देश की मुख्यधारा मीडिया में आजकल इस बात की चर्चा है कि क्या भाजपा आने वाले चुनावों में फिर से 2014 के लोकसभा के प्रदर्शन को दोहरा पाएगी। कुछ मीडिया वर्ग का मानना है कि भाजपा ऐसा करने में विफल रहेगी क्योंकि उसे इस बार उत्तर भारत से पिछली बार की तरह एकतरफा समर्थन मिलने में मुश्किलें सामने आ सकती हैं। ये लोग अपनी बात को सच साबित करने के लिये उत्तर प्रदेश जैसे राज्य का उदाहरण देकर, यह सिद्ध करने की कोशिश में हैं कि भाजपा को इन चुनावों में सरकार बनाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। हालांकि, यहां अपने चुनावी विश्लेषण में मीडिया का यह वर्ग एक महत्वपूर्ण पहलू को नज़रअंदाज़ कर रहा है। दरअसल, भाजपा को पिछले चुनावों में उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत मिला था, जिसे एक बार फिर से दोहराना भाजपा के लिए मुश्किल हो सकता है लेकिन इसके साथ ही भाजपा उत्तर-पूर्व, ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अपने अभूतपूर्व प्रदर्शन करने को लेकर काफी उत्साहित नज़र आ रही है, जिससे कि भाजपा अपने पुराने आंकड़े को एक बार फिर से छूने का करिश्मा कर सकती है।
दरअसल, जिन सीटों की हम बात कर रहे हैं जिसे मीडिया हाउस ने कवर नहीं किया उनमें पश्चिम बंगाल और ओडिशा के आलावा उत्तर पूर्वी राज्यों को मिला दें तो कुल 88 सीटें ऐसी हैं जिसपर भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन साल 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2019 के लोकसभा चुनाव में कहीं ज्यादा बेहतर होगा। अब जरा इन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी के प्रदर्शन पर नजर डाल लेते हैं।
पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य में भाजपा लगातार अपना जनाधार मज़बूत करने में जुटी हुई है, जिसका नतीजा हमें हाल ही में इंडिया टीवी के सर्वे में भी देखने को मिला है, जिसमें भारतीय जनता पार्टीको 42 सीटों में से कम से कम 12 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। पिछले चुनावों में सिर्फ 2 सीटों पर सिमटने वाली भारतीय जनता पार्टी का अबकी बार कम से कम 23 सीटें प्राप्त करने का लक्ष्य है। पिछले वर्ष संपन्न हुए पंचायत चुनावों में भी भाजपा ने अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए टीएमसी के बाद दूसरे स्थान पर जगह बनाई थी। पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष पहले ही दावा कर चुके हैं “अमित शाह ने हमें 23 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है, लेकिन मुक्त और निष्पक्ष चुनाव की स्थिति में हम कम से कम 26 सीटें जीत सकते हैं।“ ऐसे में अगर हम भाजपा को 20 सीटें भी मिलने का अनुमान लगाएं, तो भी भाजपा काफी हद तक अपनी सीटों को संतुलित करने में सफल हो सकती है। ये बात पश्चिम बंगाल की मुखिया ममता बनर्जी को भी समझ आ चुकी है तभी तो वो आये दिन प्रदेश में बीजेपी को रोकने के लिए नए-नए हथकंडे अपनाती रहती हैं.
