न्यूजीलैंड के इतिहास की सबसे भयावह गोलीबारी में अब तक 49 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है। हमला क्रिस्टचर्च की दो मस्जिदों में हुआ। इस हमले में 20 लोगों के बुरी तरह जख्मी होने की भी खबर आई है। हमलावर ऑस्ट्रेलिया का एक नागरिक बताया जा रहा है जिसने इस पूरी घटना को अंजाम देते हुए अपने आप को फेसबुक पर लाइवस्ट्रीम किया। पुलिस द्वारा उस हमलावर को मार गिराया गया है वहीं चार अन्य लोगों को हिरासत में भी लिया गया है। न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैकिंडा अर्डर्न ने इसपर दुःख जताते हुए इसे एक आतंकी हमला करार दिया है, और आज के दिन को इतिहास के सबसे काले दिनों में से एक बताया है। हमले के वक्त बांग्लादेश से न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट मैच खेलने गई क्रिकेट टीम भी मस्जिद में मौजूद थी, लेकिन खिलाड़ियों में से कोई हताहत नहीं हुआ है।
पुलिस ने यह भी जानकारी दी है कि शहर की घेरेबंदी कर दी गई है जिसके चलते कोई भी व्यक्ति शहर के अंदर या शहर से बाहर नहीं जा सकता। पुलिस आयुक्त माइक बुश ने कहा, ”स्थिति लगातार बदल रही है और हम तथ्यों की पुष्टि के लिए काम कर रहे हैं। हम यह पुष्टि कर सकते हैं कि कई लोगों की मौत हुई है।” उन्होंने बताया कि चार व्यक्ति हिरासत में है लेकिन अन्य हमलावरों के गोलीबारी में शामिल होने की आशंका है।
मस्जिद में हुए इस ‘आतंकी’ हमले के बाद दुनियाभर से मुस्लिम समुदाय ने इस हमले की निंदा की है। न्यूजीलैंड में ऐसी घटना का होना कोई सामान्य बात नहीं है। वहीं इस हमले के बाद अब दुनियाभर में फिर एक बार फिर आतंक के खिलाफ एक नए सिरे से जंग छेड़ने की बातें कही जाने लगी है। भारत कई सालों से संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद को परिभाषित करने को लेकर आलोचना करते आया है। भारत यह कई मौको पर कह चुका है कि अगर हमें आतंकवाद से लड़ना है तो हमें आतंक की परिभाषा तय करनी ही होगी। पीएम मोदी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंक के मुद्दे को उठाते रहे हैं।
भारत की इस बात का अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया व फ्रांस जैसे देश खुले तौर पर समर्थन भी करते आये हैं लेकिन चीन जैसे देश अक्सर आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर भी अपनी राजनीति करने से नहीं कतराते! इसका बड़ा उदाहरण हमें कल देखने को मिला जब चीन ने अपने पाकिस्तान प्रेम के चलते आतंकी मसूद अज़हर को एक वैश्विक आतंकी घोषित होने से रोक दिया।
जाहिर है यदि दुनिया को आतंकवाद से लड़ना है तो इसके खिलाफ संयुक्त रूप से एकमत होकर लड़ना होगा। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कुछ देश इसपर भी अपने हित साधने की कोशिश करते नज़र आते हैं। किसी को आतंकवाद में अपना व्यापार दिखता है, तो किसी को एक ‘मौका’! लेकिन इसको जड़ से खत्म करने के लिए कोई भी देश प्रतिबद्धता से सामने आने के लिए तैयार नहीं होता।