कल देश ने मनोहर पर्रिकर के रूप में एक ईमानदार, निष्ठावान, कर्मठ, सक्षम एवं सादा जीवन जीने वाले एक मज़बूत छवि के नेता को खो दिया। वे पिछले एक साल से अग्नाशय कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे। पिछले दो दिनों से उनकी हालत बेहद नाजुक चल रही थी। गोवा के मुख्यमंत्री ने कहा था कि वे अंतिम सांस तक गोवा की सेवा करेंगे, जिसका उन्होंने बखूबी अनुसरण भी किया। 63 वर्ष की उम्र में उन्होंने रविवार को अपने प्राण त्याग दिए। गोवा सरकार में मंत्री विश्वजीत राणे ने उनके देहांत पर दुःख जताते हुए कहा ‘देश में मनोहर पर्रिकर की जगह कोई और नहीं ले सकता’। केंद्र सरकार ने सोमवार को देशभर में राजकीय शोक मनाने की घोषणा की है।
पर्रिकर सोशल इंजिनियरिंग में माहिर थे। उन्होंने जाति और धर्म से ऊपर उठकर एक लकीर खींच दी। संघ से विरासत में मिली सादगी और अनुशासन को उन्होंने बरकरार रखा लेकिन जब राजनीतिक समीकरण की बात आई तो व्यावहारिक कदम उठाया। नामांकन पर्चा दाखिल करने से पहले आशीर्वाद लेने के लिए चर्च जाना हो या फिर राज्य के कैथोलिक समुदाय के बीच पैठ बनाना हो, पर्रिकर आरएसएस कार्यकर्ता होने के साथ-साथ आईआईटियन भी थे और बौद्धिक प्रतिभा से संपन्न थे। उनके अंदर विरोधियों की चाल को पहले ही भांप लेने और उनहें मात देने की अद्भुत प्रतिभा थी।
अपनी इसी राजनीतिक प्रतिभा के चलते उन्हें गोवा में भाजपा का संकटमोचन भी माना जाता था। संकट मोचन के तौर पर उनकी हैसियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2017 में विधानसभा चुनावों में भाजपा के खाते में महज 14 सीट आई थी, जबकि कांग्रेस ने 16 सीट हासिल की थी। इसके बावजूद परिकर के महज रक्षा मंत्री पद से इस्तीफा देकर राज्य में वापस लौटते ही क्षेत्रीय दलों ने भाजपा को समर्थन देने की घोषणा कर दी थी। इसे उनकी राजनीतिक स्वीकार्यता की भी पुष्टि माना जाता है।
वे अपने काम के प्रति इतने निष्ठावान थे कि गंभीर बीमारी से लड़ने के दौरान भी उन्होंने अपने आधिकारिक काम को नहीं छोड़ा। पिछले वर्ष सितम्बर में आई उन खबरों को कौन भूल सकता है, जब वे दिल्ली के एम्स अस्पताल से ही आधिकारिक फाइलों को क्लियर कर रहे थे। जब लगातार उनके स्वास्थ्य को लेकर कांग्रेस बयानबाजी कर रही थी लेकिन इसकी परवाह न करते हुए पर्रिकर अपने आवास से ही राज्य का कार्यभार देख रहे थे इतना ही नहीं, पिछले वर्ष 6 दिसंबर को वो जब अपने आवास से कार में निकले थे तो उन्होंने अचानक कार रुकवा कर गोवा में बन रहे जुआरी ब्रिज और तीसरे मांडवी ब्रिज का जायजा भी लिया था। वास्तव में गंभीर बीमारी से जूझ रहे गोवा के सीएम को ऐसे समय में भी राज्य की कार्यप्रणाली और जनता की चिंता सताती थी।
अपने कार्य के प्रति जज़्बे के चलते ही वे देश के रक्षा मंत्री के पद तक पहुंचने में कामयाब रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रक्षा मंत्री पद के लिए पर्रिकर जैसी शख्सियत की जरूरत थी और उन्हें यह व्यक्तित्व गोवा के सीएम में मिला। रक्षा मंत्री बनने के बाद पर्रिकर ने अपनी भूमिका जिम्मेदारी पूर्वक निभाई। सेना के आधुनिकीकरण, वन रैंक वन पेंशन और सर्जिकल स्ट्राइक में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।
Shri Manohar Parrikar was an unparalleled leader.
A true patriot and exceptional administrator, he was admired by all. His impeccable service to the nation will be remembered by generations.
Deeply saddened by his demise. Condolences to his family and supporters.
Om Shanti. pic.twitter.com/uahXme3ifp
— Narendra Modi (@narendramodi) March 17, 2019
पीएम मोदी समेत देश के सभी बड़े नेताओं ने पर्रिकर के देहांत पर शोक जताया है। पीएम ने ट्वीट किया ”श्री मनोहर पर्रिकर एक अद्वितीय नेता थे, एक सच्चे देशभक्त एवं असाधारण प्रशासक, उनको सब चाहते थे। देश के प्रति उनकी सेवा को आने वाली पीढ़िया सदैव याद रखेंगी। उनके परिवार को मेरी तरफ से संवेदनाए! ॐ शांति!