छात्र राजनीति को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाला जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय अब छात्र हिंसा को लेकर सुर्खियों में है। दरअसल, जेएनयू के लगभग 400 से 500 वामपंथी छात्रों ने विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर जगदीश कुमार के आवास का घेराव किया और वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों से मारपीट भी की। छात्रों पर यह भी आरोप लगा है कि उन्होंने आवास का गेट भी तोड़ दिया और घर में घुसकर तोड़फोड़ की। ऐसा लगता है कि देश विरोधी गतिविधियों का केंद्र बन चुके जेएनयू विश्वविद्यालय के छात्रों का लाल आतंकवाद अब खुलकर सामने आ गया है। एबीवीपी के नेता सौरभ शर्मा ने तो इस घटना को नक्सली हमला तक करार दिया है।
जेएनयू के कुलपति ने इस घटना की निंदा करते हुए ट्वीट किया “आज शाम छात्रों ने जबरन मेरे जेएनयू आवास में तोड़फोड़ की और मेरी पत्नी को कई घंटों तक घर के अंदर कैद रखा, जबकि मैं एक बैठक में था। क्या यह विरोध का तरीका है? घर में अकेली महिला को डराना?”
This evening few hundred students forcibly broke into my JNU residence and confined my wife inside home for several hours while I was away in a meeting. Is it the way to protest? Terrorosing a lonely lady at home?
— Mamidala Jagadesh Kumar (@mamidala90) March 25, 2019
हालांकि, हमला करने वाले छात्रों ने सफाई में यह कहा है कि वे शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे थे और आवास पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने उनके साथ मारपीट की।
आपको बता दें कि जेएनयू के ये वामपंथी छात्र पढ़ाई के अलावा उन सब कामों के लिए मशहूर हैं जिनमें अक्सर अपने हित को साधने के लिए देशहित को नकार दिया जाता है। जेएनयू परिसर में भारत के टुकड़े होने के नारों से लेकर आतंकी अफ़ज़ल गुरु के समर्थन में नारे लगाने की वजह से यह समूह पहले ही पाकिस्तान में बैठे उनके चाहने वालों की आंखों का तारा बन चुका है। देश के खिलाफ साजिश रचने वाले आतंकियों के समर्थन में नारे लगाने में इनको ज़रा भी खौफ नहीं है क्योंकि ये बात इन्हे भी पता है कि अगर सरकार इनके खिलाफ कोई कार्रवाई करती है तो लिबरल पत्रकारों एवं बुद्धिजीवी जनों की पूरी गैंग देशभर में इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले के तौर पर प्रचारित करेगी।
देशविरोधी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेने वालों को जेएनयू में एक नेता के तौर पर मान्यता दे दी जाती है और राहुल गांधी जैसे नेता अक्सर उनसे सहानुभूति जताने उनके पीछे जाकर खड़े हो जाते हैं। देश की मीडिया भी इन्हे एक्सपोज़र देने में बिल्कुल नहीं कतराती, और इनके इंटरव्यूज लेने की लिए अक्सर हमें बड़े-बड़े मीडिया समूहों के रिपोर्टरों की लम्बी लाइनें नज़र आती हैं। इस सिस्टम से कई छात्र नेता अपना कॅरियर साधने में सफल भी हुए हैं। उमर खालिद और कन्हैया कुमार जैसे ‘नेताओं’ की उत्पत्ति इसी खोखले सिस्टम की वजह से हुई है। राजनेता कन्हैया कुमार तो इन लोकसभा चुनावों में सीपीआई की तरफ से चुनाव भी लड़ने जा रहे हैं। अब आप ही सोचिए कि देश के लिए इससे बड़े दुर्भाग्य की क्या बात होगी कि कभी देशविरोधी नारे लगाने वाला जेएनयू का छात्र नेता देश की संसद में जाने के लिए अपने आप को उम्मीदवार घोषित करे और सीपीआई जैसी पार्टियां उसका बाहें खोलकर स्वागत करें।
इसी वर्ष फरवरी में जब दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार के खिलाफ अपनी चार्जशीट को मंज़ूरी के लिए दिल्ली सरकार के पास भेजा था, तो केजरीवाल सरकार ने इसे मंज़ूर करने की बजाय इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाकर ऐसे मुद्दों पर भी अपनी घटिया राजनीति करने का उदाहरण पेश किया था। जाहिर है जब देश की सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर राजधानी की सरकार का रवैया ही इतना निराशानजक होगा तो ऐसे देशविरोधी तत्वों के हौसले बुलंद होना तो स्वाभाविक है।