भाजपा ने मेनका गांधी एवं उनके पुत्र वरुण गांधी के लोकसभा क्षेत्रों को आपस में बदलने का फैसला लिया है। इन लोकसभा चुनावों में मेनका गांधी अपने संसदीय क्षेत्र पीलीभीत की बजाय अपने बेटे के संसदीय क्षेत्र सुल्तानपुर से चुनावी मैदान में उतरेंगी, वहीँ वरुण गांधी पीलीभीत से चुनाव लड़ेंगे। आपको बता दें कि वरुण गांधी ने अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत इसी लोकसभा सीट से की थी और वर्ष 2009 में वे यहाँ से पहली बार सांसद बने थे। ऐसा करने के पीछे भाजपा की बड़ी रणनीति बताई जा रही है। सूत्रों के मुताबिक, दोनों संसदीय क्षेत्रों में इन नेताओं के खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी का माहौल बन गया था, जिसकी वजह से भाजपा को इन चुनावों में नुकसान उठाना पड़ सकता था।
दोनों नेता हाई प्रोफाइल होने के नाते अपने-अपने क्षेत्र में बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं रहे हैं, जिसकी वजह से यह माना जा रहा है कि मेनका और वरुण के खिलाफ क्षेत्र में एंटी-इनकम्बेंसी का माहौल है। इतना ही नहीं सुल्तानपुर में वरुण गांधी के करीबी रहे चंद्रभद्र सिंह ने बीजेपी छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया है और गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोक रहे हैं। आपको बता दें कि मेनका गांधी को भी उनके क्षेत्र में एंटी-इंकम्बेंसी का पूरा आभास था जिसके बाद उन्होंने अपने एवं अपने बेटे की सीटों को बदलने का आह्वान किया था। उन्होंने अपने लिए हरियाणा की करनाल सीट मांगी थी, लेकिन उनकी इस मांग को भाजपा हाईकमान ने नकार दिया और दोनों की सीटों को आपस में बदल दिया।
बीजेपी ने मेनका गांधी को पीलीभीत के बजाय सुल्तानपुर सीट से उम्मीदवार बनाने के पीछे उनके पति संजय गांधी की विरासत पर दावे के तौर पर भी देखा जा रहा है। संजय गांधी अमेठी संसदीय सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं, ये इलाका एक दौर में सुल्तानपुर जिले का हिस्सा रहा है। इसी मद्देनजर बीजेपी ने वर्ष 2014 में वरुण गांधी को सुल्तानपुर सीट से उतारा था और पार्टी को इसका फायदा भी मिला था। लेकिन इसके बावजूद वो बड़ा सियासी फायदा नहीं उठा सके हैं। ऐसे में बीजेपी ने मेनका गांधी को सुल्तानपुर के रण में उतारा है, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस ने उनके विपक्ष में संजय गांधी के मित्र रहे डॉ. संजय सिंह को उतारा है।
हालांकि, पार्टी ने पीलीभीत सीट से वरुण गांधी को उतारकर उनकी राह को आसान कर दिया है। दरअसल, इस सीट को कांग्रेस ने गठबंधन के नाते पहले ही ‘अपना दल’ को दे दिया है। इससे साफ है कि वरुण के खिलाफ सीधे तौर पर कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं होगा। इसके अलावा इस सीट पर लंबे समय से मेनका गांधी का कब्जा है और खुद भी वरुण गांधी 2009 में यहां से सांसद चुने जा चुके हैं, जिसका उन्हें भरपूर राजनीतिक फायदा मिलने की उम्मीद है।