उत्तर प्रदेश राजनीतिक दृष्टि से बड़ा अहम राज्य माना जाता है। हालांकि, कांग्रेस के लिए इस राज्य से बुरी खबरें आने का दौर लगातार जारी है। दरअसल सूत्रों के मुताबिक आगामी चुनावों में नई दिल्ली से भाजपा की मौजूदा सांसद मीनाक्षी लेखी को पार्टी द्वारा रायबरेली में सोनिया गांधी के सामने उतारा जा सकता है। आपको बता दें कि मीनाक्षी लेखी भाजपा की मज़बूत जनाधार वाली नेता है और उन्होंने पिछले लोकसभा चुनावों में नई दिल्ली में अपने विरोधी अजय माकन को 1.5 लाख के बड़े फासले से हराया था। भाजपा अमेठी से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को राहुल गांधी के खिलाफ मैदान में उतारकर पहले ही उनकी मुश्किलों में इजाफा कर चुकी हैं, अब सोनिया गांधी के सामने एक और मज़बूत नेता को चुनावी मैदान में उतारकर लगता है अब भाजपा उत्तर प्रदेश को भी कांग्रेस-मुक्त करने की राह पर निकल चुकी है।
आपको बता दें कि अमेठी और रायबरेली शुरू से ही कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता है। इंदिरा गांधी, जवाहरलाल नेहरू समेत गांधी परिवार के बड़े नाम इस सीट से चुनाव जीतते आए हैं। आज़ादी के बाद ऐसा सिर्फ दो बार हुआ है जब यहाँ कांग्रेस पार्टी के अलावा किसी अन्य पार्टी के उम्मीदवार चुनकर संसद पहुंचे हों। वर्ष 1977 में राज नारायण और 1996 में सतीश शर्मा रायबरेली में कांग्रेस के उम्मीदवारों को पटखनी देने में सफल हुए थे। वर्ष 1999 से लेकर अब तक यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी यहाँ से सांसद चुनकर आती रहीं हैं। अब मीनाक्षी लेखी के उनके सामने उतरने से सोनिया गांधी की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई खास जनाधार नहीं है। साल 2017 में संपन्न राज्य के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मात्र 6 फीसदी वोट शेयर मिला था जबकि उसके खाते में 403 सीटों में से सिर्फ 7 सीटें ही आई थी। कांग्रेस ने अपना यह प्रदर्शन तब दिखाया था जब वह समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी थी। जबकि वर्ष 2014 के चुनावों में कांग्रेस अमेठी एवं रायबरेली सीट ही बचाने में कामयाब हो पाई थी। इस बार के चुनावों में भाजपा की पूरी कोशिश है कि कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली सीटों से भी कांग्रेस का सफाया कर दिया जाए ताकि उत्तर-पूर्व के बाद अब देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य को भी पूर्णतः कांग्रेस मुक्त किया जा सके।
राज्य में पार्टी की स्थिति मज़बूत करने के लिए इसी साल पार्टी में कांग्रेस के सबसे आकर्षक चेहरे प्रियंका गांधी को भी शामिल किया गया था। उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था और उन्हें इन लोकसभा चुनावो में पूर्वी यूपी की कमान सौंपी गई थी लेकिन पार्टी के कमज़ोर जनाधार को देखते हुए उन्हें पार्टी द्वारा चुनावी मैदान में नहीं उतारने का फैसला लिया गया। पार्टी द्वारा उन्हें सिर्फ प्रचार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। यह कांग्रेस के इस डर को बयां करता हैं कि यदि प्रियंका गांधी अपने पहले ही चुनाव में हार जाती हैं तो उनका पॉलिटिकल कॅरियर शरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगा। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का कुछ भी सही नहीं है और उसे इतिहास की सबसे बड़ी हार का मुँह देखने को मिल सकता है।