वहीं, ओडिशा की बात करें तो यहां पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। 22 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में भाजपा को वर्ष 2014 में सिर्फ 1 सीट से संतुष्ट होना पड़ा था, लेकिन इस बार के चुनावी समीकरण भाजपा के पक्ष में जा सकते हैं। ओडिशा में वर्ष 2017 में हुए पंचायती चुनावों में आए नतीजे वाकई भाजपा को खुश करने वाले थे। भाजपा राज्य में कुल 56 जिला परिषद् की सीटें जितने में कामयाब हुई थी, जो कि सत्तासीन पार्टी बीजेडी की 68 सीटों से थोड़ा ही कम था। बीजेडी के एक बड़े चेहरे ‘बैजयंत पांडा’ का भाजपा में शामिल होना भी राज्य में भाजपा की स्थिति को पहले से काफी मज़बूत बनाता है।
ऐसा ही कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी देखा गया जहां भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन अब तक के उच्चतम स्तर पर रहा। वर्ष 2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी थी, तो देश के सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों बीजेपी की पकड़ काफी कमजोर थी और कांग्रेस की स्थिति मजबूत थी। इसके बाद धीरे धीरे बीजेपी की स्थिति मजबूत होती गयी. भाजपा ने त्रिपुरा में ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए 25 सालों से सत्ता पर काबिज माकपा को उखाड़ फेंका। 2014 से लेकर अब तक बीजेपी ने असम, मणिपुर, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में सरकार बनाई जबकि मेघालय और नागालैंड में गठबंधन की सरकार बनाई है। समय के साथ भाजपा का वोट शेयर इन राज्यों में बढ़ता गया जबकि कांग्रेस का वोट शेयर इन राज्यों में लगातार घटता गया।
इस बार भारत के सबसे महत्वपूर्ण उत्तर-पूर्वी राज्य असम से भी भाजपा के लिए अच्छी खबर आ सकती है। पिछले चुनावों में भाजपा को 14 लोकसभा सीटों में से 7 सीटें मिली थी, जिसमें अब बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। इससे पहले ‘नागरिकता संशोधन बिल’ के मुद्दे पर असम में एनडीए का घटक दल ‘असोम गना परिषद्’ भाजपा से अलग हो गया था, लेकिन खबरों के अनुसार एजेपी दोबारा भाजपा के साथ आ सकता है, जिससे दोबारा असम में एनडीए मज़बूत स्थिति में पहुचं चुकी है। इंडिया टीवी के सर्वे के मुताबिक असम में भाजपा को अबकी बार 8 सीटें मिल सकती हैं।
खुद बीजेपी के महासचिव और उत्तर-पूर्व के प्रभारी राम माधव ने जानकारी दी और बताया कि “असम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस को हराने के लिए बीजेपी, एनपीपी, एनडीपीपी, एजीपी और बीएफएफ के साथ मिलकर लड़ेगी। त्रिपुरा में बीजेपी आईपीएफटी के साथ और त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी पार्टी एसकेएम के साथ मिलकर लड़ेंगी। ” इसका मतलब साफ़ है कि उत्तर पूर्वी राज्यों में कांग्रेस को हराने के लिए और ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की रणनीति लगभग तय है। इसका प्रभाव हमें लोकसभा के नतीजों में जरुर देखने को मिलेगा।
स्पष्ट रूप से मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी भाजपा के पास हासिल करने के लिए बहुत कुछ है। वर्ष 2014 के चुनावों में इन राज्यों की कुल 25 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को बहुत ही कम सीटें मिली थी लेकिन इस बार ये संख्या बढ़ने वाली है। इन राज्यों से कांग्रेस का पहले ही सफाया हो चुका है, और भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन लगातार अपनी पकड़ मज़बूत बनाने के लिए प्रयासरत है।
वहीं, इन राज्यों पर एबीपी न्यूज़- सी वोटर के सर्वे की मानें तो पूर्वोत्तर राज्यों की 25 लोकसभा सीटों में से एनडीए को 13, यूपीए को 10 और अन्य को 2 सीटें मिल सकती हैं। ये सर्वे भी साबित करता है कि जहां 2014 तक पूर्वोत्तर राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति बेहद कमजोर थी वो आज इतनी मजबूत है। कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि इस बार भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, और पूर्वोत्तर राज्यों की कुल 88 सीटों में से लगभग 50 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल होगी। इन राज्यों से भाजपा उत्तर भारत में होने वाले नुकसान की भरपाई बड़े आराम से कर सकती है। इन आंकड़ों को देखने के बाद कोई भी यह बड़ी आसानी से कह सकता है कि आगामी चुनावों में भारतीय जनता पार्टी अपनी सरकार बनाने में बड़ी आसानी से कामयाबी पाएगी तथा कांग्रेस को फिर एक बार देश की संसद में विपक्ष की भूमिका ही निभानी होगी।