीवाल सरकार भूल ही गयी है। दिल्ली के ग्रामीण और बाहरी दिल्ली के लोग अभी भी कॉलेज का इंतज़ार ही कर रहे हैं. दिल्ली सरकार के कॉलेजों और अम्बेडकर विश्वविद्यालय में सीटों की संख्या दोगुनी करने पर भी सरकार ने चुप्पी साध रखी है। वहीं दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी ने भी एक भी नया पुस्तकालय नहीं खोला है।
स्कूलों में कंप्यूटर, हाई स्पीड इंटरनेट व प्राइवेट स्कूलों के मार्गों पर DTC बसों की संख्या बढाने के दावे भी हवा हो गए हैं। दिल्ली में खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए 3,000 सरकारी स्कूलों के ‘प्ले ग्राउंड्स’ को स्कूल की छुट्टी होने के बाद उस क्षेत्र के बच्चों को खेलने के लिए खोलने का वादा किया गया था। केजरीवाल सरकार ने 3 मई 2017 को एक आदेश से 77 स्कूलों के प्ले ग्राउंड को स्थानीय और क्षेत्रीय खेल संगठनों को खेल आयोजित करने हेतु सशुल्क बुकिंग पर देने की नीति बना दी। क्या यह बच्चों के साथ धोखा नहीं है? कुल मिलाकर अपने चार साल के कार्यकाल में केजरीवाल सरकार आंकड़ों की बाजीगरी में ही जुटी हुई है।